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एक से तीन प्रतिशत वोट लेकर निर्दलीय और छोटे दल बदल डालते हैं नतीजों के समीकरण
शिमला। कुछ दिन बाद हिमाचल प्रदेश (Himachal Pradesh) में विधानसभा चुनाव हैं। हर राजनीतिक दल (Political Party) अपनी जीत को पक्का करने के लिए जोर लगा रहा है। वहीं कई राजनीतिक दल अपनी जीत को लेकर आश्वस्त भी हैं। क्योंकि उनकी पृष्ठभूमि (Background) मजबूत है। इन्हीं में से है बीजेपी। केंद्र में बीजेपी (BJP) की सत्ता होने के चलते कहीं ना कहीं इनके दिलो-दिमाग में अपनी जीत होने की उम्मीद है। वहीं कांग्रेस भी जोर-आजमाइश कर ही रही है। हिमाचल में केवल कांग्रेस और बीजेपी ही मुख्य दो दल माने जाते हैं। हालांकि इस बार आम आदमी पार्टी को तीसरे विकल्प के रूप में देखा जा रहा है तो कहीं ना कहीं आम आदमी पार्टी भी वोट बैंक पर सेंध लगाएगी और समीकरण बदलेंगे। बड़े दल तो चुनाव लड़ते हैं मगर छोटे दल भी मैदान में आ जाते हैं। इनमें से निर्दलीय, वामपंथी और छोटे दल होते हैं। यही दल कहीं ना कहीं हार-जीत के समीकरण (win-win equation) को बदल देते हैं। ये दल अकसर एक से तीन प्रतिशत वोट जीत के अंतर को एक हजार से भी कम कर देते हैं। इस संबंध में 2012-2017 के चुनावी आंकड़े साफ बताते हैं कि आठ से दस सीटों पर जीत का मार्जिन एक हजार वोटों से भी कम रहा है। वहीं कुछ सीटें तो ऐसी भी हैं जिन यह मार्जिन 100 से भी कम रहा है।
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इसमें कोई दोराय नहीं कि इस बार भी माकपा, भाकपा, निर्दलीय और अन्य संगठन चुनावी नतीजों को काफी दिलचस्प बनाने वाले हैं। इस बार माकपा और भाकपा संयुक्त रूप से 20 सीटों पर चुवाव लड़ रही हैं। तो जाहिर है ये दल कहीं ना कहीं चुनावी नतीजों को प्रभावित करेंगे ही। यदि हम वर्ष 2017 के माकपा के प्रदर्शन को देखें तो इसने ठियोग सीट पर विजय प्राप्त की थी। वहीं इसके अतिरिक्त सात सीटों पर 2300 से अधिक वोट हासिल कर लिए थे। वहीं जोगिंद्रनगर से प्रकाश राणा व देहरा से होशियार सिंह ने निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में अपनी जीत दर्ज करवाई थी। इस चुनावी वर्ष में बीजेपी से दिग्गज नेता हार गए थे। इनमें से सीएम पद के दावेदार प्रेम कुमार धूमल (Prem Kumar Dhumal) , सत्तपाल सिंह सत्ती,गुलाब सिंह ठाकुर, रविंद्र रवि और रणधीर शर्मा शामिल हैं। वहीं कांग्रेस (Congress) में पूर्व स्वास्थ्य मंत्री कौल सिंह ठाकुर, परिवहन मंत्री जीएस बाली, शहरी विकास मंत्री सुधीर शर्मा, वन मंत्री ठाकुर सिंह भरमौरी और आबकारी एवं कराधान मंत्री प्रकाश सिंह चौधरी (Prakash Singh Chaudhary) भी हार गए थे। वहीं वर्ष 2017 में जिन सीटों में एक हजार से भी कम अंतर रहा था उनमें से डलहौजी में 556, नगरोटा बगवां में 1000, सोलन में 671, बड़सर में 439, किन्नौर में 120 और कसौली में 442 का अंतर रहा था। इसी प्रकार वर्ष 2012 में भी कुछ इसी तरह का नजारा देखने को मिला था। इस वर्ष में भटियात में 111, चिंतपूर्णी में 438, कसौली में 24, शिमला शहरी में 628, कांगड़ा में 563, चौपाल में 647, पांवटा साहिब में 790 और श्री रेणुका जी में 655 का अंतर देखने को मिला था।