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बॉम्बे हाई कोर्ट ने रद्द की नाबालिग से दुष्कर्म के दोषी की सजा, चचेरी बहन से किया था Rape
Last Updated on February 6, 2021 by
मुंबई। बॉम्बे हाई कोर्ट (Bombay High Court) ने दुष्कर्म के आरोप में एक लड़के (Boy) को दी जाने वाली दस साल के कारावास की सजा को रद्द किया है। लड़का अभी महज एक 19 साल का है और यह अपनी चचेरी बहन के साथ दुष्कर्म (Rape with Cousin Sister) के मामले में दोषी (Guilty) था। इसके साथ ही सुनवाई दौरान बॉम्बे हाई कोर्ट ने माना कि नाबालिग (Minor) की सहमति (Minor’s Consent) को लेकर कानूनी नजरिया साफ नहीं है। इसके साथ ही बॉम्बे हाई कोर्ट ने आरोपी की सजा को रद्द कर दिया है और उसे जमानत (Bail) पर भी रिहा करने का आदेश दिया। अब बॉम्बे हाई कोर्ट तय समय में लड़के की अपील पर सुनवाई (Hearing) करेगा। इस मामले में पीड़िता बच्ची की उम्र 15 साल है और वो आठवीं कक्षा की पढ़ाई कर रही है।
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क्या है मामला
जानकारी के अनुसार पीड़िता बच्ची अपने चाचा के साथ रहती थी। सितंबर 2017 में बच्ची ने अपनी एक दोस्त को बताया कि उसके चचेरे भाई ने उसे गलत तरीके से छुआ और इसके बाद से उसके पेट में दर्द हो रहा है। बच्ची की दोस्त ने सारी बात एक टीचर को बताई। टीचर ने बच्ची से बात की तो उसके साथ हुए यौन शोषण का खुलासा हुआ। इसके बाद मामले की जानकारी स्कूल प्रिंसिपल को गई। तीन मार्च 2018 को आरोपी के खिलाफ पुलिस ने एफआईआर दर्ज की।
पीड़िता ने सुनवाई के दौरान कोर्ट में बताया कि 2017 में सितंबर महीने में, अक्तूबर और फिर 2018 में फरवरी महीने में उसका यौन शोषण किया गया। पीड़िता के मेडिकल में कोई भी बाहरी चोट नहीं पाई गई थी। हालांकि कोर्ट में दिए अपने बयान में पीड़िता ने बताया कि जो कुछ भी हुआ वो सहमति से किया गया था। इसके साथ ही बच्ची ने न्यायमूर्ति के सामने बयान दिया कि उसने पुलिस ने उसके जिस बयान को रिकॉर्ड किया था वो बयान उसकी टीचर जिद पर दर्ज किया गया था। इसके बाद निचली अदालत ने लड़के को दोषी करार दिया। अब दोषी ने हाई कोर्ट से जमानत की मांग की।
हाई कोर्ट में सुनवाई के दौरान न्यायमूर्ति ने कहा कि मैं जानता हूं कि कानून की नजर में नाबालिगों की सहमति को वैध नहीं माना जाता है, लेकिन नाबालिगों के बीच सहमति से बनाए गए यौन संबंधों पर भी कानूना का नजरिया सपष्ट नहीं है। इसके साथ ही कोर्ट का मानना है कि मामले में तथ्य विशिष्ट हैं। साथ ही कोर्ट ने कहा कि इस बात को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है कि पीड़िता ने अपना बयान बदला है। सुनवाई के दौरान न्यायालय ने कहा कि ट्रायल के दौरान भी आरोपी को जमानत मिली थी और उसने इसका दुरुपयोग नहीं किया। इन बातों को ध्यान में रखते हुए कोर्ट ने आरोपी की सजा को रद्द कर दिया।