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मंडी पर त्रिमूर्ति की टेढ़ी नजर, हारने पर खिसक सकती है माननीयों की कुर्सी
मंडी। मंचों से मचानों से , राजनीति के गलियारों से, सीएम जयराम कई बार बता चुके हैं कि 50 साल में पहली बार मंडी से कोई सीएम बना है। लेकिन इस बार मौका अलग है, एक्स सर्विस मैन को साधने में जुटी बीजेपी ने कारगिल योद्धा ब्रिगेडियर खुशाल को मंडी से लोकसभा का टिकट दिया, लेकिन दांव पर बीजेपी का सब कुछ है, सीएम भी और सीएम की कुर्सी भी। बीते चार साल का लेखा जोखा सीएम जयराम को जनता के सामने रखना है।
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प्रतिष्ठा का सवाल बना मंडी संसदीय उपचुनाव
सीएम जयराम के लिए मंडी लोकसभा उपचुनाव प्रतिष्ठा का सवाल बन चुका है। जीत दिलाना जरूरी नहीं, बल्कि मजबूरी है। आगे की सियासत के लिए दिल्ली का दरवाजा इस बार मंडी से होकर गुजरेगा। सीएम जयराम इस बात को बखूबी जानते हैं। इसलिए अपने किले को मंडी जयराम छोड़ने को तैयार नहीं है, बाकी विधानसभा चुनाव की जिम्मेदारी वे अपने सिपहसलारों पर छोड़ चुके हैं
विधायकों की हवा बिलकुल है टाइट
बीजेपी भी हिमाचल में अपने राम का राज्य में हमेशा के लिए जयकारा लगाना चाहती है। इसलिए दिल्ली ने मंडी में विधायकों की हवा टाइट कर रखी है। मंडी में कुल जमा 17 विधानसभा की सीटें आती है। सिराज से जयराम खुद हैं। सबसे बड़ा जिम्मा उनके ऊपर तो है ही, लेकिन पार्टी की नजर बांकी के उन 14 विधायकों पर है, जिन्हें दिल्ली ने रेड सिग्नल दे दिया है, अगर बढ़त में जरा सी कटौती हुई तो 2022 में पार्टी उनका टिकट काट लेगी। इम्तिहान तो उनका भी है जो 2017 में हारने के बावजूद निगम बोर्ड के अध्यक्ष बन सत्ता की मलाई काट रहे हैं। ऐसे में मलाईदार सीट पर बैठने के बाद अगर वे जनता से कटे तो कुर्सी तो जाएगी ही, साथ ही जाएगी 2022 में टिकट की दावेदारी।
कई विधायकों पर है दिल्ली की नजर
बता दें कि मंडी संसदीय सीट में मंडी जिले की कमोबेश सभी सीटें, कुल्लू जिले के चार, चंबा का भरमौर और शिमला का रामपुर है। इनके अलावा लाहौल-स्पीति और किन्नौर विधानसभा हलके आते हैं। धर्मपुर को छोड़कर मंडी जिले की अन्य नौ विधानसभा सीटों में से आठ पर बीजेपी काबिज है, जोगिंदर नगर से बीजेपी का समर्थन करते एक निर्दलीय विधायक हैं। कुल्लू जिले से भी तीन विधायक बीजेपी के हैं। मनाली से गोविंद ठाकुर मंत्री हैं। रामपुर और भरमौर से भी बीजेपी विधायक हैं। लाहुल स्पीति से तो बीजेपी सरकार में मंत्री मारकंडा हैं। ऐसे में राजा के साथ साथ पूरी की पूरी फौज इस बार चुनावी इम्तिहान पर खड़ी है। दिल्ली दरबार जयारम को सेना सहित रणभूमि में अकेले छोड़कर मुकाबला देख रही है। दो धड़े चुपचाप हैं। ऐसे में आगामी उपचुनाव के नतीजे बीजेपी और सीएम जयराम के सियासी सफर की इबारत लिखेंगे।
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