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जमा दो पास यतिन के जतन, लोगों को बना रहे टांकरी के ‘पंडित’ फोन पर भी लिखी जा सकेगी लिपि
कुल्लू। कबीर ने कहा था, पोथी पढ़ि पढ़ि जग मुआ, पंडित भया ना कोय। ढाई आखर प्रेम का, पढ़े सो पंडित होय।। इसका मतलब है बड़ी-बड़ी किताबें पढ़ लोग आते हैं चले जाते हैं, लेकिन कोई विद्वान नहीं होता। कबीर मानते हैं कि यदि कोई प्रेम से केवल ढाई अक्षर ही पढ़ ले तो विद्वान के बराबर है। टांकरी लिपि के लिए कुछ ऐसा ही प्रेम दिखाया है कुल्लू (Kullu) के यतिन पंडित (Yatin Pandit) ने। हिमाचल के पास अपनी लिपि (Script) होने के बावजूद हम इसे उपेक्षा का शिकार बना चुके हैं, लेकिन मात्र जमा दो पास यतिन पंडित अब अपने जतन से लोगों को टांकरी और शारदा लिपि (Sharada Font) का ‘पंडित’ का बनाने में जुटे हुए हैं। कुल्लू के रहने वाले यतिन पंडित टांकरी लिपि (Tankri Script) पर तन, मन और धन लगाकर काम कर रहे हैं। यही नहीं, जल्द ही उनके प्रयास रंग लाते हैं तो आपको टांकरी लिपि अपने एन्ड्रॉयड फोन (Android Phone) के कि-पैड पर उपलब्ध होगी। इससे आप टांकरी को भी आम बोलचाल की भाषा में उपयोग कर पाएंगे। हालांकि आपको इसके लिए टांकरी सीखनी (Learn Tankri) जरूर होगी। यतिन पंडित इन दिनों टांकरी लिपि को रिमॉडिफाई (TankriScript Remodification) करने में जुटे हुए हैं।
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कौन हैं यतिन पंडित
यतिन पंडित कुल्लू के रहने वाले हैं। आधिकारिक तौर पर जमा दो तक की पढ़ाई की है। हालांकि ग्रेजुएशन की पढ़ाई भी कर रहे थे, लेकिन फाइनल ईयर में पेपर के दिन भी गंभीर रूप से बीमार पड़ गए और एग्जाम में नहीं बैठ सके, लेकिन पढ़ने-लिखने और इतिहास को जानने की ललक ने यतिन पंडित को डिग्री को मोहताज नहीं बनने दिया। अपनी के एक छोटी सी दुकान चलाते हैं। 2014 में उन्होंने एक अखबार में बतौर रिपोर्टर काम शुरू किया, लेकिन अखबार की सीमाएं उनकी लेखन शैली को जकड़ रही थीं। ऐसे में यतिन पंडित ने 2016 में अखबार को अलविदा कहा और इतिहास को खंगालना शुरू किया।।
अब इतिहास पढ़ने के लिए तो लिपि को पढ़ना आना जरूरी था। ऐसे में उन्होंने पहले खुद ही टांकरी लिपि सीखना शुरू किया। 2018 में उन्होंने देव सदन कुल्लू में एक वर्कशॉप में हिस्सा लिया। इसमें लिपि पर ज्ञान बांटने के लिए हरि कृष्ण मुरारी आए थे। इसके बाद उन्होंने शारदा लिपि भी सीखना शुरू की और अब टांकरी लिपि का ज्ञान सभी को बांट रहे हैं। यतिन पंडित अभी तक 200 से ज्यादा लोगों को वर्कशॉप के जरिए टांकरी लिपि का ज्ञान बांट चुके हैं। यतिन पंडित टांकरी और शारदा लिपि को सीख कर संतुष्ट नहीं हुए हैं। अब वो पाबुची लिपि, भट्टाक्षरी लिपि और भोटी लिपियों को सीखने के लिए प्रयास शुरू करने वाले हैं।
