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हिमाचल हाईकोर्ट: मां-बाप को गुजारा भत्ता देना औलाद की कानूनी जिम्मेदारी
शिमला। हिमाचल हाईकोर्ट (Himachal High Court) ने सोमवार को एक महत्त्वपूर्ण व्यवस्था देते हुए कहा है कि माता-पिता को हर माह गुजारा भत्ता (Alimony) देना नैतिक ही नहीं, बल्कि कानूनी जिम्मेदारी (Legal Responsibility) भी है। कोर्ट में एक मां ने बेटे से गुजारा भत्ता दिलवाने की गुहार लगाई थी। न्यायाधीश विवेक सिंह ठाकुर ने कानूनी स्थिति स्पष्ट करते हुए मातृ ऋण के रूप में बेटे को 2 हजार रुपए प्रतिमाह बतौर गुजारा भत्ता देने के आदेश जारी किए। कोर्ट ने बेटे से कहा कि नवंबर माह से प्रत्येक महीने की 7 तारीख से पहले वह गुजारा भत्ता देना शुरू करे।
यह है एक मां का दर्द
प्रार्थी के अनुसार वह पांवटा साहिब जिला सिरमौर (Sirmour) निवासी है। उसके 4 बेटे और 4 बेटियां है। उसने पति के साथ मिलकर अपनी हैसियत के हिसाब से बच्चों को पढ़ाया-लिखाया और कमाने लायक बनाया। पति की मृत्यु के बाद सभी बेटों ने उनकी कृषि भूमि (Farm Land) को बराबर बांट लिया। उसने अपने पास कोई भूमि नहीं रखी। इसके बाद उसे चारों बेटे तंग करने लगे। वर्ष 2013 में उसे जबरन घर से निकाल (Out Of The House) दिया गया। वह एक बेटे की दया पर दूसरे गांव में रहने लगी। प्रार्थी के अनुसार उसके पास ठहरने का पर्याप्त स्थान न होने के कारण उसकी बेटियां भी उससे मिलने नहीं आ पाती। गुजारा भत्ता के लिए अदालत का दरवाजा खटखटाने के बाद दो बेटे 5 हजार रुपए और एक बेटा 3 हजार रुपए प्रतिमाह देने को राजी हो गए। एक बेटे को न्यायिक दंडाधिकारी ने आदेश पारित कर 3 हजार रुपए प्रतिमाह अपनी मां को गुजारा भत्ता देने के आदेश दिए, जिसे उसने सत्र न्यायाधीश के समक्ष चुनौती दी थी। सत्र न्यायाधीश ने बेटे की अपील को स्वीकार करते हुए न्यायिक दंडाधिकारी के आदेश को खारिज कर दिया था। इस आदेश को मां ने हाईकोर्ट के समक्ष चुनौती दी थी।