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आनी के बटाला गांव में ठाकुर मुरलीधर संग होली खेलते हैं ग्रामीण
छबिन्द्र शर्मा/आनी। जिला कुल्लू के बाह्य सिराज क्षेत्र आनी में लोग आज भी कई प्राचीन संस्कृति व परंपराओं को संजोये हुए है। इसी कड़ी में आनी खंड के अंतर्गतगांव बटाला में मनाये जाने वाले फाग मेले की परंपरा भी बहुत प्राचीन है। यहां के आराध्य देव ठाकुर मुरलीधर के सानिध्य में मनाये जाने वाले इस मेले का यहां के ग्रामीणों को बेसब्री से इंतजार रहता है। यह उत्सव बटाला गांव में स्थित ठाकुर मुरलीधर के मंदिर में फाल्गुन मास में बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है। इस वर्ष यह उत्सव सोमवार को मनाया जायेगा।
पूजा अर्चना के बाद ब्रज की तर्ज पर खेलते हैं होली
प्रातः ठाकुर मुरलीधर की पूजा अर्चना के बाद स्थानीय ग्रामीण कृष्ण के संग ब्रज के जैसी होली खेलेंगे और सायंकाल में स्नानादि के बाद मंदिर में ब्राह्मणों द्वारा ठाकुर मुरलीधर की पूजा आरती की जाएगी और उसके बाद मंदिर में ढोलक, हरमोनियम, चिमटा व कनसी की मधुर तरंग के साथ भजन कीर्तन का दौर चलेगा। जिसमें भगवान श्री कृष्ण सहित ब्रह्मा, शिव व माता पार्वती तथा आदि गणेश सहित अन्य देवी देवताओं को समर्पित भजन गीत गाए जाएंगे। भजन कीर्तन का यह दौर प्रातः तक चलता रहेगा।
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नाटी का यह दौर प्रातः चार बजे तक चलता है
इसी बीच रात्रि 12 बजे के बाद मंदिर प्रांगण में पारंपरिक वाद्य यंत्रों की थाप पर नाटी होगी। जिसमें बाहर के घेरे में पुरुष और भीतर के घेरे में महिलाएं नाचती हैं। नाटी की धूरी में सबसे आगे देवता के गूर व अन्य प्रमुख लोग नाचते हैं। नाटी का यह दौर प्रातः चार बजे तक चलता है। इसके बाद होलिका दहन की तैयारियां पूर्ण की जाती हैं। होलिका दहन के लिए 12 विशालकाय मशालें प्रज्वलित की जाती हैं और ठाकुर मुरलीधर के जयघोष के साथ विधिविधान से होलिका दहन किया जाता है।
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भगवान श्रीकृष्ण चांदी की पालकी में सवार होकर निकलते हैं भगवान श्रीकृष्ण
प्रातः चार बजे 12 जलती मशालों के सुरक्षा घेरे में भगवान श्रीकृष्ण चांदी की पालकी में सवार होकर ढोलकी, चिमटा व शंखनाद की मधुर ध्वनि और देव वाद्य यंत्रों की धुन पर मंदिर प्रांगण में भक्तों को दर्शन के लिए बाहर निकलते हैं और इस दौरान ब्राह्मणों द्वारा ब्रह्म गीत के बीच ढाई फेर की परिक्रमा के बाद ठाकुर मुरलीधर अपने गर्भ गृह को लौट जाते हैं। प्रातः कालीन पूजा आरती के बाद कारकुनों में प्रशाद वितरित किया जाता है और इस प्रकार फाग उत्सव समाप्त हो जाता है और दूरदराज से आए सेंकड़ों भक्त अपने अपने घरों को लौट जाते हैं।
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