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शामलात भूमि को खनन के लिए आवंटित करने पर हिमाचल सरकार से जवाब तलब
Last Updated on December 7, 2022 by sintu kumar
हिमाचल प्रदेश में प्रदेश हाईकोर्ट ने शामलात भूमि (Shamlat Land) को खनन कार्य के लिए आवंटित करने के मामले में सरकार (Government) से एक सप्ताह के भीतर जवाब-तलब किया है। न्यायाधीश तरलोक सिंह चौहान और न्यायाधीश वीरेंद्र सिंह (Justice Tarlok Singh Chauhan and Justice Virender Singh) की खंडपीठ ने मामले की प्रारंभिक सुनवाई के पश्चात सरकार से पूछा है कि जब हाईकोर्ट (High Court) ने अपने फैसलों में यह स्पष्ट किया है की ग्राम वासियों के संयुक्त इस्तेमाल के लिए रखी गई शामलात भूमि को उत्खनन के लिए आबंटित नहीं किया जा सकता तो मोहाल हार डोगरी ग्राम पंचायत कोल्हापुर नुक्कड़ जिला कांगड़ा (Kangra) में शामलात भूमि को उत्खनन के लिए कैसे आबंटित किया गया है। कोर्ट ने मामले पर सुनवाई 13 दिसम्बर को निर्धारित की है। विक्रम कुमार और अन्य याचिकाकर्ताओं ने आरोप लगाया है कि सरकार ने कानून की परवाह किए बगैर मोहाल हार डोगरी में उत्खनन कार्य के लिए शामलात भूमि प्रतिवादी को दे दी। इस आबंटन से उनके अधिकारों का हनन हो रहा है और क्षेत्र में प्रदूषण की समस्या भी पैदा हो सकती है। प्रार्थियों ने निजी प्रतिवादी और सरकार के बीच हुए करार को रद्द करने की गुहार भी लगाई है।
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पदोन्नति के खिलाफ दायर याचिका को देरी के आधार पर किया खारिज
हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने लोक निर्माण विभाग में कार्यरत सुपरिंटेंडिंग इंजीनियर सुरेंद्र पॉल (Surinder Paul) की पदोन्नति के खिलाफ दायर याचिका को देरी के आधार पर खारिज कर दिया। न्यायाधीश तरलोक सिंह चौहान और न्यायाधीश विरेंदर सिंह की खंडपीठ ने प्रार्थी सुरेश कपूर और अन्यों द्वारा दायर याचिका को खारिज करते हुए कहा कि समय बीत जाने के बाद देरी से दायर पदोन्नति (promotion) और वरिष्ठता से जुड़े मामलों को कोर्ट द्वारा सुनवाई के लिए स्वीकार करने का मतलब स्थिर स्थिति को अस्थिर करने जैसा होगा। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि यदि पदोन्नति और वरिष्ठता से जुड़े मामलों को अदालत के समक्ष ज्यादा से ज्यादा 1 वर्ष के भीतर चुनौती दी जाए अदालत का दखल वाजिब हो सकता है। यदि समय रहते विवादित वरिष्ठता सूची अथवा पदोन्नति आदेशों को चुनौती न दी जाए तो इसका अर्थ यह भी लगाया जा सकता है कि प्रार्थी ने जूनियर की वरिष्ठता और उसकी पदोन्नति को स्वीकार कर लिया है। मामले को स्थिर होने देने का इंतजार करने वाले प्रार्थियों को हतोत्साहित करना जरूरी है।
मामले के अनुसार निजी प्रतिवादी सुरिंदर पॉल को भूतपूर्व सैनिक कोटे से 13 मार्च 2000 को असिस्टेंट इंजिनियर नियुक्ति प्रदान की गई थी जबकि प्रार्थियों को 1996 और 1997 में नियुक्ति दी गई थी। 23 अप्रैल 2007 को प्रतिवादी को तदर्थ आधार पर पदोन्नत कर एक्जीक्यूटिव इंजिनियर पदोन्नत किया गया। 4 नवम्बर 2008 को असिस्टेंट इंजिनियर की वरिष्ठता सूची जारी की गई जिसमें प्रतिवादी सुरिंदर पॉल को प्रार्थियों से वरिष्ठ दर्शाया गया। वरिष्ठता का कारण भी वरिष्ठता सूची में बताया गया कि सेना में 4 साल 11 महीने सेवा करने का लाभ देते हुए उन्हें वरिष्ठ बनाया गया है। कोर्ट ने मामले के रिकॉर्ड का अवलोकन करने पर पाया कि प्रार्थियों ने न तो 4.11.2008 को जारी वरिष्ठता सूची को समय पर चुनौती दी जिससे उनके अधिकार प्रभावित हो रहे थे और न ही उन्होंने निजी प्रतिवादी की एग्जीक्यूटिव इंजीनियर के तौर पर पदोन्नति को समय रहते चुनौती दी। कोर्ट ने कहा कि प्रार्थियों ने केवल 2 जनवरी 2011 को कोर्ट के समक्ष याचिका दायर कर अपने अधिकारों के हनन की बात रखी। इससे यह अंदाजा लगाया जा सकता है कि प्रार्थियों ने मामले को पहले स्थिर होने दिया और अब उनकी तरफ से स्थिति को अस्थिर करने की कोशिश की जा रही है।
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