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हिमाचल उपचुनाव: त्रिदेव के बिना चुनावी रण में कूदेगी बीजेपी, राहुल भी कांग्रेस की लिस्ट से हैं आउट
शिमला। सियासत की बिसात पर इस बार दोनों ओर से मोहरे चाल चलेंगे और दिल्ली दरबार में बैठे वजीर मार्गदर्शक रहेंगे। गौर करिए तो सियासत की यह तस्वीर आपके सामने 2014 के बाद पहली बार सामने आई है। जब बीजेपी चुनावी समर में है और बीजेपी की त्रिमूर्ति ठंडे प्रदेश की राजनीति को गरमाने के लिए कदम नहीं रख रही। हिमाचल मोदी के लिए घर जैसा है और जेपी नड्डा का तो घर ही हिमाचल है, लेकिन इस बार दोनों चेहरे सेमीफाइनल मुकाबले से पहले स्टार प्रचारकों की सूची से आउट है। जबकि, बीजेपी के चाणक्य कहलाने वाले अमित शाह भी इस बार चुनाव को दूर से देख रहे हैं और सारा दारोमदार बीजेपी ने हिमाचल में अपने क्षत्रपों के ऊपर सौंप दिया है।
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आलाकमान ने पीछे खींचे अपने पांव
मतलब साफ है, उम्मीदवारों के ऐलान से पहले किए गए सर्वे ने हाईकमान को कुछ ऐसा तो नहीं बता दिया कि जिससे चेहरे पर सवाल उठने से पहले ही उन्होंने पांव खींच लिए। और सेमीफाइनल मैच में अपने कप्तान और उनके धुरंधरों को विपक्ष के सामने खड़ा करवा दिया। जिस कारण अगर जीत गए तो मोदी की छवि और नड्डा के हुनर पर कोई सवाल नहीं करेगा। और हारे तो बीते कुछ महीनों में बीजेपी ने जो काम पांच राज्य में किया था, वह हिमाचल में आसानी से करने में कोई रुकावट ना आए।
क्यों अलग है यह उपचुनाव
आपको यह समझना होगा कि हिमाचल का उपचुनाव अन्य राज्यों से बिलकुल अलग है। दरअसल, इसके पीछे की आप पूरी कहानी हम आपको बताते हैं। हिमाचल के साथ-साथ बिहार और एमपी समेत कई अन्य राज्यों में चुनाव है, लेकिन ये राज्य चुनावी रण के दहलीज पर नहीं खड़े हैं। मगर हिमाचल है। आने वाले वक्त में हिमाचल की ठंडी हवा में सियासत की गर्मी चढ़ेगी। बीजेपी आलाकमान इस बात को बखूबी समझती है, एक फतेहपुर को छोड़ दें तो मंडी, अर्की और जुब्बल कोटखाई तीनों ऐसे क्षेत्र हैं, जहां बागवानों की तादाद अधिक है और अबकी बार बागवानों को सेब के गिरते हुए दामों से बड़ा नुकसान झेलना पड़ा है। केंद्र कभी चाहेगी नहीं कि बागवानों के आक्रोश से उनका परसेप्शन खराब हो और चुनावी हार का ठिकरा मोदी-शाह और नड्डा की तिकड़ी पर फोड़ी जाए, लेकिन बात सिर्फ बीजेपी की ही नहीं है।
कन्हैया इन राहुल आउट
कांग्रेस की तरफ से ऐसी ही तस्वीर सामने आई है। कांग्रेस की लिस्ट से भी राहुल, सोनिया और प्रियंका गायब हैं। हालांकि, वाम के नए राम कहे जाने वाले कन्हैया कांग्रेस में शामिल होने के बाद स्टार प्रचारक की लिस्ट में शामिल हो गए हैं। उनके साथ पंजाब को पॉलिटिकल क्राइसिस देने वाले सिद्धू और पंजाब के पहले दलित सीएम चरण जीत सिंह चन्नी इस लिस्ट में शामिल हैं। वहीं, ओबीसी को साधने के लिए छत्तीसगढ़ सीएम भूपेश बघेल भी आ रहे हैं। राजपूत और पंडितों की राजनीति कांग्रेस ने बीते कई बरस से हिमाचल में खूब की है। देखना दिलचस्प होगा कि बागवानों की मायूसी और जनता के मूड को कांग्रेस इस सेमीफाइनल मुकाबले में भूना पाती है या फिर सीएम जयराम अपने सिपहसालार के सहारे अपने किले और कुर्सी को बचाने में कामयाब हो पाते हैं। दांव पर सब कुछ है। सीएम की प्रतिष्ठा भी और कुर्सी भी।