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ऐसे पड़ता है स्वास्तिक का हमारे जीवन पर प्रभाव, जानें महत्व
हिंदू धर्म में बहुत सारे देवी-देवता हैं और हर देवी-देवता की अपनी अलग पहचान व प्रतीक है। इसी तरह सनातन धर्म में स्वास्तिक को शुभ माना जाता है। स्वस्तिक (Swastik) के चिन्ह को कल्याणकारी माना जाता है। संस्कृत में स्वास्तिक का अर्थ सौभाग्य से जोड़ा जाता है। बहुत कम लोग जानते है स्वास्तिक का किस तरह से हमारे जीवन पर प्रभाव पड़ता है।
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अक्सर पूजा-पाठ के दौरान व शुभ अवसरों पर घरों में स्वास्तिक की रंगोली बनाई जाती है। हमारे देश समेत कई अन्य देशों में स्वास्तिक को शुभ माना जाता है। हमारे देश में हर मांगलिक कार्य में पूजा के स्थान से लेकर घर के दरवाजे की चौखट तक स्वास्तिक बनाने की परंपरा है। यूनान, चीन, नेपाल, जापान आदि देशों में भी स्वास्तिक को शुभ माना जाता है। हिंदू धर्म में स्वास्तिक शक्ति, समृद्धि, सौभाग्य का प्रतीक माना जाता है और घर से वास्तु दोष को दूर करने के लिए भी स्वास्तिक का इस्तेमाल किया जाता है। मान्यता है कि स्वास्तिक के इस्तेमाल से नेगेटिविटी दूर होती है। स्वास्तिक को मंगल का प्रतीक माना जाता है।
स्वास्तिक का अर्थ
स्वास्तिक में इस्तेमाल हुए सु का अर्थ है अच्छे और शुभ के रूप में लिया जाता है और अस्ति का अर्थ है होना यानी स्वास्तिक का अर्थ है शुभ होना व कल्याण होना।
ऐसे होती है स्वास्तिक की संरचना
विधान के अनुसार, स्वास्तिक को 9 इंच बनाए जाने का विधान है। स्वास्तिक में सबसे पहले दो सीधी रेखाएं खींची जाती हैं, जो आगे चलकर मुड़ जाती हैं और इनके किनारे भी थोड़े मुड़े हुए होते हैं। जिस स्वास्तिक में ये रेखाएं दाईं ओर मुड़ती हैं उसे दक्षिणावर्त और जिसमें बाईं ओर मुड़ती हैं उसे वामावर्त स्वस्तिक कहा जाता है। स्वास्तिक का आरंभिक आकार पूर्व से पश्चिम एक खड़ी रेखा और दूसरी इस रेखा के ऊपर से दक्षिण से उत्तर की ओर आड़ी खींची जाती है और फिर स्वास्तिक की चारों भुजाओं के सिरों पर पूर्व से एक-एक रेखा जोड़ी जाती है।
इसके बाद चारों रेखाओं के बीच में एक-एक बिंदु लगाया जाता है। स्वास्तिक के बायें हिस्से को भगवान गणेश का बीज मंत्र गं भी मानते हैं तो इसमें निहित चार बिंदियों को गौरी, पृथ्वी, कच्छप समेत अनेक देवताओं का वास माना जाता है।
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