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सोशल मीडिया पर आपके बच्चे भी सुरक्षित नहीं, बचाने के लिए कंपनियां कर सकती हैं हस्तक्षेप
मोबाइल फोन जहां आजकल सुविधा दे रहा है, वहीं सिरदर्द भी बन चुका है। सोशल मीडिया का क्रेज हो चुका है। बूढ़े, जवान और यहां बच्चे इसके अडिक्टेड हैं। ऐसे में पेरेंट्स (parents) की जिम्मेदारी बन जाती है कि वे अपने बच्चे पर निगरानी रखें कि कहीं उनके बच्चे सोशल मीडिया पर एक्टिव होकर कहीं गलत राह पर तो नहीं जा रहे। कहीं वे ऑनलाइन के जरिए अश्लील कंटेंट्स हानिकारक ग्राफिक्स और वेबसाइटों (websites) की ओर अग्रसर तो नहीं हो रहे। ऐसे में बच्चे साइबर बुलिंग का भी शिकार हो सकते हैं। ऐसे में वे क्या तरीके हैं जिनसे बच्चों को बचाया जा सके।
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इस बारे में ब्रिटेन की खुफिया एवं सुरक्षा संगठन और राष्ट्रीय साइबर सुरक्षा केंद्र,(National Cyber Security Center) फेसबुक, एपल जैसी कंपनियों का हस्तक्षेप जरूरी है। साइबर सुरक्षा एंजेंसियां चाहती हैं कि इस दिशा में एपल कंपनियां संदिग्ध गतिविधियों (suspicious activities) की लगातार निगरानी करें। ऐसा करना प्राइवेसी पर हमला नहीं कहा जा सकता। टेक कंपनियों को विवादास्पद के साथ आगे आना चाहिए। यह बात जीसीक्यू और एनसीएससी के तकनीकी प्रमुखों ने कही है। उन्होंने कहा कि ऐसी तकनीकें बाल शोषण की तस्वीरों को स्कैन कर लेती हैं। ऐसी दशा में फेसबुक या एपल जैसी कंपनियां इसे रोकने के लिए सेवा प्रदाता के रूप में शामिल होंगे।
हालांकि ये कंपनियां इस सुविधा को प्रदान करने में आनाकानी कर रही हैं। मगर इससे केंद्रीयकृत सर्वर के माध्यम से मैसेज कंटेंट को बिना भेजे यूजर्स के फोन या उपकरण में किसी भी संदिग्ध गतिविधि की निगरानी की जा सकती है। इससे किसी यूजर्स के डाटा या प्राइवेसी से छेड़छाड़ नहीं की जा सकती।विशेषज्ञों का मानना है कि क्लाइंट साइड साइड पूरी तरह से सुरक्षित है। इस संबंध में एनसीएससी के तकनीकी निदेशक इयान लेवी (Ian Levy) और जीसीएचक्यू के तकनीकी निदेशक क्रिस्पिन रॉबिन्सन (Crispin Robinson) ने कहा कि यह टेक्नोलॉजी पूरी तरह से सुरक्षित है। हमें ऐसा कोई कारण नहीं दिखता कि क्लाइंट साइड स्कैनिंग को तकनीकों को सुरक्षित रूप से लागू नहीं किया जा सकता है।