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चैत्र नवरात्रः कलश स्थापना का ये है शुभ मुहूर्त , पूजन सामग्री की लिस्ट करें नोट
मां दुर्गा के आराधना का पर्व चैत्र नवरात्र का प्रारंभ 02 अप्रैल को चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि से हो रहा है। नवरात्र के पहले दिन 02 अप्रैल को घटस्थापना या कलश स्थापना की जाएगी। इसके साथ ही नवदुर्गा की पूजा प्रारंभ होगी, जो 9 दिनों तक चलेगी। इस बार मां दुर्गा घोड़े पर सवार होकर आएंगी। नवरात्र की शुरुआत दो शुभ योग के साथ होने जा रही है। नवरात्र के पहले दिन सर्वार्थ सिद्धि योग (Sarvartha Siddhi Yoga) के साथ अमृत योग भी बन रहा है। ये दोनों ही योग बेहद शुभ माने जाते हैं। मान्यता है कि सर्वार्थ सिद्धि योग में किए गए व्रत व कार्यों का पूर्ण फल प्राप्त होता है, वहीं अमृत योग अमृतत्व फल देने वाला है। इसमें कोई भी अति शुभ कार्य किया जा सकता है।
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कलश स्थापनाः इस बार कलश स्थापना शनिवार (2 अप्रैल) के दिन होगी। इस दौरान सुबह 6 बजकर 1 मिनट से सुबह 8 बजकर 31 मिनट के बीच कलश स्थापना कर सकते हैं। इसके अलावा अभिजित मुहूर्त में दोपहर 12 बजे से लेकर 12 बजकर 50 मिनट के बीच घटस्थापना कर सकते हैं।
पूजन सामग्रीः ज्योतिषाचार्यों की मानें तो चैत्र नवरात्र में कई शुभ संयोग बन रहे हैं। इन शुभ योगों में कलश स्थापना और मां दुर्गा की पूजा करने से भक्तों को दोगुने फल की प्राप्ति होती है। नवरात्र के दिनों में लोग अपने घर में अखंड ज्योति जलाते हैं और इन नौ दिनों में मां के नौ स्वरूपों की पूजा करते हैं। मां दुर्गा की पूजा के लिए आपको सामग्री की लिस्ट तैयार कर लेनी चाहिए। मां दुर्गा की नई मूर्ति या तस्वीर, लाल रंग की चौकी, पीला वस्त्र, एक आसन, नई लाल रंग की चुनरी, मिट्टी का एक कलश, आम की 5 हरी पत्तियां, मिट्टी के बर्तन, लाल सिंदूर, गुड़हल का फूल, फूलों की माला, श्रृंगार सामग्री, एक नई साड़ी, अक्षत्, गंगाजल, शहद, कलावा, चंदन, रोली, जटावाला नारियल, सूखा नारियल, अगरबत्ती, दीपक, बत्ती के लिए रुई, केसर, नैवेद्य, पंचमेवा, गुग्गल, लोबान, जौ, गाय का घी, धूप, अगरबत्ती, पान का पत्ता, सुपारी, लौंग, इलायची, कपूर, फल, मिठाई, उप्पलें, एक हवन कुंड,आम की सूखी लकड़ियां, माचिस, लाल रंग का ध्वज, दुर्गा चालीसा, दुर्गा सप्तशती, दुर्गा आरती की किताब आदि,
चैत्र नवरात्रि घटस्थापना विधि
–पूजा घर में पूर्व या उत्तर दिशा में घटस्थापना के लिए स्थान चुनें, वहां साफ सफाई करें।
– उस स्थान को गंगाजल से पवित्र कर लें।
– उस जगह पर साफ मिट्टी बिछा दें, फिर जौ छिड़कें, उस पर मिट्टी की एक परत डाल दें।
– अब वहां पर पानी छिड़क दें, अब इसके ऊपर कलश स्थापना करें।
– कलश में गंगाजल, यमुना, कावेरी आदि पवित्र नदियों का जल भर दें, उसमें एक सिक्का डालें,
–इस दौरान वरुण देव का मन में ध्यान करें।
– अब कलश के मुख पर रक्षा सूत्र यर कलावा बांध दें, फिर उसके मुख को मिट्टी के एक कटोरी से ढंक दें।
–उस कटोरी को जौ से भर दें, अब एक सूखे नारियल में कलावा लपेट दें।
–फिर उसे कलश के ऊपर रखी जौ वाली कटोरी में स्थापित कर दें।
–कलश को गणपति का स्वरूप मानते हैं। इस वजह से सबसे पहले श्रीगणेश यानी कलश का पूजन करते हैं।