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हिमाचल: भव्य शोभा यात्रा के साथ शुरू हुआ नूरपुर का राज्य स्तरीय जन्माष्टमी महोत्सव
रविन्द्र चौधरी, नूरपुर। हिमाचल में आज जन्माष्टमी का पर्व मनाया जा रहा है। हिमाचल के कांगड़ा (Kangra) जिला के नूरपुर के ऐतिहासिक बृज राज स्वामी मंदिर (Historic Brij Raj Swamy Temple) में पहली बार राज्य स्तरीय जन्माष्टमी महोत्सव का शुभारंभ भव्य शोभा यात्रा व मंदिर में पूजा अर्चना के साथ आज हुआ। राज्य स्तरीय महोत्सव का का शुभारंभ खेल मंत्री राकेश पठानिया (Sports Minister Rakesh Pathania) ने बतौर मुख्याथिति शिरकत कर किया। शहर के किला मैदान में स्थापित श्री बृजराज मंदिर की खासियत यह है कि ये विश्व का एकमात्र मंदिर है जिसमें काले संगमरमर की श्री कृष्ण की मूर्ति के साथ अष्टधातु से निर्मित मीराबाई की मूर्ति श्री कृष्ण के साथ विराजमान हैं। यह पूरे विश्व में एक मात्र मंदिर है जिसमें कृष्ण के साथ राधा नहीं बल्कि मीराबाई विराजमान हैं।
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महोत्सव के शुभारंभ अवसर पर वन मंत्री ने लोगों को जन्माष्टमी (Janmashtami) पर्व की शुभकामनाएं देते हुए कहा कि जन्माष्टमी भगवान श्री कृष्ण का जन्मोत्सव है। उन्होंने कहा कि योगशवर कृष्ण के भगवान गीता के उपदेश अनादि काल से ही जनमानस के लिए जीवन दर्शन प्रस्तुत करते रहे हैं। उन्होंने कहा कि मेले और त्यौहार हमारी संस्कृति की पहचान हैं। इनके आयोजन से नई पीढ़ी को बुजुर्गों से विरासत में मिली सदियों पुरानी संस्कृति से रूबरू होने का मौका मिलता है। उन्होंने कहा कि इस मंदिर के अस्तित्व को मिटाने के लिए पुराने जमाने में कई बाहरी शक्तियों द्वारा बहुत प्रयास किए गए, लेकिन वे अपने लक्ष्य को पाने में कामयाब नहीं हुए। उन्होंने कहा कि बृजराज स्वामी का यह सदियों पुराना ऐतिहासिक मंदिर है तथा यहां के जन्माष्टमी उत्सव का अपना अलग महत्व है। राकेश पठानिया ने कहा कि मंदिर के उत्थान तथा मेले के विस्तार के लिए वह मंदिर ट्रस्ट को हर संभव सहयोग प्रदान करेंगे। उन्होंने जन्माष्टमी उत्सव (Janmashtami festival) को राज्य स्तरीय दर्जा प्रदान करने के लिए सीएम जय राम ठाकुर (CM Jai Ram Thakur) का विशेष आभार व्यक्त किया। उन्होंने युवाओं को नशे से दूर रह कर बुजुर्गों से विरासत में मिली संस्कृति को सहेज कर रखने की अपील की।
यहां जाने मंदिर का इतिहास
नूरपुर को प्राचीनकाल में धमड़ी के नाम से जाना जाता था, लेकिन बेगम नूरजहां के आने के बाद इस शहर का नाम नूरपुर पड़ा। इस मंदिर के इतिहास के साथ एक रोचक कथा है कि जब नूरपुर के राजा जगत सिंह (1619 से 1623) में अपने पुरोहित के साथ चित्तौडगढ़ के राजा के निमंत्रण पर वहां गये तो उन्हें रात्री विश्राम के लिए जो महल दिया गया। उसके साथ ही एक मंदिर थाए जहां रात के समय राजा को घुंघरुओं की आवाजें सुनाई दी। जब राजा ने मंदिर में बाहर से झांक कर देखा तो एक औरत मंदिर में स्थापित कृष्ण की मूर्ति के सामने गाना गाते हुए नाच रही थी। राजा को उसके पुरोहित ने उपहार स्वरूप इन्हीं मूर्तियों की मांग करने का सुझाव दिया, जिसपर राजा द्वारा रखी मांग पर चितौड़गढ़ के राजा ने खुशी खुशी उन मूर्तियों को उपहार में दे दिया।
उसके साथ ही एक मौलसिरी का पेड़ भी राजा को उपहार में दिया जो आज भी मंदिर प्रांगण में विद्यमान है। इन मूर्तियों को भी राजा ने किले में स्थापित किया था, लेकिन जब आक्रमणकारियों ने किले पर हमला किया तो राजा ने इन मूर्तियों को रेत में छुपा दिया। लंबे समय तक यह मूर्तियां रेत में ही रहीं। जिसके बाद राजा को स्वप्न में भगवान कृष्ण ने कहा कि अगर हमें रेत में रखना था, तो हमें यहां लाया ही क्यों गया। इस पर राजा ने अपने दरबार-ए-खास को मंदिर का रूप देकर उन्हें वहां स्थापित किया। मंदिर पुजारी की मानें तो इस मंदिर में स्थापित मूर्ति वही मूर्ति है जिसकी पूजा मीराबाई करती थी। यही कारण है कि मंदिर में रात को घुंघुरुओं की आवाजें भी कभी कभी सुनाई देती हैं। वहीं, रात को शैया के पास रखा पानी हमेशा कम होता है, वहीं शैया में भी सलवटें पड़ी हुई होती हैं जो साफ दर्शाता है इस कि मंदिर में श्रद्धालुओं की आस्था यूं ही नहीं है।