-
Advertisement
केंद्रीय मंत्री रामविलास पासवान का 74 वर्ष की उम्र में हुआ निधन; चिराग बोले- Miss you Papa…
नई दिल्ली। राजनीतिक माहौल को भांप लेने की काबिलियत रखने वाले लोकजनशक्ति पार्टी के संस्थापक और केन्द्रीय मंत्री रामविलास पासवान (Ram Vilas Paswan) का गुरुवार को 74 वर्ष की आयु में निधन हो गया है। रामविलास पासवान बीते कुछ दिनों से बीमार चल रहे थे। उनके निधन के बारे में जानकारी देते हुए उनके बेटे और लोकजनशक्ति पार्टी के प्रमुख चिराग पासवान ने ट्विटर पर लिखा, ‘पापा अब आप इस दुनिया में नहीं हैं लेकिन मुझे पता है आप जहां भी हैं हमेशा मेरे साथ हैं। Miss you Papa…’
पापा….अब आप इस दुनिया में नहीं हैं लेकिन मुझे पता है आप जहां भी हैं हमेशा मेरे साथ हैं।
Miss you Papa… pic.twitter.com/Qc9wF6Jl6Z— युवा बिहारी चिराग पासवान (@iChiragPaswan) October 8, 2020
बता दें कि शनिवार देर रात उनका दिल का ऑपरेशन किया गया था। यह बात भी चिराग पासवान ने ही ट्वीट कर शेयर की थी। चिराग पासवान ने अपने उस ट्वीट में इस बात का भी जिक्र किया था कि आने वाले दिनों में उनके पिता का एक और ऑपरेशन किया जाना था। उनका इलाज दिल्ली स्थित एक अस्पताल में चल रहा था।
सरकार किसी की हो पर मंत्री बनते थे पासवान; पढ़ें राजनीतिक सफर
पासवान (72) के राजनीतिक सफर की शुरूआत 1960 के दशक में बिहार विधानसभा के सदस्य के तौर पर हुई और आपातकाल के बाद 1977 के लोकसभा चुनावों से वह तब सुर्खियों में आए, जब उन्होंने हाजीपुर सीट पर चार लाख मतों के रिकॉर्ड अंतर से जीत हासिल की। 1989 में जीत के बाद वह वीपी सिंह की कैबिनेट में पहली बार शामिल किए गए और उन्हें श्रम मंत्री बनाया गया। एक दशक के भीतर ही वह एच डी देवगौडा और आई के गुजराल की सरकारों में रेल मंत्री बने। 1990 के दशक में जिस ‘जनता दल’ धड़े से पासवान जुड़े थे, उसने बीजेपी की अगुवाई वाले राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन : राजग : का साथ दिया और वह संचार मंत्री बनाए गए और बाद में अटल बिहारी बाजपेयी के नेतृत्व वाली सरकार में वह कोयला मंत्री बने।
बाबू जगजीवन राम के बाद बिहार में दलित नेता के तौर पर पहचान बनाने के लिए उन्होंने आगे चलकर अपनी लोक जनशक्ति पार्टी (लोजपा) की स्थापना की। वह 2002 में गुजरात दंगे के बाद विरोध में राजग से बाहर निकल गए और कांग्रेस नीत संप्रग की ओर गए। दो साल बाद ही सत्ता में संप्रग के आने पर वह मनमोहन सिंह की सरकार में रसायन एवं उर्वरक मंत्री नियुक्त किए गए। संप्रग-दो के कार्यकाल में कांग्रेस के साथ उनके रिश्तों में तब दूरी आ गयी जब 2009 के लोकसभा चुनाव में अपनी पार्टी की हार के बाद उन्हें मंत्री पद नहीं मिला। पासवान अपने गढ़ हाजीपुर में ही हार गए थे।
यह भी पढ़ें: कोरोना काल में भी आयोजित की जाएंगी चुनावी रैलियां; केंद्र ने #Guidelines में बदलाव कर दी अनुमति
2014 के लोकसभा चुनाव के पहले बीजेपी ने सीएम नीतीश कुमार के जदयू के अपने पाले में नहीं रहने पर पासवान का खुले दिल से स्वागत किया और बिहार में उन्हें लड़ने के लिए सात सीटें दी। लोजपा छह सीटों पर जीत गयी। पासवान, उनके बेटे चिराग और भाई रामचंद्र को भी जीत मिली थी। नरेंद्र मोदी के कार्यकाल में खाद्य, जनवितरण और उपभोक्ता मामलों के मंत्री के रूप में पासवान ने सरकार का तब भी खुलकर साथ दिया जब उसे सामाजिक मुद्दों पर आलोचना का सामना करना पड़ा। जन वितरण प्रणाली में सुधार लाने के अलावा दाल और चीनी क्षेत्र में संकट का भी प्रभावी तरीके से उन्होंने समाधान किया। वह हालिया लोकसभा चुनाव नहीं लड़े थे। उनके छोटे भाई और बिहार के मंत्री पशुपति कुमार पारस हाजीपुर से जीते। इसके बाद साल 2019 में उन्हें राज्यसभा के लिए निर्विरोध निर्वाचित किया गया था। केंद्र सरकार द्वारा उन्हें केन्द्रीय मंत्री का भी दर्जा दिया गया था।