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जाली जन्म प्रमाण पत्र को लेकर हिमाचल हाई कोर्ट ने बीसीसीआई को दिए सख्त आदेश
शिमला। हिमाचल प्रदेश के उच्च न्यायालय (Himachal High Court) ने अंडर-19 आयु वर्ग के लिए आयु सत्यापन कार्यक्रम से संबंधित एक मामले में, भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड (BCCI) को एक ऐसे तंत्र को तैयार करने का निर्देश दिया है, जिसके तहत जाली जन्म प्रमाण पत्र (Fake Birth Certificate) के उत्पादन के कथित खतरे से खिलाड़ियों को रोका जा सकता है, जो कि याचिकाकर्ता के अनुसार काफी समय से प्रचलित है। कोर्ट ने बीसीसीआई कोछह महीने के भीतर इस तरह का फैसला (Decision) लेने का निर्देश दिया है।
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मुख्य न्यायाधीश मोहम्मद रफीक और न्यायमूर्ति ज्योत्सना रिवाल दुआ की खंडपीठ ने यह आदेश सुरेश कुमार द्वारा अपने पिता डोले राम के माध्यम से वर्ष2019 में (उस समय के नाबालिग) दायर एक याचिका पर पारित किया। याचिकाकर्ता ने दिनांक 22-07-2015 के पत्राचार व बीसीसीआई आयु सत्यापन कार्यक्रम 2015-16 को भी चुनौती दी थी, जिसके तहत सरकार द्वारा जारी जन्म प्रमाणपत्र (Birth certificate) के अनुसार आयु निर्धारण के उद्देश्य से अंडर-19 आयु वर्ग के लिए पात्रता के लिए प्राथमिक साक्ष्य जैसे स्कूल (School) और अस्पताल के रिकॉर्ड सबूत व सहायक के रूप में रखी गई है।
कट ऑफ डेट हर साल 1 अप्रैल के रूप में तय
याचिकाकर्ता ने प्रतिवादियों को पूर्वोक्त आक्षेपित पत्राचार जारी करने से पहले पालन किए जा रहे बीसीसीआई प्रोटोकॉल (BCCI Protocol) पर वापस जाने का निर्देश देने का अनुरोध किया था, जिसके तहत एक खिलाड़ी के मामले में,जो पहले से ही TW3 हड्डी परीक्षण के आधार पर अंडर-16 टूर्नामेंट में भाग ले चुका है, उसकी उम्र TW3 अस्थि आयु परीक्षण के अनुसार गणना की गई, उसकी आयु निर्धारित करने का आधार माना जा सकता है
और इस प्रकार निर्धारित आयु को क्रमशः अंडर -19 और अंडर-23 आयु वर्ग क्रिकेट टूर्नामेंट के लिए प्रति सीजन एक वर्ष जोड़कर आगे बढ़ाया जा सकता है। इसके अलावा याचिकाकर्ता ने प्रार्थना की थी कि प्रतिवादियों को विज्ञापन के रूप में अंडर -16, अंडर-19 और अंडर-23 खेलने के लिए पात्रता की कट ऑफ डेट हर साल 1 सितंबर के बजाय 1 अप्रैल के रूप में तय करने के लिए निर्देशित किया जा सकता है, जो मार्च/अप्रैल में जारी किया जाता है, पहली अप्रैल से 31 अगस्त तक जन्म लेने वाले
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खिलाड़ियों को आयु वर्ग श्रेणी टूर्नामेंट के तहत खेलने के लिए अयोग्य बनाता है और केवल 1 सितंबर से 31 मार्च तक पैदा हुए खिलाड़ी ही पात्र होते हैं। याचिकाकर्ता के अनुसारए कट ऑफ डेट के इस मनमाने ढंग से निर्धारण ने उसकी पात्रता अवधि को बारह महीने के बजाय केवल सात महीने कर दिया है। याचिकाकर्ता ने बहुत गंभीर आरोप लगाते हुए कहा था कि उम्र के निर्धारण और कट ऑफ डेट के निर्धारण के लिए प्रतिवादियों द्वारा अपनाई गई विधि भ्रष्टाचार को जन्म दे रही है और बड़े पैमाने पर जाली जन्म प्रमाण पत्र तैयार करने प्रस्तुत करने को जन्म दे रही है।
इस स्थिति पर भी कई अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ियों ने ध्यान दिया है और स्वीकार किया है। प्रतिवादी बीसीसीआई की ओर से पेश हुए वकील ने कहा कि याचिकाकर्ता को बीसीसीआई से संपर्क करना चाहिए, क्योंकि उम्र के निर्धारण के तरीके के साथ-साथ कट ऑफ डेट और निर्णय बीसीसीआई लेगा। अदालत ने बीसीसीआई को निर्देश दिया कि वह याचिका के संलग्नकों के साथ याचिकाकर्ता के रूप में प्रतिवेदन को माने, जिसमें से उपरोक्त मुद्दों की जांच की जाए, जो कि वास्तव में महत्वपूर्ण और प्रासंगिक हैं।