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India-China LAC Tension : हिमाचल के इस गांव के लोगों को 25 KM के दायरे से बाहर जाने पर मनाही
रिकांगपिओ। चीन के साथ हुई हिंसक झडप के बाद हिमाचल (Himachal) के जनजातीय जिला किन्नौर में भारत-तिब्बत सीमा (Indo-Tibet border) पर भी सेना ने चौकसी बढ़ा दी है। जिला प्रशासन ने भी भारत-चीन (India-China) के बीच बढ़ते तनाव को देखते हुए अलर्ट जारी कर रखा है। भारत-तिब्बत सीमा से लगती कुन्नोचारंग पंचायत के लोगों को हिदायत दी है गई कि अंजान व्यक्ति दिखने पर उसकी सूचना तत्काल प्रधान को मुहैया करवाई जाए। पंचायत के प्रधान पूर्ण सिंह नेगी के मुताबिक सेना के अधिकारियों से भी बातचीत हुई हैए जिसमें ग्रामीणों को 25 किलोमीटर (KM) के दायरे से बाहर जाने पर मनाही की गई है।
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भेड़पालकों को दूरदराज क्षेत्रों में ना जाने की हिदायत
सीमा से लगती शलखर पंचायत के लोगों को भी सतर्कता बरतने के लिए कहा गया है। जिला प्रशासन ने भेड़पालकों को दूरदराज क्षेत्रों में ना जाने की हिदायत जारी की है। एसपी किन्नौर एसआर राणा (SP Kinnaur SR Rana) ने पुलिस थानों और चौकियों में तैनात कर्मियों को किसी भी प्रकार की संदिग्ध गतिविधि होने पर रिकांगपिओ (Reckongpeo) स्थित कंट्रोल रूम को सूचित करने के निर्देश जारी किए हैं। डीसी गोपाल चंद ने कहा कि जिला किन्नौर (District Kinnaur) अलर्ट पर है। सभी सीमावर्ती पुलिस थानों और चौकियों को भी सतर्कता बरतने के निर्देश दिए गए हैं।
याद आई मैकमोहन रेखा
विवाद के बीच मैकमोहन रेखा (McMahon Line) भी याद आने लगी है। भारत और चीन के बीच सीमा को लेकर दशकों से चल रहे विवाद का कारण बनी मैकमोहन रेखा का खाका हिमाचल की राजधानी शिमला (Shimla) में ही खींचा गया था। वर्ष 1913.14 में ब्रिटेन और तिब्बत के बीच सीमा निर्धारण के लिए शिमला कन्वेंशन हुआ था। सम्मेलन के मुख्य वार्ताकार तत्कालीन भारतीय साम्राज्य में ब्रिटेन के विदेश सचिव सर हैनरी मैकमोहन थे, जिनके नाम पर रेखा को मैकमोहन रेखा कहते हैं। वर्ष 1935 में भारत के सर्वे ऑफ इंडिया के मैप में मैकमोहन लाइन को एक आधिकारिक रूप से प्रकाशित किया है। शुरू से ही विवादित रही इस रेखा को लेकर 1950 में विवाद बढ़ गया। इसी वजह से वर्ष 1962 में भारत-चीन का युद्ध भी हुआ। इतिहासकारों का कहना है कि चीन मैकमोहन रेखा को यह कहकर मानने से इंकार करता है कि तिब्बत (Tibet) कभी स्वतंत्र देश नहीं था। शिमला कन्वेंशन में उसकी स्वीकृति के बगैर तिब्बत के प्रतिनिधि और ब्रिटिश प्रतिनिधि ने इसे स्वरूप दिया जिसे चीन नहीं मानता। यही कारण है कि मैकमोहन रेखा को लेकर आज भी गलवां घाटी जैसी हिंसक झडप हो रही हैं।