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हाईकोर्ट की सरकार को फटकार- मुकद्दमेबाजी पर खर्च कर रही भारी भरकम राशि
शिमला। हिमाचल प्रदेश सरकार आज की तारीख में सबसे बड़ी मुकद्दमे बाज है, जो भारी भरकम राशि मुकद्दमे बाजी पर खर्च कर रही है और इस से सरकारी खजाने पर बेवजह वितीय बोझ पड़ रहा है। सरकारी अधिकारियों को झगड़ालू ढंग से मुकद्दमेबाजी करने की बजाय अपनी जिम्मेवारियां अपने कंधों पर लेनी चाहिए। न्यायाधीश तरलोक सिंह चौहान और न्यायाधीश सत्येन वैद्य की खंडपीठ ने शिक्षा विभाग में डेपुटेशन से जुड़े मामले का निपटारा करते हुए सरकार पर यह टिप्पणी की। कोर्ट ने कहा कि बार बार सरकार पर दबाव डाला जाता रहा है कि वह मुकदमेबाजी नीति को लागू करे। तभी कोर्ट यह उम्मीद कर सकता है कि सरकार के मुकदमे में कोई समझ और संवेदनशीलता है।
प्रिंसिपल ने भारमुक्त नहीं किया था प्रार्थी कृष्ण लाल को
मामले के अनुसार प्रार्थी कृष्ण लाल की नियुक्ति जिला शारीरिक शिक्षा अध्यापक यानी डीपीई के पद पर हुई थी। उसने जिले में सबसे वरिष्ठ डीपीई होने के नाते डिप्टी डॉयरेक्टर हायर एजुकेशन कुल्लू में एसिस्टेंट डिस्ट्रिक्ट फिजिकल एजुकेशन ऑफिसर यानी एडीपीईओ के तौर पर तैनाती का आवेदन किया। 4 मार्च 2023 को उच्चतर शिक्षा निदेशक ने अधिसूचना जारी कर जिले में सबसे वरिष्ठ डीपीई को बिना डेपुटेशन भत्ते के एडीपीईओ के पद पर तैनाती के आदेश जारी किए।
13 मार्च को प्रार्थी के आवेदन को स्वीकारते हुए उसे एडीपीईओ के पद पर तैनाती के आदेश जारी कर दिए गए। उसे 20 मार्च को उपनिदेशक कार्यालय कुल्लू में रिपोर्ट करने को कहा गया। इसलिए प्रार्थी ने 18 मार्च को बजौरिया वरिष्ठ माध्यमिक पाठशाला के प्रिंसिपल को उसे कार्यभार मुक्त करने के लिए आवेदन दिया ताकि वह उपनिदेशक कार्यालय में रिपोर्ट कर सके। 20 मार्च को फिर से प्रिंसिपल को रिमाइंडर भेजा गया परंतु प्रिंसिपल ने उसे भारमुक्त नहीं किया। 20 मार्च को ही उपनिदेशक कुल्लू ने प्रार्थी को सूचित किया कि उसके डेपुटेशन के आदेश तुरंत प्रभाव से रद्द कर दिए गए हैं। इतना ही नहीं हैरानी कि बात तो यह रही कि इसके बाद प्रतिवादी सुभाष शर्मा को एडीपीईओ के पद पर तैनाती करने के आदेश जारी कर दिए गए। प्रार्थी को शिक्षा विभाग के इस रवैए के खिलाफ हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाना पड़ा।
डेपुटेशन को रद्द करने की असली वजह नहीं बता पाया शिक्षा विभाग
हाईकोर्ट में भी शिक्षा विभाग प्रार्थी के डेपुटेशन को रद्द करने की असली वजह नहीं बता पाया। कोर्ट ने पूरे मामले को खंगालने के बाद स्कूल के प्रिंसिपल को कसूरवार पाया जिसने बार बार अनुरोध के बावजूद प्रार्थी को भारमुक्त नहीं किया। कोर्ट ने उच्चतर शिक्षा निदेशक के जवाब पर हैरानी जताई और कहा कि यदि प्रतिवादी अधिकारियों ने स्पष्ट तौर पर प्रिंसिपल की गलती मानी होती तो अधिकारी की सराहना की जा सकती थी। परंतु वे ऐसे कारणों की ढूंढने में जुट गए जो बिल्कुल गलत, बेतुके और कानून की नजर में टिकाऊ नहीं है। कोर्ट ने याचिका को स्वीकारते हुए कहा कि सरकार ने अपनी अनुचित कार्रवाई को उचित ठहराने का प्रयास किया।