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EWS कोटे पर बोला SC, आर्थिक आधार पर नीति बनाना कोई गलती नहीं
सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग को मिलने वाले EWS आरक्षण को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए अहम टिप्पणी की है। कोर्ट का कहना है कि किसी वर्ग तक सरकारी नीतियों का लाभ पहुंचाने के लिए आर्थिक आधार पर नियम तय करने के प्रतिबंधित नहीं किया गया है।
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बता दें कि अदालत में आरक्षण को चुनौती देने वालों के वकील का कहना था कि संविधान में आर्थिक आधार पर आरक्षण देने को कोई प्रावधान नहीं है। उनका कहना है कि ये सामाजिक भेदभाव को खत्म करने की व्यवस्था थी। इसका मकसद गरीबी हटाओ योजना चलाना नहीं है। ऐसे में अदालत के रुख से ये माना जा रहा है कि शायद ईडब्ल्यूएस कोटा बरकरार रहेगा।
जानकारी के अनुसार, कई वकीलों ने चीफ जस्टिस यूयू ललित (Chief Justice UU Lalit) की अध्यक्षता वाली पांच-सदस्यीय संविधान पीठ के समक्ष दलील दी कि किसी परिवार की वित्तीय स्थिति के एकमात्र मानदंड के आधार पर ईडब्ल्यूएस कोटा तय करना असंवैधानिक है। संविधान के तहत इस तरह के आरक्षण को गरीबी उन्मूलन योजना के हिस्से के तौर पर मंजूर नहीं किया जाता है।
वकीलों ने कहा कि ईडब्ल्यूएस (EWS) कोटा पूरी तरह से अनुचित, मनमाना, अवैध और असंवैधानिक है। उनका कहना है कि इंदिरा साहनी या मंडल कमीशन मामले में न्यायालय के फैसले को पलटने के लिए सरकार के विधायी निर्णय की श्रेणी में आता है।
मामले की सुनवाई करते हुए चीफ जस्टिस के अलावा न्यायमूर्ति दिनेश माहेश्वरी, न्यायमूर्ति एस रवींद्र भट, न्यायमूर्ति बेला एम त्रिवेदी और न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला ने कहा कि सरकार आर्थिक मानदंडों के आधार पर नीतियां बनाती है ताकि ये सुनिश्चित किया जा सके कि ऐसी नीतियों का लाभ लोगों तक पहुंचे। आर्थिक मानदंड के सही आधार है और वर्गीकरण के लिए एक सही तरीका है। ऐसा करना प्रतिबंधित नहीं है।
वहीं, याचिकाकर्ता की ओर से वकील रवि वर्मा कुमार ने कहा कि ओबीसी, एससी और एसटी की आबादी 85 फीसदी है और उन्हें करीब 50 फीसदी कोटा दिया जा रहा है। जबकि, पांच फीसदी ईडब्ल्यूएस 10 फीसदी कोटा मिलेगा। ऐसे में एक अन्य याचिकाकर्ता की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता पी. विल्सन ने ईडब्ल्यूएस कोटा का विरोध करते हुए कहा कि इसे एससी, एसटी और ओबीसी के लिए आरक्षण के साथ नहीं जोड़ा जा सकता है।