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CPS मामले में बड़ा अपडेट-हाईकोर्ट ने नियुक्ति एक्ट को ही किया निरस्त
Himachal High Court Verdict on Third Petition In CPS Case : शिमला। हिमाचल हाईकोर्ट (Himachal High Court) ने आज छह सीपीएस मामले (Six CPS Cases) में तीसरी याचिका पर भी फैसला सुना दिया है। पीपल फॉर रिस्पॉन्सिबल गवर्नेंस संस्था (People for Responsible Governance Organization) की याचिका पर फैसला सुनाते हुए कोर्ट ने सीपीएस की नियुक्ति के लिए बनाए गए एक्ट को असंवैधानिक बताया और इस एक्ट को निरस्त (Unconstitutional And Repealed This Act) कर दिया। न्यायाधीश विवेक सिंह ठाकुर और न्यायाधीश बिपिन चंद्र नेगी की खंडपीठ ने बीजेपी नेताओं और एक अधिवक्ता की याचिका में पारित निर्णय के दृष्टिगत इस याचिका में अपना फैंसला दे दिया। हाईकोर्ट ने पहले ही दो समान याचिकाओं को स्वीकारते हुए हिमाचल प्रदेश संसदीय सचिव (नियुक्ति, वेतन, भत्ते, शक्तियां, विशेषाधिकार और सुविधाएं) अधिनियम, 2006 को भी खारिज कर दिया है। इस फैसले में हाईकोर्ट (High Court)ने स्पष्ट किया था कि हिमाचल प्रदेश संसदीय सचिव (नियुक्ति, वेतन, भत्ते, शक्तियां, विशेषाधिकार और सुविधाएं) अधिनियम, 2006 को राज्य विधानसभा की विधायी शक्ति से परे होने के कारण रद्द किया जाता है। इसके परिणामस्वरूप कोर्ट ने इस अधिनियम के बाद की गई नियुक्तियों को रद्द करते इन्हें अवैध, असंवैधानिक और शून्य घोषित किया। कोर्ट ने आगे कहा कि चूंकि विवादित अधिनियम आरंभ से ही अमान्य है, इसलिए सभी संसदीय सचिवों ( CPS)ने आरंभ से ही सार्वजनिक पद पर अतिक्रमण किया है, इसलिए उनकी अवैध और असंवैधानिक नियुक्ति के आधार पर उनका पद पर बने रहना कानूनन पूरी तरह से अनुचित है। अतः अब से वे सभी परिणामों सहित मुख्य संसदीय सचिवों के पद पर नहीं रहेंगे। कोर्ट ने इस फैसले कि प्रति तत्काल मुख्य सचिव और सभी संबंधितों को प्रेषित करने को कहा है ताकि इसका तत्काल कार्यान्वयन हो सके। कोर्ट ने हिमाचल प्रदेश सरकार के मुख्य सचिव तथा अन्य सभी संबंधित पक्ष को इस निर्णय का अक्षरशः क्रियान्वयन सुनिश्चित करने को कहा है।
कोर्ट ने फैसले में कहा कि विधानमंडल अप्रत्यक्ष विधि अपनाकर अनिवार्य संवैधानिक निर्देशों का उल्लंघन नहीं कर सकता। यदि संवैधानिक प्राधिकरण को कोई कार्य करने से रोकने वाला कोई संवैधानिक प्रावधान है, तो ऐसे प्रावधान को किसी भी छल-कपट के माध्यम से विफल नहीं होने दिया जा सकता। यह स्पष्ट रूप से संवैधानिक प्रावधान के साथ धोखाधड़ी होगी। कोर्ट ने पाया कि “मुख्य संसदीय सचिव” या “संसदीय सचिव” के रूप में वे कैबिनेट मंत्री के कार्यालय के सहायक/आकस्मिक कार्य करते हैं। यद्यपि उनकी भूमिका अधिकतम अनुशंसात्मक होती है, फिर भी वे राजनीतिक कार्यपालिका के संवैधानिक या वैधानिक, संप्रभु कार्यों के निष्पादन से सक्रिय रूप से जुड़े होते हैं। इस याचिका में नई सरकार की ओर से सीपीएस की नियुक्ति किए जाने पर उन्हें प्रतिवादी बनाये जाने के लिए आवेदन किया गया था। अर्की विधानसभा क्षेत्र से सीपीएस संजय अवस्थी, कुल्लू से सुंदर सिंह, दून से राम कुमार, रोहड़ू से मोहन लाल ब्राक्टा, पालमपुर से आशीष बुटेल और बैजनाथ से किशोरी लाल को प्रतिवादी बनाते हुए इनकी नियुक्ति को चुनौती दी गई थी। हाईकोर्ट ने इन नियुक्तियों को हाल ही पारित निर्णय में इनकी नियुक्ति को असंवैधानिक ठहराया था।
-कुलभूषण खजूरिया