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हाईकोर्ट ने दिया सुझाव: आदर्श नियोक्ता की तरह व्यवहार करे हिमाचल सरकार
शिमला। हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट (Himachal Pradesh High Court) ने राज्य सरकार को एक आदर्श नियोक्ता (Ideal Employer) की तरह व्यवहार करने का सुझाव दिया है। कोर्ट ने कहा कि भले ही सत्ता में कोई भी व्यक्ति हो अथवा सत्ता परिवर्तन से नई सरकार बनी हो, दोनों ही परिस्थितियों में कर्मचारियों के प्रति व्यवहार न्यायोचित रहना अति आवश्यक है।
न्यायाधीश विवेक सिंह ठाकुर और न्यायाधीश बिपिन चंद्र नेगी की खंडपीठ ने अनुबंध सेवा के लाभों की अदायगी करने के लिए सरकार को निर्देश देने की मांग वाली एक याचिका को स्वीकारते हुए यह टिप्पणी की।
यह है पूरा मामला
दो याचिकाकर्ताओं में से एक को शुरू में अनुबंध के आधार पर जेबीटी (JBT) के रूप में कार्य किया गया था। बाद में नियमित आधार पर पद बदलते हुए उसे शास्त्री के रूप में नियुक्त किया गया था। दूसरे याचिकाकर्ता को भी अनुबंध के आधार पर जेबीटी के रूप में नियुक्त किया गया था और बाद में उसकी अनुबंध नियुक्ति के बाद बिना किसी रुकावट के उसी पद पर नियमित कर दिया गया। न्यायालय ने कहा कि जहां किसी कर्मचारी ने विभिन्न पदों पर अनुबंध के आधार पर सेवा की है और उसे किसी अन्य पद पर नियमित किया गया है, तो उसकी तदर्थ/कार्यकाल अवधि को केवल पेंशन के उद्देश्य के लिए गिना जाएगा। वहीं, अनुबंध के आधार पर नियुक्त कर्मचारी को बिना किसी रुकावट के उसी पद पर नियमित आधार पर नियुक्त किया जाता है, तो उसकी अनुबंध सेवा को वार्षिक वेतन वृद्धि के साथ-साथ पेंशन लाभ (Pension Benefit) के उद्देश्य से गिना जाना चाहिए।
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सरकार की भूमिका शोषणकारी
न्यायालय ने पाया कि कई मामलों में कोर्ट की बार-बार टिप्पणियों और निर्देशों के बावजूद, सरकार कर्मचारियों के वैध लाभों को देने से बचने के लिए एक उपकरण के रूप में शोषणकारी नीतियों को बनाने, अपनाने और अभ्यास करने में लगी है। सरकार अस्थायी/तदर्थ नियुक्तियों की प्रथा को जारी रखने के लिए पद और योजना के नामकरण को बदलकर कर्मचारियों को वैध लाभ से वंचित करने का प्रयास करती है।
अपनाई चतुर शब्दावली
कोर्ट ने कहा कि स्वैच्छिक शिक्षकों, तदर्थ शिक्षकों, विद्या उपासकों, अनुबंध शिक्षकों, पैरा शिक्षकों, पीटीए और एसएमसी शिक्षकों की नियुक्ति स्थायी नियुक्तियों से बचने के लिए न्यायालयों के निर्देशों से हटने के लिए सरकार द्वारा तैयार की गई चतुर शब्दावली का उदाहरण है। तदर्थ/अस्थायी शिक्षकों की नियुक्ति करके और उन्हें नियमित कर्मचारियों को मिलने वाले सेवा लाभों से वंचित करना है। कोर्ट ने याचिका दायर करने से तीन साल पहले याचिकाकर्ताओं को वास्तविक वित्तीय लाभ देने का आदेश दिया और याचिका दायर करने से तीन साल पहले के लाभों को काल्पनिक आधार पर दिए जाने के आदेश पारित किए।