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कंप्लीट Lockdown नहीं लगने के पीछे की अहम वजह-जानकर आप भी हिल जाएंगे
कोरोना (Corona) की दूसरी लहर ने हर किसी को ये बोलने के लिए मजबूर कर दिया है कि कंप्लीट लॉकडाउन ( Complete lockdown)ही इसका एकमात्र रास्ता है। लेकिन केंद्र सरकार ऐसा नहीं कर रही है। केंद्र ने गेंद राज्यों के पाले में छोड़ रखी है। अब राज्य तय करें कि उन्हें क्या करना है। यही कारण है कि कुछ राज्य सख्तियां बरत रहे हैं,तो कुछ राज्य कर्फ्यू (Curfew) लगा रहे हैं। कुछ ही राज्य हैं जिन्हें लॉकडाउन (lockdown) लगा रखा है,लेकिन उसमें भी बहुत सारी ढील दी हुई हैं। ऐसे में देश के हालात अच्छे नहीं है,कोरोना का कहर लगातार बढ़ रहा है। हेल्थ केयर सिस्टम (Health care system) गड़बड़ाया हुआ है तो अर्थव्यवस्था भी चौपट हो चुकी है। इसका सबसे ज्यादा असर निम्न आय वर्ग के लोगों पर पड़ा है।
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अब असली बात पर आते हैं कि केंद्र सरकार कंप्लीट लॉकडाउन (Complete lockdown) क्यों नहीं लगा रही है। अजीम प्रेमजी विश्वविद्यालय (Azim Premji University) की एक रिपोर्ट के अनुसार कम आय वाले लोगों पर पड़े आर्थिक प्रभाव को कम करने के लिए अगर कंप्लीट लॉकडाउन लगाया जाता है तो सरकार को इसके लिए आठ लाख करोड़ रुपए खर्च करने पड़ेंगे। ये रिपोर्ट उपभोक्ता पिरामिड घरेलू सर्वेक्षण प्रेमजी फाउंडेशन और कई अन्य नागरिक समाज संगठनों से मिले डाटा के आधार पर तैयार की गई है। विश्वविद्यालय की ओर से इस रिपोर्ट में कई अहम बदलाव की सिफारिश की गई है जिससे कोरोना प्रभावित पीड़ितों को लाभ मिल सके। विश्वविद्यालय के अर्थशास्त्र के प्रोफेसर अमित बसोले ने कहा कि हमने जो उपाय प्रस्तावित किए हैं वे केंद्र सरकार द्वारा इस वर्ष की कुल जीडीपी का 4.5 प्रतिशत है। यह लगभग 8 लाख करोड़ रुपए के बीच का खर्च खड़ा करेंगे।
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अजीम प्रेमजी विश्वविद्यालय की रिपोर्ट में सरकार से मांग की गई है कि तीन महीने के लिए पांच हजार रुपए नकद हस्तांतरण की अनुमति दी जाए,क्योंकि मौजूदा डिजिटल बुनियादी ढांचे के साथ कई घरों में पहुंचा जा सकता है। इसी रिपोर्ट में मनरेगा की पात्रता को बढ़ाकर 150 दिन करने और मजदूरी को न्यूनतम मजदूरी तक संशोधित करने का सुझाव दिया गया है। साथ ही मनरेगा के बजट को भी 1.75 लाख करोड़ रुपए तक बढ़ाने की बात कही गई है। यही वजह है कि केंद्र सरकार कंप्लीट लॉकडाउन की सिफारिश नहीं कर रही है।
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