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हिमाचल उपचुनाव: बगावत की आंच में धू-धू कर जल रही BJP, कैसे पाट पाएगी कोटखाई की खाई
शिमला। जुब्बल-कोटखाई (Jubbal Kotkhai) की सियासी बिसात पर मुकाबला कांग्रेस बनाम बीजेपी नहीं, बल्कि सीएम बनाम प्यादा बन चुका है। चहां सियासत की चौसर पर अब मोहरों ने सीएम (CM) को मात देने के लिए चाल चल दी है। कोटखाई में जब बीजेपी ने रानी (बीजेपी प्रत्याशी नीलम सरैइक) के हाथ में जीत की कमान सौंपी तो, फ्रंट पर खड़े प्यादों ने बागवत कर दी। एक तरफ कांग्रेस (Congress) जुब्बल में बीजेपी के लिए एक-एक चाल पर खाई खोद रही है, तो दूसरी तरफ बगावती प्यादे अब सीएम और बीजेपी प्रत्याशी को ही गर्त में धकेलने में लगे हुए हैं।
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बीजेपी में इस्तीफों का दौर
कोटखाई में सियासी बुखार का आलम यह है कि मंडल से लेकर बूथ तक के मोहरों ने इस्तीफा दे दिया है। बगावत की आंच बीजेपी में धू-धू कर जल रही है। 30 तारीख को इम्तिहान है। बीजेपी के अश्वमेध को रोकने के लिए खुद कार्यकर्ताओं ने जुब्बल कोटखाई में मोर्चा खोल लिया है। नए सेना की भर्ती के लिए 15 दिन का समय रह गया है।
कोटखाई में अर्श से फर्श पर पहुंची बीजेपी
टीम चेतन के इस्तीफे के बाद आलम यह हो गया है कि बीजेपी कोटखाई में अर्श से फर्श पर पहुंच गई है। चुनावी दौर में अब बीजेपी के लिए नए सिरे से बूथ से लेकर मंडल स्तर तक संगठन खड़ा करने की कवायद शुरू करनी पड़ रही है। बीजेपी नेता यह कह रहे हैं वह चुटकी में संगठन को फिर से खड़ा कर देंगे, लेकिन हालात यह है कि जुब्बल नवार कोटखाई में बीजेपी प्यादों की बगावत के बाद खाई में समा चुकी है। शिमला से लेकर दिल्ली तक के बीजेपी नेता जुब्बल में पांव रखने से कतरा रहे हैं, कहीं बागियों की नजर में वे आए तो जुब्बल जीतना तो दूर की बात आगामी चुनाव में वे सियासी नेपथ्य में जा चुके होंगे।
सीएम खुद जुब्बल कोटखाई से दूर
सीएम जयराम ठाकुर (CM Jairam Thakur) ने भी अपने वजीरों को जुब्बल कोटखाई कि सियासी बिसात पर अकेले छोड़ दिया है। खुद सीएम जयराम अपने किले को बचाने में जुटे हुए हैं। बागी की बागवत को जयराम ने नामांकन के दिन भांप लिया था, जिसके बाद से जयराम ने जुब्बल में कदम तक नहीं रखा है। हालात संभालने के लिए शहरी विकास मंत्री और चुनाव क्षेत्र के प्रभारी सुरेश भारद्वाज और सुखराम चौधरी को अकेले छोड़ दिया गया है। बागवत की आंच इतनी अधिक है कि उससे झुलसने के डर से सीएम जयराम, काबीना मंत्री अनुराग से लेकर प्रदेश प्रभारी और प्रदेश अध्यक्ष तक जाने से कतरा रहे हैं। संसदीय क्षेत्र प्रभारी पुरुषोत्तम गुलेरिया भी इस भीषण सियासी संघर्ष के बीच ग्राउंड जीरो से गायब हैं। बरागटा परिवार की बगावत ने कोटाखाई में बीजेपी की ऐसी जड़ खोद डाली है जिसे 15 दिनों में भरना बीजेपी के लिए मुश्किल होता जा रहा है।
बीजेपी के लिए खटास बनी कोटखाई
सेबों (Apple) की मिठास के लिए मशहूर कोटखाई अब बीजेपी के लिए सियासी खटास बन चुकी है। दरअसल, जुब्बल नवार कोटखाई सेब के लिए फेमस है। सेब के मुद्दे पर दिवंगत बीजेपी विधायक सियासी बिसात को ऐसा साधते थे कि ना सिर्फ कांग्रेस बल्कि धुर विरोध वामपंथी भी लेफ्ट से राइट हो जाते हैं। खुद नरेंद्र बरागटा भी सेब के मुद्दों पर राइट से लेफ्ट होने में जरा सी भी देर नहीं करते थे। और बीजेपी के लिए दोहरी मुश्किल यही है, कार्डर चेतन के साथ खिसकता जा रहा है, लेफ्ट सेंटर की ओर झुकता जा रहा है। जनता एकदम चुप है।
बागवानों का मूड पहले से खराब
नतीजा 30 को आएगा, मूड बागवानों का सेब के गिरे दाम को लेकर खराब है, कन्हैया ने आकर सियासी ठंड में बिहारी तड़का लगा दिया है। सीएम खुद अपने घर में घिर गए हैं, सिपहसलाह तमाशबीन बने हुए हैं। हाईकमान सबकुछ टेढ़ी नजर से देख रहा है। और फिलहाल नट-शैल्ल में मॉरल ऑफ पॉलिटिकल स्टोरी तो फिलहाल यही नजर आ रहा है कि चेतन बरागटा जहां चाह-वहां राह की तर्ज पर राह बदलने के मूड में नहीं हैं। पिता के इतिहास के सहारे अपना भविष्य वर्तमान में ही तय करने की ठान चुके हैं।
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