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जीवित्पुत्रिका व्रतः बच्चों की लंबी उम्र के लिए माताएं करती हैं ये कठिन व्रत
हिंदु धर्म में हर एक वत्र का एक विषेश महत्व है वैसे ही जीवित्पुत्रिका व्रत ( jivitputrika fast ) की भी एक अलग ही महत्ता है। यह व्रत माताएं अपने बच्चे की लंबी उम्र (longevity of child) के लिए रखती हैं और यह परंपरा महाभारत काल से चली आ रही है। तीन दिनों का ये व्रत इस बार 5 अक्टूबर से शुरू होकर 7 अक्टूबर की सुबह तक होगा। पहले दिन महिलाएं इस व्रत को शुरू करने के लिए नहाय खाय करती हैं। यह व्रत माताओं की ओर से बड़े भक्ति और समर्पण के साथ किया जाता है और इसे बेहद कठिन माना जाता है, क्योंकि इसमें महिलाएं जल तक ग्रहण नहीं करती। इस व्रत को ‘जितिया व्रत’ (Jitiya vrat) भी कहा जाता है। ये व्रत खासतौर से बिहार, झारखंड, उत्तर प्रदेश और और पश्चिम बंगाल में किया जाता है।
जरूर करें ये काम
जीवित्पुत्रिका व्रत के दिन कुछ नियमों का पालन करना अनिवार्य होता है। नहीं तो देवी-देवता रुष्ट हो जाते हैं और व्रत का पूरा फल नहीं मिलता है।
पूजा के दौरान सरसों के तेल और खली का भोग लगाएं। ऐसा करने से नकारात्मकता (Negativity) दूर होती है। व्रत के दौरान महिलाओं को तामसिक भोजन नहीं करना चाहिए और ब्रह्मचार का पालन करना चाहिए। भूलकर भी जल और अन्न ग्रहण न करें। साथ में शांति बनाए रखें। जीमूतवाहन कथा का पाठ करें या इसे सुनें।
व्रत कथा
महाभारत (Mahabharata) के युद्ध के दौरान जब पाण्डवों की विजय होती है तो पाण्डवों की गैर मौजूदगी में कृतवर्मा और कृपाचार्य को साथ लेकर अश्वत्थामा पाण्डवों के शिविर में जाते हैं और द्रौपदी (Draupadi) के पांचों पुत्रों को पाण्डव समझकर उनके सिर काट देते हैं। यह समाचार प्राप्त होते ही पाण्डव श्री कृष्ण (Lord Krishna) के साथ अश्वथामा की खोज में जाते हैं और उसे बन्दी बना लेते हैं। लेकिन फिर धर्मराज युधिष्ठर और श्रीकृष्ण के परामर्श पर अश्वत्थामा के सिर की मणि लेकर तथा उसके बाल कटाकर उसे बंधन मुक्त कर देते हैं।
अश्वत्थामा ने अपमान का बदला लेने के लिए अमोघ अस्त्र का प्रयोग पाण्डवों (Pandavas) के वशंधर उत्तरा के गर्भ पर किया। इसके बाद पाण्डवों ने श्रीकृष्ण से उत्तरा के गर्भ की रक्षा की प्रार्थना की। फिर भगवान श्रीकृष्ण ने सूक्ष्म रूप से उत्तरा के गर्भ में प्रवेश करके उसकी रक्षा की। उत्तरा के गर्भ से मृत बालक उत्पन्न हुआ। भगवान श्रीकृष्ण ने उसे प्राण दान दिया। वहीं पुत्र पाण्डव वंश का भावी कर्णाधार परीक्षित हुआ। परीक्षित को इस प्रकार जीवनदान मिलने के कारण इस व्रत का नाम जीवित्पुत्रिका पड़ा।