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नहाय-खाय के साथ आज से शुरू हुआ लोक आस्था का महापर्व छठ पूजा
महापर्व छठ दिवाली के 6 दिन बाद मनाया जाता है। इस पर्व की शुरुआत नहाय-खाय के साथ शुरू हो जाती है। छठ पर्व की शुरुआत आज यानी 28 अक्तूबर से हो रही है। यह सूर्य उपासना का सबसे बड़ा त्योहार होता है। हिंदू पंचांग के अनुसार कार्तिक शुक्ल पष्ठी तिथि पर छठ पूजा मनाई जाती है। इस पर्व में भगवान सूर्य के साथ छठी माई की भी पूजा-उपासना विधि-विधान के साथ की जाती है। धार्मिक मान्यता के अनुसार छठ का त्योहार व्रत संतान प्राप्ति करने की कामना, कुशलता,सुख-समृद्धि और उसकी दीर्घायु की कामना के लिए किया जाता है। चतुर्थी तिथि पर नहाय-खाय से इस पर्व की शुरुआत हो जाती है और षष्ठी तिथि को छठ व्रत की पूजा,व्रत और डूबते हुए सूरज को अर्घ्य के बाद अगले दिन सप्तमी को उगते सूर्य को जल देकर प्रणाम करने के बाद व्रत का समापन किया जाता है। मुख्य तौर पर पूर्वांचल के लोग छठ पूजन को पूरे उत्साह व उल्लास के साथ मनाते हैं।
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पहला दिन- नहाय खायः इस दिन छठ पूजा की शुरूआत होती है। इस दिन को नहाय खाय के नाम से जाना जाता है। इस दिन व्रत करने से पहले एक बार ही खाना होता है।
दूसरा दिन – खरनाः छठ का दूसरा दिन खरना कहलाता है। इस दिन सूर्योदय से लेकर सूर्यास्त तक महिलाओं का व्रत रहता है। सायंकाल में सूर्यास्त के बाद व्रत का पारण करना होता है। उसके बाद भोजन तैयार किया जाता है। सूर्य भगवान को भोग अर्पित किया जाता है।
तीसरा दिन –अर्ध्यः यह छठ पूजन का तीसरा व सर्वाधिक महत्वपूर्ण दिन है। इसमें भगवान सूर्य को अस्त होते हुए अर्ध्य दिया जाता है। बांस की टोकरी में फल, ठेकुआ, चावल के लड्डू आदि पूजन सामग्री से सूर्यदेव की आराधना की जाती है। सूर्य को अर्ध्य देते हुए छठ गीत गाए जाते हैं।
चौथा दिन- उषा अर्ध्यः छठ पूजन के चौथे व अंतिम दिन उगते हुए सूर्य को अर्ध्य दिया जाएगा। इसे उषा अर्ध्य कहते हैं। 36 घंटे के व्रत के बाद यह अर्ध्य दिया जाता है। सूर्योदय को अर्ध्य देने के बाद छठ पर्व संपन्न हो जाएगा।
छठ पूजा पर छठी मैया की पूजा और लोकगीत गाया जाता है। शास्त्रों के अनुसार छठ देवी भगवान ब्रह्माजी की मानस पुत्री और सूर्यदेव की बहन हैं। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार ब्रह्माजी ने सृष्टि रचने के लिए स्वयं को दो भागों में बांट दिया,जिसमें दाहिने भाग में पुरुष और बाएं भाग में प्रकृति का रूप सामने आया। सृष्टि की अधिष्ठात्री प्रकृति देवी ने अपने आपको छह भागों में विभाजित किया । इनके छठे अंश को सर्वश्रेष्ठ मातृ देवी या देवसेना के रूप में जाना जाता है। प्रकृति का छठा अंश होने के कारण इनका एक नाम षष्ठी है, जिसे छठी मैया के नाम से जाना जाता है। शिशु के जन्म के छठे दिन भी इन्हीं की पूजा की जाती है। इनकी उपासना करने से बच्चे को स्वास्थ्य,सफलता और दीर्घायु का आशीर्वाद मिलता है। नवरात्र पर षष्ठी तिथि को इनकी पूजा की जाती है।