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कालेश्वर महादेव में अस्थिविसर्जन पूजा पर दो धड़ों में बंटे पंडित, पुलिस ने लगाई रोक
प्रदीप शर्मा/देहरा। हिमाचल के कांगड़ा (Kangra) जिला के कालेश्वर महादेव (Kaleshwar Mahadev) स्थित ब्यास नदी में अस्थि विसर्जन करवाने पर दो गुटों में विवाद खड़ा हो गया है। दोनों गुट इसे अपना पुश्तैनी काम बता रहा है। गुटों में यह विवाद इतना बढ़ गया कि मामला पुलिस तक जा पहुंचा। जिसके बाद पुलिस ने स्थानीय पंडितों (local Pandit) के अस्थि विसर्जन प्रक्रिया करवाने पर रोक लगा दी गई है। बता दें कि विवाद (Dispute) में एक पक्ष एक पक्ष अस्थिविसर्जन को पुश्तैनी काम बताकर पूजा-पाठ करवाना चाहता है, जबकि दूसरा पक्ष पूजा के लिए खुद को उत्तराधिकारी मानता है।
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बता दें कि देश प्रदेश में फैली कोरोना (Corona) महामारी ने हिमाचल में कई लोगों की जिंदगी छीन ली। प्रदेश में अकेले मई महीने में ही 1643 लोगों की जान चली गई। हिंदू धर्म में पौराणिक कहानियों की मानें तो किसी व्यक्ति के मरने के बाद उसकी आत्मा की शांति के लिए उसका अस्थि विसर्जन (Bone immersion) करना जरूरी होता है। लेकिन पिछले कुछ समय में मौत के आंकड़ों का ग्राफ इतना बढ़ गया कि मृतकों के परिजनों के लिए अस्थिविसर्जन के लिए हरिद्वार जाना कठिन होने लगा। ऐसे में लोग जिला कांगड़ा स्थित धरोहर गांव गरली चंबापत्तन में विश्व ऐतिहासिक धार्मिक स्थल कालेश्वर महादेव स्थित ब्यास नदी (Beas River) में अस्थि विसर्जन कर रहे थे, लेकिन बताया जा रहा है कि अब यहां अस्थिविसर्जन के दौरान करवाई जाने वाली पूजा के नाम पर स्थानीय पंडित दो गुटों में बंट गए हैं। मामले की पुष्टि डीएसपी ज्वालामुखी तिलिक राज शांडिल ने की है। उन्होंने बताया कि स्थानीय पंडितों में अस्थिविसर्जन पूजा के लिए विवाद हो गया था। पुलिस ने फिलहाल स्थानीय पंडितों के द्वारा अस्थि विसर्जन प्रक्रिया करवाने पर रोक लगा दी है। जिसके चलते यहां पिछले दो दिन से अस्थि विसर्जन के लिए आ रहे लोग बिना किसी पूजा के ही अस्थियां बहाकर लौट रहे हैं।
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कोरोना लॉकडाउन के चलते ज्यादा होने लगा अस्थिविसर्जन
यूं तो देवभूमि हिमाचल (Himachal) में कई मंदिर हैं, लेकिन उज्जैन महाकाल मंदिर के बाद देश भर में जिला कांगड़ा स्थित धरोहर गांव गरली चंबापत्तन ब्यास तट के किनारे विराजमान विश्व ऐतिहासिक धार्मिक स्थल कालेश्वर महादेव मंदिर का अपना एक अलग ही महत्त्व है। इसका शिवलिंग जमीन के नीचे यानी गर्भ गृह में स्थापित है। कालीनाथ मंदिर के साथ यहां बह रही ब्यास नदी का पानी विपरीत दिशा की ओर बहने से इस नदी का महत्त्व और भी विशेष हो जाता है। वहीं कालेश्व महादेव मंदिर का इतिहास अज्ञातवास के समय पांडवों व देवी-देवताओं की तपोस्थली से भी जुड़ा हुआ है। यही कारण है कि इस स्थल का गंगा नगरी हरिद्वार की तरह विशेष महत्त्व दिया जाता है। यहां जिला कांगड़ा से ही नहीं, बल्कि हिमाचल के कई जिलों से सैकड़ों लोग यहां अपने मृत परिजनों की अस्थियां जल विसर्जन करने आते रहे हैं। लेकिन कोरोना लॉकडाउन के बाद इस स्थल का महत्त्व और भी बढ़ गया है। पहले यहां ब्यास नदी के किनारे कुछ लोग ही अपने मृत परिजनों की अस्थियां विसर्जन करते थे, लेकिन अब कई जिलों से लोग यहां पहुंच रहे हैं।
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