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आखिर क्यों संडे को होती है साप्ताहिक छुट्टी, जानिए इसके पीछे का पूरा इतिहास
Last Updated on May 14, 2023 by sintu kumar
नई दिल्ली। संडे को आखिर फन डे क्यों कहते हैं। कब संडे को साप्ताहिक छुट्टी की शुरुआत हुई। इसके बारे में आज हम आपको डिटेल से बताने जा रहे हैं। अक्सर हम और आप अपने ट्रिप की प्लानिंग के लिए रविवार यानी संडे का दिन फिक्स करते हैं। संडे को छुट्टी मनाते हैं। घर के बहुत से कामकाज को संडे के लिए टाल देते है। लेकिन इस एक अदद छुट्टी के लिए हमारे पुरखों को ब्रितानिया हुकूमत के वक्त आठ साल तक लंबी लड़ाई करनी पड़ी थी। तब जाकर अंग्रेजी हुकमरानों ने संडे की छुट्टी घोषित की थी। और इस आंदोलन के अगुआ थे नारायण मेघाजी लोखंडे।
नारायण मेघाजी लोखंडे ने उठाई थी मांग
सन् 1857 की लड़ाई के बाद ब्रितानिया हुकूमत का राज पूरे इंडिया पर कायम हो गया। इंग्लैंड सहित दुनिया के अनेक हिस्सों में औद्योगिक क्रांति अपने चरम पर था। ब्रितानिया हुकूमत के उपनिवेश होने के कारण भारत में औद्योगिक क्रांति का प्रभाव पड़ा। बड़े पैमाने पर मिल और कारखाने लगे। कानपुर और इलाहाबाद जैसे गंगा के तट पर बसे शहरों में मजदूर इन मिलों में काम करने लगे। लेकिन उन भारतीय मजदूरों की आवाज उठाने वाला कोई नहीं था। इसी दौरान नारायण मेघाजी लोखंडे मजदूरों के हक में आवाज उठाई।
अंग्रेजी हुक्मरान नहीं हुए तैयार
बताया जाता है कि लोखंडे ही वह शख्स थे, जिन्होंने मिल मजदूरों के हक में पहली बार आवाज उठाई थी। लोखंडे को श्रम आंदोलन का जनक भी कहा जाता है। भारत में ट्रेड यूनियन का पिता भी कहा जाता है। आंदोलन में ज्योतिबा फुले का साथ भी लोखंडे को मिला था। वर्ष 1881 में लोखंडे ने मिल मजदूरों के लिए संडे की छुट्टी करने की मांग रखी। लेकिन अंग्रेज अफसर इसके लिए तैयार नहीं हुए।
8 साल तक चला था आंदोलन
संडे की छुट्टी के संबंध में लोखंडे का तर्क था कि सप्ताह के सात दिन मजदूर काम करते हैं, लिहाजा उन्हें सप्ताह में एक छुट्टी भी मिलनी चाहिए। संडे की छुट्टी लेना इतना आसान नहीं था। लेकिन दृढ़ निश्चयी लोखंडे ने ब्रितानिया हुकूमत के खिलाफ जबरदस्त आंदोलन छेड़ दिया। यह आंदोलन पूरे आठ साल यानी 1881 से 1889 तक चला। इतना ही नहीं लोखंडे ने मजदूरों के हक में इन मांग को भी अंग्रेज अफसरों के सामने उठाया था। दोपहर में आधे घंटे का खाने के लिए अवकाश, हर महीने की 15 तारीख तक वेतन मजदूरों को मिल जाए और काम के घंटे तय किए जाएं। दिलचस्प बात तो यह है कि लोखंडे ने संडे की छुट्टी पिकनिक मनाने या बजाए दिन देश और समाज हित में काम करने के लिए मांगे थे।
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