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मकर संक्रांति का दिन है, सब खुशी-खुशी खिचड़ी खाने की तैयारी में हैं या कुछ सुबह सवेरे खा चुके हैं। हमने भी सोचा कि कुछ नया करें, पॉलिटिकल करें,नजर दौड़ाई तो बात बनती नजर आई। हिमाचल में इसी साल विधानसभा के चुनाव होने हैं, इस पहाड़ी प्रदेश में अमूमन रहा है कि सरकार रिपीट नहीं करती, बल्कि बदलती है। खैर ये हम नहीं कह सकते कि इस मर्तबा भी ऐसा ही होगा या राजनीतिक इतिहास बदलेगा। कांग्रेसी नेता बेहद उत्साहित हैं, बेलगाम हैं…कोई धुरी नहीं है,चूंकि संभालने वाला ही कोई नहीं है। उपचुनाव के बाद कांग्रेस में जीत का जश्न कम बल्कि अपने ही प्रदेश अध्यक्ष की जड़े खोदने में ज्यादा जुटे हुए हैं। पर इस बात पर कोई गौर नहीं कर रहा कि जनता का प्रेशर तो निकल गया, अब राह उतनी भी आसान नहीं रही, जितनी कांग्रेसी सोचकर चल रहे हैं।
हिमाचल जैसे पहाड़ी राज्य में कर्मचारी चुनाव में भगवान कहलाता है। राजनीतिक दलों पर सबसे ज्यादा प्रेशर भी वहीं बनाता है, और निकालता भी है। इस बार भी उपचुनाव में कर्मचारी ही था, जिसने प्रेशर बनाया था, और चारों सीटें बीजेपी को हरवाकर ही दम लिया। दूसरी जनता भी इसमें साथ दिया, महंगाई के नाम पर बीजेपी की सफाई कर डाली। इससे कांग्रेसियों का उत्साहित होना बनता है भई, क्यों ना हो चारों की चारों सीटें उस राज्य में जीत ली, जिसमें बीजेपी की सरकार हो। दूसरी तरफ बीजेपी सन्न हो गई, लेकिन उसके लिए बेहतर ये है कि कर्मचारी हों या जनता सबका प्रेशर उपचुनाव में निकल गया। अब तो विधानसभा चुनाव होने हैं, कांग्रेसी उत्साह में बने रहेंगे, बीजेपी उपचुनाव से सबक लेकर आगे बढ़ती रहेगी। यही बीजेपी का टर्निंग प्वाइंट है। जो नुकसान बीजेपी को आने वाले विधानसभा चुनाव में होना था, उसका आभास उसे उपचुनाव के आए नतीजों से हो गया। यानी बीजेपी आने वाले खतरे को अभी से भांप गई,और कांग्रेस धड़ों में बंट गई। हालत कांग्रेस की उपचुनाव की जीत के बाद ये हो गई की धड़ों में बंटे नेताओं ने कैबिनेट तक तय कर ली। जिसका प्रमाण हाल ही में दिल्ली में कांग्रेस के दो धड़ों की परेड है। खैर कुछ भी कहो उपचुनाव के दौरान जैसे प्रेशर छंट गया,वह कहीं ना कहीं बीजेपी को खतरे का आभास करा गया। बाकी अगली कड़ी में चर्चा करते रहेंगे।
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