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हिमाचल हाईकोर्ट ने दो सिविल जजों की नियुक्तियों को ठहराया अवैध, की खारिज-जाने कारण
शिमला। हिमाचल हाईकोर्ट (Himachal High court) ने दो सिविल जजों (Civil Judges) की नियुक्तियों को अवैध करार दिया है। साथ ही इनकी नियुक्तियों को खारिज कर दिया है। न्यायाधीश तरलोक सिंह चौहान व न्यायाधीश संदीप शर्मा ने दोनों जजों की नियुक्तियों को चुनौती देने वाली याचिका का निपटारा करते हुए सिविल जज विवेक कायथ व आकांक्षा डोगरा की नियुक्तियों को रद्द करने का फैसला सुनाया। अदालत ने अपने फैसले में कहा कि नियमों के विपरीत पूरी की गई चयन प्रक्रिया अवैध है। इस लिए इन नियुक्तियों को रद्द किया जाता है। अदालत ने अपने निर्णय में आगे कहा कि न्याय प्रक्रिया में जनमानस के गूढ़ विश्वास के दृष्टिगत यह वांछित है कि इस प्रक्रिया से जुड़े लोगों का चयन पारदर्शी तरीके से हो। यदि लोगों के मामलों का निपटारा करने वाले अधिकारी की अपनी चयन प्रक्रिया (Selection Process) नियमों के विपरीत हो तो इससे लोगों का न्याय पालिका से विश्वास उठ जायेगा। प्रदेश लोक सेवा आयोग (HPPSC) द्वारा की गई गलती पर भी हाईकोर्ट ने आयोग को चेताया कि भविष्य में इस तरह की गलती न दोहराए।
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मामलों का निपटारा करते हुए कोर्ट ने पाया कि दोनों जजों की नियुक्तियां उन पदों के खिलाफ की गई जिनका कोई विज्ञापन नहीं दिया गया। बिना विज्ञापन के इन पदों को भरने पर कोर्ट ने हिमाचल प्रदेश लोक सेवा आयोग को चेताया कि भविष्य में ऐसी लापरवाही ना करे। मामले के अनुसार पहली फरवरी 2013 को प्रदेश लोक सेवा आयोग ने सिविल जजों के 8 रिक्त पदों को भरने के लिए विज्ञापन के माध्यम से आवेदन आमंत्रित किए। इनमें 6 पद पहले से रिक्त थे और दो पद भविष्य में रिक्त होने थे। आयोग ने अंतिम परिणाम निकाल कर कुल 8 अभ्यर्थियों की नियुक्तियों की अनुशंसा सरकार से की व अन्य सफल अभ्यर्थियों की एक सिलेक्ट लिस्ट भी तैयार की। इस बीच प्रदेश में दो सिविल जजों के अतिरिक्त पद सृजित किए गए। लोक सेवा आयोग ने इन दो पदों को सिलेक्ट लिस्ट से भरने की प्रक्रिया आरम्भ की और विवेक कायथ और आकांक्षा डोगरा को नियुक्ति देने की अनुशंसा की। सरकार ने इन्हें नियुक्तियां भी दे दी थी। कोर्ट ने दोनों की नियुक्तियों को रद्द करते हुए कहा कि इन नए सृजित पदों को कानूनन विज्ञापित किया जाना जरूरी था, ताकि अन्य योग्यता रखने वाले अभ्यर्थियों को इन पदों के लिए प्रतिस्पर्धा का मौका भी मिलता। कोर्ट ने फैसले में स्पष्ट किया है कि इन जजों की नियुक्तियां रद्द होने से इन पदों को वर्ष 2021 की रिक्तियां माना जाए व इन्हें भरने की प्रक्रिया कानून के अनुसार की जाए।
भरण पोषण प्राथमिक उपचार देना जैसा : हाईकोर्ट
वहीं, प्रदेश हाईकोर्ट ने अंतरिम भरण पोषण को न्यायिक दृष्टि से महत्वपूर्ण ठहराते हुए इसे प्राथमिक उपचार देने जैसा बताया। कोर्ट ने यह बात प्रार्थी सुभाष चंद की ओर से दायर याचिका का निपटारा करते हुए कही। प्रार्थी ने ट्रायल कोर्ट के उन आदेश को चुनौती दी थी जिसके तहत उसे अपनी पत्नी को 2000 रुपये मासिक भरण पोषण देने के आदेश दिए गए थे। याचिका का निपटारा करते हुए न्यायाधीश अनूप चिटकारा ने कहा कि भरण पोषण दंड प्रक्रिया संहिता 1973 के तहत एक त्वरित उपाय है। इसके तहत आवेदक को भुखमरी से बचाने के लिए सारांश प्रक्रिया द्वारा और एक परित्यक्त पत्नी या बच्चों द्वारा तत्काल कठिनाइयों से निपटने के लिए रखरखाव के माध्यम से कुछ उचित राशि सुरक्षित की जाती है। अदालत ने कहा कि यह उपाय संवैधानिक है क्योंकि यह एक जीवंत लोकतंत्र में एक कल्याणकारी राज्य की स्थापना की अवधारणा को पूरा करता है जिसके तहत पत्नियों की रक्षा करके और बच्चों और उन्हें आवारापन से रोका जाना जरूरी है। इसलिए यह न्यायालयों के लिए उपयुक्त होगा कि उस व्यक्ति को उचित राशि का भुगतान करने के लिए अंतरिम आदेश जारी कर निर्देशित करें जिसके खिलाफ सीआरपीसी की धारा 125 के तहत भरण पोषण के लिए आवेदन किया गया है।
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