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हिमाचलः यूक्रेन में बदतर हालात से गुजर रहे भारतीय बच्चे, सरकार के खिलाफ फूटा अभिभावकों का गुस्सा
ऊना। यूक्रेन में फंसे अपने बच्चो को लेकर अविभावकों की चिंता लगातार बढ़ती जा रही है। पिछले कई दिनों से अपने बच्चों का इंतजार कर रहे अविभावकों के सब्र का बांध अब टूटना शुरू हो गया है। हालांकि केंद्र सरकार लगातार यूक्रेन में फंसे छात्रों को वतन वापस लाने और वहां पर हरसंभव मदद का दावा कर रही है। वहीं अभिभावकों का आरोप है कि युद्ध के हालातों में यूक्रेन में बैठे भारतीय दूतावास ने भारतीय बच्चों की किसी भी प्रकार से कोई भी मदद नहीं की है। बच्चों ने हर इंतजाम अपने संसाधनों से ही किया है। अपनी संसाधनों के दम पर वह बॉर्डर तक पहुंचे हैं। जो बच्चे यूक्रेन के कीव में थे, वह अपने संसाधनों से लबीव तक पहुंचे, लबीव से इवोना पहुंचे हैं और अपने स्तर पर ही टैक्सी करते हुए बच्चे स्लोवाकिया, हंगरी, रोमानिया और पोलैंड आदि देशों के बॉर्डर तक पहुंच पाए हैं। हर बॉर्डर तक हर बच्चा अपने आप पहुंचा है, उसमें सरकार का कोई रोल कहीं भी नजर नहीं आ रहा है
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यूक्रेन में फंसे भारतीय छात्र बदतर हालात में जीवन जीने को मजबूर हैं। हालत यह है कि यूक्रेन के शहरों से विभिन्न देशों के बॉर्डर तक पहुंचने के लिए भी उन्हें अपने स्तर पर इंतजाम करने पड़ रहे हैं। यूक्रेन के खारकीव के तहत पड़ते पिशाचिन शहर में करीब 1200 बच्चों को ठहराया गया था। वहां से बच्चो ने 500-500 डॉलर खर्च कर अपने स्तर पर ही बसों से बॉर्डर तक का सफर किया है। इससे भी ज्यादा बदतर हालात बच्चों के यह है कि उन्हें 3 दिन में सिर्फ 6 पीस ब्रेड, एक-एक चॉकलेट और आधा आधा संतरा दिया गया है और यह भी बच्चों ने अपने ही प्रयासों से जुटाया है।
ऊना में पत्रकारों से बात करते हुए अविभावकों ने सरकार के प्रबंधों पर भी सवाल उठाए हैं। उन्होंने कहा कि यदि बच्चों को खुद ही अपने स्तर पर सारा कुछ करना था तो भारत सरकार के राजदूत वहां पर क्या कर रहे हैं। अभिभावकों का कहना है कि सरकार को खुद संज्ञान लेते हुए बच्चों को बाहर निकालने के लिए प्रयास करने चाहिए। उन्होंने सरकार से मांग की है कि जो बच्चे 500 डॉलर खर्च कर बॉर्डर तक पहुंच रहे है सरकार वो खर्च उन्हें लौटाए। उन्होंने कहा कि अगर सरकार कोई मदद नहीं करगी तो ऊना नागरिक अधिकार मोर्चा इनका पूरा खर्च वहन करेगा। अविभावकों का कहना है कि इन परिस्थितियों को उपायुक्त से लेकर भारत सरकार के उच्च पदों पर बैठे नुमाइंदों तक भी उठाया गया है लेकिन उसके बावजूद भी हालत सुधरे नहीं है। अविभावकों का यह भी आरोप है कि सरकार ने एडवाइजरी जारी करने के साथ-साथ बच्चों को निकालने में देरी की है, जिसके चलते आज यह दिन देखने पड़ रहे हैं। उन्होंने कहा कि इस वक्त यह हालात बन चुके है कि सरकार बच्चों को डेंजर जोन तो छोड़िए सेफ़ जोन से फिर निकालने में नाकाम साबित हो रही है। यूक्रेन में शिक्षा हासिल करने गए जिला मुख्यालय के निवासी प्रथम कश्यप के पिता और पूर्व पार्षद नवदीप कश्यप ने कहा कि यदि अब भी देरी की गई तो कहीं न कहीं आगे चलकर यह देरी नासूर बन सकती है क्योंकि यूक्रेन में फंसे हुए बच्चे विश्वयुद्ध की आहट से भी काफी घबराए हुए हैं।
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