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संकरी सड़क-पेयजल आपूर्ति जैसी समस्याओं से जूझती रहती है ये सीट
हिमाचल प्रदेश की राजधानी शिमला की शहरी विधानसभा सीट (Shimla Urban Assembly Seat) चर्चा में रहती है। कारण सीधा है,राजधानी को संबोधित करने वाली इस सीट पर हर किसी का आना-जाना लगा रहता है। इस सीट को कब्जाने के लिए बीजेपी-कांग्रेस जोर-आजमाइश करती आई है। अबकी मर्तबा (Congress) कांग्रेस, बीजेपी के साथ-साथ आम आदमी पार्टी भी इस सीट पर नजरें गढ़ाए हुए है। शिमला शहरी सीट पर काफी समय तक बीजेपी का कब्जा रहा है। ऐसा कहा जाता है कि जो भी यहां से चुनाव जीतता है वह आने वाले समय में मंत्री पद तक जाता है। वर्ष 2007 के विधानसभा चुनाव (Assembly Elections) में इस सीट से (Suresh Bhardwaj) सुरेश भारद्वाज को जीत हालिस हुई और अब सुरेश भारद्वाज हिमाचल की जयराम सरकार में शहरी विकास मंत्री की जिम्मेदारी संभाल रहे हैं।
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शिमला शहरी विधानसभा सीट पहले शिमला के नाम से ही जानी जाती थी। लेकिन साल 2008 के बाद इसका परिसीमन कर शिमला शहर और शिमला ग्रामीण दो सीटों में बांट दिया गया। शिमला शहर सीट पर काफी समय तक बीजेपी का कब्जा रहा है। वर्ष 1967 में शिमला शहर सीट पर जनसंघ के उम्मीदवार ने जीत हासिल की थी। वर्ष 1998 में बीजेपी से नरेंद्र बरागटा इस क्षेत्र के विधायक बने थे, इसके बाद 2003 में कांग्रेस से हरभजन सिंह भज्जी और 2007 में सुरेश भारद्वाज ने जीत हासिल की और तब से लेकर अब तक इस सीट पर उन्हीं का कब्जा है। इससे पहले 1977 में जनता पार्टी से दौलत राम चौहान, 1982 में बीजेपी से दौलत राम चौहान, 1985 में कांग्रेस से हरभजन सिंह, 1990 में बीजेपी (BJP) से सुरेश कश्यप, 1993 में माकपा से राकेश सिंघा, 1998 में बीजेपी से नरेंद्र बरागटा, 2003 में कांग्रेस से हरभजन सिंह, 2007 में बीजेपी से सुरेश कश्यप, 2012 में फिर से बीजेपी के सुरेश कश्यप जीत दर्ज करवाने में सफल रहे। इसके बाद 2017 में भी यहां की जनता ने एक बार फिर बीजेपी के सुरेश कश्यप को ही जीत का सेहरा बांधा।
शिमला शहरी सीट पर पार्किंग की समस्या की बात हमेशा से होती आई है। हालांकि,अब शहर में बहुत सारे पार्किंग स्थल बना दिए गए हैं। इससे पार्किंग का दबाव कुछ तो कम हुआ है। सड़क संकरी होने के चलते यातायात जाम (Problem of Traffic Jam) की समस्या व पेयजल आपूर्ति (Problem of Drinking Water) की समस्या हमेशा बनी रहती है।