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रशियन दल सीख रहा था कुल्लू की बोली
यतिन पंडित बताते हैं कि एक बार उन्होंने एक रशियन दल को कुल्लू में देखा। रशियन दल कुल्लू की बोली सीखने के लिए आया था और काफी ज्यादा काम भी कर चुका था। इससे वो बहुत ज्यादा प्रभावित हुए। यतिन बताते हैं कि विदेशी लोग हमारी बोलियों तक को सीखने और इस पर काम करने के लिए इतनी दूर से यहां पहुंच गए, लेकिन हम लोग अपनी लिपि को भुलाते जा रहे हैं। हमें अपना इतिहास जानना है और उसकी बेहतर समझ विकसित करनी है तो हमें टांकरी लिपि और शारदा लिपि को तवज्जो देनी ही होगी।
बोलियों का व्याकरण बनाने की कोशिश
यतिन पंडित बताते हैं कि हिमाचल में टांकरी लिपि का चलन 13वीं शताब्दी के आसपास शुरू हुआ था। हमारा ज्यादातर इतिहास और बहुत सी चीजें टांकरी लिपि में ही लिखी गई हैं। ऐसे में लोगों को कुछ समझना है और इतिहास को जानना है तो इसे विकसित करना होगा। उन्होंने कहा कि पंजाब में तो लिपि को पहचान मिल गई, लेकिन हमारी लिपि को पहचान नहीं मिल पाई। ऐसे में हमें अपने इतिहास को सहेजना जरूरी है। यतिन पंडित बताते हैं कि वो बोलियों का व्याकरण भी तैयार करने की कोशिश में हैं। यतिन पंडित ऐसे लोगों को भी टांकरी लिलि का ज्ञान दे चुके हैं, जो जर्मनी में शोध कर रहे हैं।
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टांकरी पर समझ करें विकसित
टांकरी लिपि वो लिपि है जिसे पहाड़ी भाषा समेत उत्तर भारत की कई भाषाओं को लिखने के लिए प्रयोग किया जाता था। पुराने समय में कुल्लू से लेकर रावलपिंडी तक पढ़ने लिखने का काम टांकरी लिपि में होता था। आप आज भी पुराने राजस्व रिकॉर्ड खंगालेंगे तो पुराने मंदिर की घंटियों या पुराने किसी बर्तन में टांकरी में लिखे शब्द आपको जरूर मिलेंगे। आपको बता दें कि टांकरी लिपि ब्राह्मी परिवार की लिपियों का ही हिस्सा है। टांकरी कश्मीरी में प्रयोग होने वाली शारदा लिपि की ही शाखा है। जम्मू कश्मीर की डोगरी, हिमाचल प्रदेश की चम्बियाली, कुल्लुवी, और उत्तराखंड की गढ़वाली समेत कई भाषाएं टांकरी में ही लिखी जाती थीं। कांगड़ा, ऊना, मंडी, बिलासपुर, हमीरपुर में व्यापारिक व राजस्व रिकॉर्ड और संचार इत्यादि के लिए भी टांकरी का ही प्रयोग होता था।
एंड्रॉयड पर टांकरी लिपि
टांकरी लिपि का कम्प्यूटर के लिए पहला फोंट चार साल पहले बनाया गया था। सांभ संस्था 2016 में टांकरी का पहला फोंट तैयार कर चुकी है। उसी को आधार बनाकर अब टांकरी का दूसरा फोंट तैयार करने की कोशिश हो रही है। यतिन पंडित बताते हैं कि इसमें हिमाचली बोलियों को ध्यान में रखते हुए कुछ बदलाव भी लाए जा रहे हैं। यतिन बताते हैं कि टांकरी लिपि का ज्यादा प्रसार हो इसके लिए एंड्रॉयड पर भी उपलब्ध करवाने का प्रयास चल रहा है।