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देवशयनी एकादशी पर बन रहे कई शुभ संयोग, पढ़े क्या है व्रत का महत्व
Last Updated on July 10, 2022 by saroj patrwal
हमारे शास्त्रानुसार प्रत्येक मास के दो पक्षों में 2-2 एकादशियां यानि साल भर के 12 महीनों में 24 एकादशियां आती हैं परंतु जो मनुष्य इस पुण्यमयी देवशयनी एकादशी (Devshayani Ekadashi) का व्रत करता है अथवा इसी दिन से शुरू होने वाले चातुर्मास के नियम अथवा किसी और पुण्यकर्म करने का संकल्प करके उसका पालन करता है, उसके सभी पाप नष्ट हो जाते हैं। आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी देवशयनी के नाम से जानी जाती है। देवशयनी एकादशी प्रसिद्ध जगन्नाथ रथयात्रा के तुरन्त बाद आती है। आषाढ़ महीने की पहली एकादशी को योगिनी और दूसरी या अंतिम एकादशी को देवशयनी एकादशी कहा जाता है। इस साल देवशयनी एकादशी के दिन कई शुभ संयोग बन रहे हैं। इन शुभ संयोग के कारण इस एकादशी का महत्व और बढ़ रहा है। इस साल देवशयनी एकादशी 10 जुलाई, रविवार को है।इस देवशयनी एकादशी के दिन शुभ व शुक्ल योग बन रहे हैं। ज्योतिष शास्त्र में इन योग को शुभ योगों में गिना जाता है। इस अवधि में किए गए कार्यों में सफलता हासिल होने के साथ मान-सम्मान की प्राप्ति होती है।
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यह रहेगा देवशयनी एकादशी का शुभ मुहूर्त –
देवशयनी एकादशी तिथि की शुरुआत 09 जुलाई को शाम 04 बजकर 39 मिनट से होगी। तिथि का समापन 10 जुलाई को दोपहर 02 बजकर 13 मिनट पर होगा। उदयातिथि के अनुसार एकादशी व्रत 10 जुलाई को रथा जाएगा। व्रत पारण 11 जुलाई को होगा।
जिस कामना से कोई इस व्रत को करता है वह अवश्य पूरी होती है। इसी कारण इसे मनोकामना पूरी करने वाला व्रत भी कहा जाता है। पुराणों में ऐसा उल्लेख है, कि इस दिन से भगवान श्री विष्णु चार मास की अवधि तक पाताल लोक में निवास करते हैं। कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी से श्री विष्णु उस लोक के लिये गमन करते हैं। आषाढ मास से कार्तिक मास के मध्य के समय को चातुर्मास कहते है। इन चार माहों में भगवान श्री विष्णु क्षीर सागर की अनंत शय्या पर शयन करते है। इसलिये इन माह अवधियों में कोई भी धार्मिक कार्य नहीं किया जाता है। अंग्रेजी कैलेण्डर के अनुसार देवशयनी एकादशी का व्रत जून अथवा जुलाई के महीने में आता है। चतुर्मास जो कि हिन्दू कैलेंडर के अनुसार चार महीने का आत्मसंयम काल है, देवशयनी एकादशी से प्रारंभ हो जाता हैं।
इस दिन से भगवान श्रीविष्णु का एक स्वरूप चार मास के लिये पातल लोक में निवास करता है और दूसरा स्वरूप क्षीरसागर में शयन करता है। अत: इन चार मासों में किसी भी प्रकार का धार्मिक कार्य नहीं किया जाता। न हीं कोई वैवाहिक अनुष्ठान होता है और न किसी प्रकार का शुभ कार्य। ज्योतिषाचार्य पंडित दयानन्द शास्त्री ने बताया की इस देवशयनी एकादशी को पद्मनाभा, हरिशयनी, प्रबोधिनी आदि नामों से भी जाना जाता है। कई स्थानों में इस एकादशी (देवशयनी एकादशी) को पद्मा एकादशी, आषाढ़ी एकादशी और हरिशयनी एकादशी के नाम से भी जाना जाता है। इन चार मासों में केवल ब्रज की यात्रा का विधान है। ऐसा माना जाता है कि चातुर्मास में सभी देवता ब्रज में एकत्रित हो निवास करते हैं।
एकादशी के व्रत को समाप्त करने को पारण कहते हैं। एकादशी व्रत के अगले दिन सूर्योदय के बाद पारण किया जाता है। एकादशी व्रत का पारण द्वादशी तिथि समाप्त होने से पहले करना अति आवश्यक है। यदि द्वादशी तिथि सूर्योदय से पहले समाप्त हो गयी हो तो एकादशी व्रत का पारण सूर्योदय के बाद ही होता है। द्वादशी तिथि के भीतर पारण न करना पाप करने के समान होता है।
जानिए देवशयनी एकादशी का महत्व –
पुराणों में कथा है कि शंखचूर नामक असुर से भगवान विष्णु का लंबे समय तक युद्ध चला। आषाढ़ शुक्ल एकादशी के दिन भगवान ने शंखचूर का वध कर दिया और क्षीर सागर में सोने चले गये। शंखचूर से मुक्ति दिलाने के कारण देवताओं ने भगवान विष्णु की विशेष पूजा-अर्चना की। एक अन्य कथा के अनुसार वामन बनकर भगवान विष्णु ने राजा बलि से तीन पग में तीनों लोकों पर अधिकार कर लिया। राजा बलि को पाताल वापस जाना पड़ा। लेकिन बलि की भक्ति और उदारता से भगवान वामन मुग्ध थे। भगवान ने बलि से जब वरदान मांगने के लिए कहा तो बलि ने भगवान से कहा कि आप सदैव पाताल में निवास करें। भक्त की इच्छा पूरी करने के लिए भगवान पाताल में रहने लगे। इससे लक्ष्मी मां दुःखी हो गयी। भगवान विष्णु को वापस बैकुंठ लाने के लिए लक्ष्मी मां गरीब स्त्री का वेष बनाकर पाताल लोक पहुंची। लक्ष्मी मां के दीन हीन अवस्था को देखकर बलि ने उन्हें अपनी बहन बना लिया। लक्ष्मी मां ने बलि से कहा कि अगर तुम अपनी बहन को खुश देखना चाहते हो तो मेरे पति भगवान विष्णु को मेरे साथ बैकुंठ विदा कर दो। बलि ने भगवान विष्णु को बैकुंठ विदा कर दिया लेकिन वचन दिया कि आषाढ़ शुक्ल एकादशी से कार्तिक शुक्ल एकादशी के दिन तक वह हर साल पाताल में निवास करेंगे। इसलिए इन चार महीनों में कोई भी शुभ कार्य नहीं किया जाता है।
पंडित दयानंद शास्त्री, उज्जैन (म.प्र.) (ज्योतिष-वास्तु सलाहकार)
09669290067, 09039390067