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बहादुरी सम्मान को कुरियर से भेजे जाने वाले मामले पर हाईकोर्ट की तल्ख टिप्पणी
राष्ट्रपति सम्मान को कुरियर से भेजने के मामले में हिमाचल हाईकोर्ट ने कड़ा संज्ञान लिया है। कोर्ट ने कहा कि याचिकाकर्ता विकास शर्मा को शौर्य पदक के अलावा अन्य पदक विजेताओं की तरह सुविधाएं व लाभ भी मिलना चाहिए। हाईकोर्ट ने इसके संदर्भ में याचिकाकर्ता को मिलने वाले लाभ व सुविधाओं को तुरन्त लागू करने के लिए संबंधित प्रतिवादियों को निर्देश भी दिए।
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कारण बताओ नोटिस जारी
जस्टिस सुरेश्वर ठाकुर ने विकास शर्मा की याचिका का निपटारा करते हुए पाया कि कोलकाता के अलीपुर में कार्यरत प्रतिवादी के साथ काम करने वाले संबंधित अधिकारी और कर्मचारी इस चूक के लिए जिम्मेदार है। हिमाचल हाईकोर्ट ने केंद्र सरकार को संबंधित अधिकारियों व कर्मचारियों पर कारण बताओ नोटिस जारी कर कार्रवाई करने का आदेश जारी किया।
प्रो प्रेम कुमार धूमल ने दिया था
हाईकोर्ट ने कहा कि याचिकाकर्ता को पदक कुरियर से मिलने के बाद रोहड़ू में आयोजित हिमाचल दिवस समारोह में तत्कालीन सीएम के हाथों दिया गया, जबकि बहादुरी और साहस के कार्यों को बढ़ावा देने के लिए पुरस्कार संबंधित सेलिब्रिटी द्वारा ही दिए जाते हैं। इसका मुख्य उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि नागरिकों में बहादुरी की भावना कभी कम न हो। इस मामले में सेलिब्रिटी द्वारा वीरता पुरस्कार प्रदान करने में देरी के लिए न्यायालय ने खेद जताया।
न्यायालय ने आदेश दिया कि याचिकाकर्ता का नाम उपयुक्त सूची में शामिल किया जाए। यह सुनिश्चित किया जाए कि पदक प्रदान करने के लिए तुरन्त कदम उठाया जाए। राष्ट्रीय पदक केवल गणतंत्र दिवस या स्वतंत्रता दिवस समारोह में दिया जाए। यह सुनिश्चित करेगा कि वीरता के कार्य जीवंत रहते हैं।
कैदी को बचाने पर मिला था इनाम
याचिकाकर्ता ने सितंबर 2005 में धर्मशाला जेल के जेलर को एक कैदी अमरीश राणा के चंगुल से बचाया था। अन्यथा वह उसे जान से मार देता। इस साहस के लिए उसका नाम प्रेजिडेंट अवार्ड के लिए राष्ट्रपति मनोनीत किया गया था। यह अवार्ड उसे 26 जनवरी 2007 को दिया जाना था। उसे सुचना के अधिकार अधिनियम के तहत मांगी सूचना के आधार पर इस बात का पता चला। अप्रैल 2009 को प्रार्थी को यह अवार्ड गवर्नमेंट प्रेस कोलकाता ने कुरियर के माध्यम से उसके घर भेज दिया। प्रार्थी ने यह मामला एडीजीपी (परिजन) के समक्ष उठाया तो 15 अप्रैल 2010 को तत्कालीन मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धूमल के कर कमलों से प्रार्थी को दे दिया गया। प्रार्थी ने इस याचिका में यह आरोप लगाया था कि यह सम्मान उसे केवल राष्ट्रपति के द्वारा ही दिया जाना चाहिए था।
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