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जानिए, म्यूजिक बजते ही आखिर क्यों थिरकने लगते हैं हर किसी के पांव
ऐसा क्या कारण है कि हम म्यूजिक (Music) बजते ही नाचने लगते हैं। कोई तो वजह ऐसी होगी जिससे हम म्यूजिक बजते ही डांस करने लगते हैं। क्या कभी किसी ने इस पर सोचा है। यदि नहीं सोचा है तो आज हम आपको डॉ कैमरन (Dr. Cameron) से मिली जानकारी साझा करते हैं। डॉ कैमरन एक ट्रेंड ड्रमर (trend drummer) हैं। उन्होंने कहा कि बेस और डांस में विशेष संबंध है। वहीं उन्होंने कहा कि इलेक्ट्रॉनिक म्यूजिक कॉन्सर्ट में जब बास ज्यादा होता तो लोगों को सबसे ज्यादा आनंद आता है। उन्होंने कहा म्यूजिक हमारे जीवन का एक अभिन्न अंग है। जैसे ही म्यूजिक बजने लगता है हमारे पांव स्वयं ही थिरकने लगते हैं। या फिर पूरा शरीर ही हिलने लगता है। ऐसा क्यों होता है इस संबंध में एक अध्ययन किया गया है। यह अध्ययन करंट बायोलॉजी में पब्लिश हुआ है। कुछ वर्ष पहले ऐसा ही एक अध्ययन ऑस्ट्रेलिया (Australia) में भी सामने आ चुका है। ऑस्ट्रेलिया में हुई रिसर्च के अनुसार कि हम म्यूजिक बास के कारण ही थिरकने लगते हैं। अध्ययन में सामने आया कि लो और हाई फ्रीक्वेंसी साउंड हमारे मस्तिष्क (Brain) के भीतर होने वाले बदलावों को प्रेरित करता है। इन्हीं बदलावों पर अध्ययन भी किया गया है।
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इन आवाजों से म्यूजिक रिदम तैयार होता है। अध्ययनकर्ताओं (researchers) ने इसको समझने के लिए इलेक्ट्रोएन्सेफेलोग्राफी का इस्तेमाल किया जो मस्तिष्क की हरकतों को रीड करता है। अध्ययन में पाया गया कि मस्तिष्क की हर हरकत म्यूजिक की धुन पर डिपेंड करती है। जब गाने में बेस अधिक होगा तो हम पैर थिरकने के लिए ज्यादा मचल उठेंगे। बेस ज्यादा होगा तो लोग ज्यादा डांस करेंगे। यह अध्ययन कई प्रकार के मेडिकल कंडीशन को समझने और बीमारियों का इलाज करने के लिए प्रयोग हो सकता है। वहीं मैकमास्टर यूनिवर्सिटी के न्यूरोसाइंटिस्ट डेविड कैमरन के अनुसार कम फ्रीक्वेंसी (low frequency) वाला बास बजने पर भी लोगों ने 12 फीसदी ज्यादा डांस किया।
मजे की बात यह है कि जो लोग डांस कर रहे थे वे इस बेस को सुन भी नहीं पा रहे थे। कैमरन ने बताया कि लोगों को पता भी नहीं चल पा रहा था कि म्यूजिक कब बदल रहा है। मगर इससे उनके डांस करने की गति बदल रही थी। कैमरन ने बताया कि जब इलेक्ट्रॉनिक म्यूजिक कॉन्सर्ट में जब बेस ज्यादा होता है तो लोगों को तब मजा ज्यादा आता है जब वे इसे और भी बढ़ाने के लिए मांग करते हैं। उनको यह पता नहीं था कि बेस से लोगों से ज्यादा डांस करवाया जा सकता है। इस अध्ययन के अनुसार जब बेस सुनाई भी ना दे तब भी शरीर में संवेदनाएं पैदा होती हैं। कान के अंदरूनी हिस्से में पैदा होने वाली संवेदनाएं गति को प्रभावित करती हैं। ये संवेदनाएं स्वतरूस्फूर्त मस्तिष्क के अगले हिस्से यानी फ्रंटल कॉरटेक्स तक जाती है । कैमरन के अनुसार यह सब अवचेतन रूप से होता है । इन संवेदनाओं से शरीर के गति.सिस्टम को ऊर्जा मिलती है और इंसान थिरकने लगता है।