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#Himachal_ High Court की नागरिक आपूर्ति निगम के अधिकारियों को फटकार, जाने मामला
शिमला। बिना निविदा आमंत्रित किए सिलेंडर वितरण का ठेका मनमाने तरीके से दिए जाने पर हाईकोर्ट (High Court) ने नागरिक आपूर्ति निगम (Civil Supplies Corporation) के अधिकारियों को फटकार लगाई है। न्यायाधीश तरलोक सिंह चौहान व न्यायाधीश ज्योत्स्ना रिवाल दुआ की खंडपीठ ने स्पष्ट किया कि हालांकि निगम को किसी भी कॉरपोरेट की तरह संपत्ति रखने की शक्ति है, लेकिन उसका नियमों के अनुसार कड़ाई से निष्पक्ष और पारदर्शी तरीके से बिना किसी भाई-भतीजावाद के अनुबंध में प्रवेश आवश्यक है। न्यायालय (Court) ने चेताया कि विवेक का अर्थ है कानून द्वारा निर्देशित ठोस विवेक या शासित नियमों के सिद्धांत द्वारा निर्धारित पहलुओं पर गौर करते हुए कार्य करना। इसका इस्तेमाल मनमाने तरीके से करने की कानून इजाजत नहीं देता है। न्यायालय ने राज्य नागरिक आपूर्ति निगम के अधिकारियों के कामकाज पर कड़ी प्रतिक्रिया व्यक्त की। जिन्होंने ठेकेदारों को बिना टेंडर आमंत्रित किए ही खाना पकाने का सिलेंडर (Cylinder) के वितरण का कार्य आवंटित कर दिया। अदालत ने सिविल सप्लाई को निर्देश दिया कि वह खाना पकाने की गैस के वितरण के लिए निविदा व्यापक प्रचार देकर आमंत्रित कर, पूरी प्रक्रिया छह सप्ताह की अवधि में पूरी करें।
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अदालत ने दर्शन सिंह की याचिका पर यह निर्णय सुनाया, जिसमें यह आरोप लगाया गया था कि निगम ने बिना कोई विज्ञापन (Advertisement) जारी किए रसोई गैस के वितरण कार्य के आवंटन के लिए उससे सिलेंडर वितरण कार्य वापस लेने के बाद यह कार्य अन्य ठेकेदारों को आवंटित किया। क्योंकि वे कम दर पर यह काम करने के लिए तैयार थे। नागरिक आपूर्ति निगम की कार्यशैली पर पर सवालिया निशान लगाते हुए हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया कि निगम के अधिकारी अपने विवेक का इस्तेमाल करने में विफल रहे हैं। विवेक का इस्तेमाल केवल तभी हो सकता है यदि ऐसा करने की कानून द्वारा शक्ति प्रदान की गई हो। अन्यथा विवेक का इस्तेमाल नहीं कर सकते, क्योंकि यह कानून के विपरीत होगा। एक कानून द्वारा शासित व्यवस्था में, विवेक जब एक पर प्रदान किया जाता है तो कार्यकारी प्राधिकरण को स्पष्ट रूप से परिभाषित सीमाओं के भीतर सीमित होना चाहिए। अगर विवेक का प्रयोग बिना किसी सिद्धांत के या बिना किसी नियम के किया जाता है तो यह कानून के शासन के प्रतिशोध की स्थिति में होगा।
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न्यायालय ने आगे कहा कि यह बेहद अफसोसजनक है कि निगम के अधिकारी पूरी तरह से इस तथ्य से बेखबर रहे हैं कि कार्यालय जो उन्हें सौंपा गया वह पवित्र स्थान है। यह पवित्र स्थान उपयोग के लिए है ना कि दुरुपयोग के लिए। अधिकारी राजशाही के रूप में कार्य नहीं कर सकते हैं और लोकतंत्र में समानता के सिद्धांतों के अनुसार एकजुटता से कार्य करने के लिए बाध्य हैं ।
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