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बर्फ के इस शहर में मरने की भी इजाजत नहीं, पढ़े कहां है यह जगह
विश्व के आखिरी छोर पर नार्वे और उत्तरी ध्रुव के बीच एक छोटा सा शहर है लॉगइयर बेन इस शहर का नाम इसके खोजकर्ता के नाम पर रखा गया। शहर की आबादी बहुत कम है अमूमन सिर्फ 3000 लोग यहां रहते हैं। यहां का तापमान पूरे साल शून्य से नीचे रहता है। इस शहर में खून जमा देने वाली ठंडक पड़ती है और जिंदगी मुश्किल हो जाती है।
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बर्फ से ढके होने के कारण यहां सड़कों के नाम नहीं नंबर होते हैं। यातायात के लिए स्नो स्कूटर का इस्तेमाल किया जाता है। यहां 25 अक्टूबर से 8 मार्च तक सूरज नहीं निकलता यानी कि पूरे चार महीने बाद सूरज के दोबारा दर्शन होते हैं। जिस दिन सूरज को फिर से आना होता है वह दिन यहां के लोगों के लिए उत्सव की तरह होता है। सभी एक जगह खड़े होकर सूरज को आता हुआ देखते हैं तथा उसके आगमन का स्वागत करते हैं।
रेंडियर्स यहां आराम से घूमते रहते हैं और उन्हें किसी से डर नहीं लगता। ठीक इसी तरह ध्रुवीय भालू भी यहां आराम से टहलते देखे जा सकते हैं। इस शहर की जो सबसे रोचक कहानी है वह, यह कि यहां किसी को मरने की इजाजत नहीं है। यहां एक छोटा सा कब्रिस्तान है जिसमें 70 साल पहले दफनाए गए लोगों का शरीर जैसे का तैसा ही सुरक्षित है। वे जमीन में घुले नहीं और तो और वे जिस बीमारी से मरे थे उसके वायरस भी उनके शरीर वैसे ही मौजूद हैं इसलिए प्रशासन यहां के लोगों के मरने पर पाबंदी लगा दी है और जब किसी को मरना होता है तो वह दूसरे शहर चला जाता है।
बता दें कि एक शोध (Research) में यह पता चला कि साल 1917 में इनफ्लुएंजा (Influenza) के कारण एक शख्स की मौत हुई थी। उसके शव में इनफ्लुएंजा के वायरस जस के तस पड़े रहे थे। जिससे बाकी लोगों में भी इसके संक्रमण का खतरा बढ़ गया था। इस बीमारी को फैलने से रोकने के लिए वहां के प्रशासन ने शहर में मौत पर रोक लगा दी थी। अब आप सोच रहे होंगे कि मौत पर कैसे बैन लगाया जा सकता है और अगर यहां कोई मरता है तो इसकी बॉडी के साथ क्या किया जाया है। अगर यहां कोई मरता है या मरने वाला होता है तो उस इंसान को हेलिकॉप्टर की मदद से देश के दूसरे हिस्से में ले जाते हैं और मरने के बाद शव का अंतिम संस्कार किया जाता है।
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