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हिमाचल की भार वहन क्षमता की स्टडी में हमें भी बात रखने का मिले मौका: चौहान
शिमला। भारत के हिमालयीय क्षेत्रों (Himalayan Area) में भार वहन क्षमता कितनी है? हिमाचल प्रदेश में आई हाल की प्राकृतिक आपदा के बाद अब इस सवाल पर गंभीरता से विचार शुरू हो गया है। अभी राज्य में भार वहन क्षमता तय नहीं है। इसी को लेकर शिमला के मेयर सुरेंद्र चौहान ने सुप्रीम कोर्ट को पत्र लिखकर भार वहन क्षमता (Carrying Capacity) की स्टडी के लिए एक कमेटी बनाने और उसमें 30 फीसदी स्थानीय लोगों के सुझावों को शामिल करने की मांग की है।
गौरतलब है कि इस मामले में एक याचिका सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court Petition) में भी लगी है। एक रिटायर्ड आईपीएस की इस याचिका में हिमालयीन क्षेत्रों में भार वहन क्षमता के अध्यययन के लिए एक कमेटी (Committee) बनाने की मांग की गई है। केंद्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (MoEFCC) ने भी सुप्रीम कोर्ट में पेश एक रिपोर्ट में देश के 13 हिमालयीन राज्यों में भार वहन क्षमता के अध्ययन के लिए एक विशेषज्ञ समिति बनाने का सुझाव दिया गया है।
बात रखने का मौका मिले
इन 13 राज्यों में हिमाचल प्रदेश भी शामिल है, जो हिमालय क्षेत्र में आता है। इसे देखते हुए ही शिमला नगर निगम के महापौर (Shimla MC Mayor) ने सुप्रीम कोर्ट को पत्र लिखकर ऐसी किसी भी कमेटी में 30 फीसदी स्थानीय प्रतिनिधियों के सुझावों को शामिल करने की मांग की है। उन्होंने पत्र में कहा है कि कमेटी जब भी सुझाव मांगे तो उसमें उन्हें भी अपनी बात रखने का मौका दिया जाए।
क्या है भार वहन क्षमता
भार वहन क्षमता वह होती है, जिसमें एक क्षेत्र विशेष की पारिस्थितिकी और भौगोलिक क्षेत्र को ध्यान में रखकर वहां मानव बसाहट (Human Settlement) और पर्यटन (Tourism) की सुविधाओं की क्षमता तय की जाती है। सुप्रीम कोर्ट में दायर याचिका में भारतीय हिमालयी क्षेत्र में बने होटल, रिसॉर्ट्स, रेस्ट हाउस और होम स्टे जैसे वाणिज्यिक आवासों के अनियंत्रित और अस्थिर निर्माण के साथ-साथ जलविद्युत परियोजनाओं और अनियमित पर्यटन के बारे में चिंताएं जाहिर की गई हैं। याचिका में सुरंग बनाने, चट्टान/पहाड़ी विस्फोट, हाई ट्रैफिक, वायु और जल प्रदूषण और खराब अपशिष्ट प्रबंधन से संबंधित मुद्दों का भी उल्लेख किया गया है।