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अग्निपथ स्कीम: SC में दायर हुईं 3 याचिका, केंद्र सरकार ने कैविएट फाइल कर रखी ये मांग
Last Updated on June 21, 2022 by sintu kumar
केंद्र सरकार की अग्निपथ योजना (Agnipath Scheme) को लेकर अभी तक सुप्रीम कोर्ट में तीन याचिकाएं दाखिल हो चुकी हैं। याचिका दाखिल करने वाले तीनों लोग पेशे से वकील हैं। वहीं, केंद्र सरकार ने भी कोर्ट में कैविएट दाखिल कर बिना उनके पक्ष को सुने एकतरफा आदेश ना पास करने की मांग की है।
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जानकारी के अनुसार, आज वकील विशाल तिवारी ने जस्टिस सी टी रविकुमार की अध्यक्षता वाली बेंच से अपनी याचिका पर जल्द सुनवाई करने की मांग की है। इस पर बेंच ने उन्हें रजिस्ट्री के सामने जल्द सुनवाई की मांग रखने को कहा है। वकील विशाल तिवारी ने अग्निपथ स्कीम के विरोध में हुई हिंसा और सार्वजनिक संपत्ति को हुए नुकसान की एसआईटी जांच को लेकर सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की है। इसके अलावा अग्निपथ स्कीम के राष्ट्रीय सुरक्षा और आर्मी पर पड़ने वाले प्रभाव की जांच के लिए भी सुप्रीम कोर्ट ते रिटार्य जज की अध्यक्षता में एक एक्सपर्ट कमेटी बनाने की मांग की गई है।
वहीं, वकील एमएल शर्मा ने कोर्ट में याचिका दाखिल कर अग्निपथ योजना को रद्द करने की बात कही है। याचिका में कहा गया है कि बिना संसद में विचार हुए इस स्कीम को लागू किया गया है। इस स्कीम को रद्द किया जाना चाहिए। जबकि, सुप्रीम कोर्ट में दाखिल तीसरी याचिका में पुनर्विचार की मांग की गई है। वकील हर्ष अजय सिंह की ओर से दायर याचिका में केंद्र सरकार को स्कीम पर पुनर्विचार करने की मांग की गई है। याचिका में कहा गया है कि चार साल की कम अवधि और अग्निवीरों की भविष्य की अनिश्चतताओं के चलते देशभर में विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं।
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याचिका में कहा गया है कि सरकारी खजाने पर बोझ कम करने की कवायद में राष्ट्रीय सुरक्षा के मसले पर कोई समझौता नहीं होना चाहिए। सरकार को कोशिश करनी चाहिए कि अपने आर्मी के जवानों की प्रतिभा का अधिकतम सदुपयोग कर सके। याचिका में अंदेशा जताया गया है कि चार साल की ट्रेनिंग के बाद रिटायर्ड हुए अग्निवीर बिना किसी नौकरी के गुमराह हो सकते हैं और ये राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा बन सकते हैं।
बता दें कि सुप्रीम कोर्ट में अग्निपथ योजना को लेकर दायर हो रही याचिकाओं के मद्देनजर केंद्र सरकार ने भी कैविएट दाखिल की है। केंद्र सरकार का कहना है कि अगर कोर्ट इन याचिकाओं पर सुनवाई कर कोई आदेश पास करता है तो उसके भी पक्ष को सुना जाना चाहिए। बिना सरकार के पक्ष सुने सुप्रीम कोर्ट एकतरफा आदेश पास ना करे।