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हिमाचल कांग्रेस की उठापटक में ये वाले कहां…बड़ा खुलासा करती देखें वीडियो स्टोरी
Last Updated on December 24, 2021 by admin
- हॉली लॉज की चढ़ाई इन्हें अब नहीं आ रही रास
- हमीरपुर की तरफ कर लिया है इन्होंने अब रूख
- अगली लडाई के लिए इन्होंने बदला है अब पाला
- किसी को कानो-कान भी खबर नहीं लगने देते
- दिल्ली में हमीरपुर की कर आए हैं जनाब वकालत
राजेंद्र राणा (Rajinder Rana) मतलब वाया प्रेम कुमार धूमल। इनके खाते में एक बात तो जरूर जाती है कि इन्होंने पिछले विधानसभा चुनाव में बीजेपी के सीएम पद के कैंडिडेट प्रेम कुमार धूमल को सुजानपुर में हराकर जीत दर्ज करवाई थी। उसी के दम पर ये दिल्ली (Delhi) में अपनी गोटियां बिठाते हैं। लेकिन पिछले दिनों इनके बारे में सोशल मीडिया पर ऐसा भी लिखा गया कि राणा भागने में बहुत तेज हैं, जैसा कि शिमला से भागे थे। खैर इस बार भी वह भाग रहे हैं, पर चुपके से किसी को खबर भी नहीं। हो सकता है कि कांग्रेस के एक धड़े को इस बात की भनक हो कि राणा अब हॉली लॉज (Holly Lodge) की चढ़ाई चढते-चढते थक चुके हैं। वीरभद्र सिंह इस दुनिया में नहीं है,तो राणा मजबूर हैं। बात पहले वाया प्रेम कुमार धूमल की करते हैं,राणा को राजनीति में अंगुली पकड़कर लाए तो धूमल ही थे। राणा उसी वक्त चर्चा में आए भी थे, उस वक्त प्रेम कुमार धूमल की अगुवाई में (Himachal) हिमाचल में बीजेपी की सरकार बनी तो राणा को चेयरमैनी भी मिली। लेकिन भागने वाली बात उसी दौर की है,जो कुछ भी हुआ राणा भाग खड़े हुए।
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धूमल से दिल भर गया,सुजानपुर (Sujanpur) पर फोकस कर लिया। विधानसभा का चुनाव निर्दलीय जीत लिया। सरकार बदल चुकी थी, वीरभद्र सिंह सत्ता पर काबिज हो चुके थे। राणा की पींगे वीरभद्र सिंह से पड़नी शुरू हो चुकी थी। बड़ी कुर्बानी भी राणा ने दी,विधानसभा से इस्तीफा देकर कांग्रेस के टिकट पर लोकसभा का चुनाव लड़ा। हार गए,लेकिन वीरभद्र सिंह ने उन्हें चेयरमैनी दे दी। राणा लाल बत्ती वाले हो गए। सफर (Congress) कांग्रेस का था,संगठन पर सुखविंदर सिंह सुक्खू काबिज थे। वीरभद्र सिंह से छत्तीस का आंकड़ा लेकर चलने वाले सुक्खू को राणा कहां भाते। राणा की राहें जुदा रही। सुक्खू उनको फटकने नहीं देते। राणा इस दौर में वीरभद्र सिंह की अंगुली पकडकर हमीरपुर के सुजानपुर में अपना डंका बजाते चले गए। विधानसभा चुनाव आए और राणा कांग्रेस टिकट पर बडी जीत दर्ज करवाने में सफल रहे। पूरा उलटफेर हो गया,बीजेपी के सीएम पद के केंडिडेट प्रेम कुमार धूमल (Prem Kumar Dhumal) को हरा दिया।
खैर वक्त बीतता गया,वीरभद्र सिंह (Virbhadra Singh) का निधन हो गया। उस वक्त तक कांग्रेस संगठन में कुलदीप राठौर (Kuldeep Rathore) काबिज हो चुके थे। राणा ने राठौर की बांह भी कसकर पकड़ ली। वक्त बीतने के साथ लगा कि राठौर के ही खिलाफ मोर्चाबंदी मजबूती से होने लगी है,पार्टी सीधे-सीधे राठौर को छोड़कर दो ध्रुवों में बंटने लगी है, राणा ने बड़ी ही चतुराई से पहले सब कुछ समझा,फिर अपने को आने वाले वक्त में कहां फिट बिठाना है,वह राह पकड़ी। किसी को पता भी नहीं चला राणा दिल्ली पहुंचे और ऐसा ताना-बाना बुनते चले गए कि सुनकर आप भी हैरत में पड़ जाएंगे। हालांकि,राजनीति में ये सब चलता है,राणा जब प्रेम कुमार धूमल का साथ छोड़ सकते हैं तो फिर कुछ भी कर सकते हैं। खैर उनकी गिठमिठ इससे पहले छत्तीस का आंकड़ा रखने वाले (Sukhwinder Singh Sukhu) सुखविंदर सिंह सुक्खू से हो चुकी थी। राणा ने देखा कि हॉली लॉज की बांह पकड़कर तो मुकेश अग्निहोत्री (Mukesh Aghnihotri) व सुधीर शर्मा (Sudhir Sharma) चल रहे हैं। वहां उनकी दाल शायद नहीं गल पाएगी। उन्होंने दांव खेला और संगठन पर काबिज होने की चल रही इस जंग में सुक्खू का पल्ला पकड़ लिया। समझ गए होंगे आप, राणा अब सुक्खू की पैरवी कर रहे हैं। ये बात आज की नहीं है, बल्कि पिछले करीब 20 से 25 दिन से तैर रही है।
पुख्ता है कि राणा ने सुक्खू से सारे मन-मुटाव मिटाकर अब उनकी पैरवी अध्यक्ष (President) या फिर नेता प्रतिपक्ष (Leader of Opposition) पद के लिए दिल्ली में कर दी है। राणा आगे की राजनीति को पुख्ता कर रहे हैं। उन्हें लगता है कि हिमाचल में कांग्रेस सरकार बनने की स्थिति में सुक्खू उनके लिए फिट साबित हो सकते हैं। ऐसे में राणा अब सुक्खू के पाले में हैं। कांग्रेस की हिमाचल की राजनीति में अब हमीरपुर (Hamirpur) के दो ठाकुर इकट्ठा हो चुके हैं। ये ही सच है। हो सकता है कि राणा इस सच को सार्वजनिक नहीं होने देना चाहते थे,अभी तक इसलिए वह चुप-चाप चंडीगढ़ नगर निगम चुनाव में अपनी व्यस्तता दिखा रहे थे। ऐसा भी हो सकता है कि वह इस पूरी रपट को ही नकार दें। खैर ये तो हमेशा होता आया है,जब भी अंदर की बात बाहर आएगी तो कौन पचा पाएगा।
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