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चावलों के बिना अधूरी होती है हर पूजा, माने जाते हैं इस बात का प्रतीक
हिंदू धर्म में पूजा-पाठ को बहुत महत्व दिया जाता है। अक्सर हम देखते हैं कि किसी भी धार्मिक अनुष्ठान या पूजा करते समय चावलों का इस्तेमाल जरूर किया जाता है। चावलों को श्रेष्ठ माना जाता है। पूजा के दौरान इस्तेमाल किए जाने वाले चावलों (Rice) को अक्षत नाम से जाना जाता है। शुभ काम में भी अक्षत का इस्तेमाल जरूर होता है।
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बता दें कि जब भी भगवान की पूजा की जाती है तो सबसे पहले भगवान को रोली और चंदन लगाने के बाद अक्षत लगाया जाता है। पूजा में हमेशा साबुत चावल ही चढ़ाए जाने चाहिए। चावल धान के अंदर बंद रहता है इसलिए अन्न के रूप में चावल को सबसे शुभ माना जाता है। चावल को पूजा की हर थाली का अभिन्न हिस्सा माना गया है। तिलक लगाने में भी चावलों का इस्तेमाल किया जाता है। अगर पूजा सामग्री में किसी चीज की कमी हो तो उसे अक्षत से पूरा कर लिया जाता है। इसके अलावा कई बार हवन सामग्री में भी अनाज के तौर पर अक्षत का इस्तेमाल कर लिया जाता है।
अक्षत का अर्थ
अक्षत का सफेद रंग शांति को दर्शाता है। अक्षत का भाव पूर्णता से जुड़ा हुआ है। अक्षत यानी जिसकी क्षति ना हुई हो। यानी जब भी पूजा के दौरान अक्षत चढ़ाते हैं तो भगवान से अक्षत की तरह ही अपनी पूजा को क्षतिहीन यानी सफल बनाने की प्रार्थना करते हैं। पूजा में अक्षत का इस्तेमाल करके हम अपने जीवन की कमी को दूर करने और जीवन में पूर्णता लाने के लिए प्रार्थना करते हैं।
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ये है मान्यता
कहा जाता है कि प्रकृति में सबसे पहले चावल की ही खेती की गई थी और उस समय ईश्वर के प्रति अपनी श्रद्धा को व्यक्त करने के लिए लोग उन्हें चावल समर्पित करते थे। मान्यता है कि अन्न और हवन ईश्वर को संतुष्ट कर देता है और इससे हमारे पूर्वज भी तृप्त हो जाते हैं। इसके अलावा भगवान श्रीकृष्ण ने भी गीता में कहा है कि मुझे अर्पित किए बिना जो कोई अन्न और धन का प्रयोग करता है, वो अन्न और धन चोरी का माना जाता है। इस तरह अन्न के रूप में भगवान को चावल अर्पित किया जाता है।