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Himachal : आईआईटी मंडी के शोधकर्ताओं ने बनाया आधुनिक मास्क, खासियत जान हो जाएंगे हैरान
मंडी। आईआईटी मंडी के शोधकर्ताओं ने एक ऐसा फैब्रिक बनाया है, जिससे बनाया गया मास्क आप एक या दो बार नहीं बल्कि कई बार इस्तेमाल कर पाएंगे। मास्क की खास बात यह है कि इसे धोने की ज्यादा जरूरत भी नहीं होगी। मास्क को थोड़ी देर तेज धूप में रखते ही इसमें लगे सभी वायरस खत्म हो जाएंगे और मास्क दोबारा से इस्तेमाल के लिए तैयार हो जाएगा। हालांकि इसे धोया भी जा सकता है, लेकिन बार-बार धोने से झंझट से निजात दिलाने के लिए इसमें ऐसी तकनीक इस्तेमाल की गई है कि इसे तेज धूप में रखते ही यह दोबारा इस्तेमाल के लिए पूरी तरह से तैयार हो जाएगा।
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इसके लिए पॉलिकॉटन फैब्रिक का प्रयोग किया गया है और उसमें मुनष्य के बाल की चौड़ाई से सौ हजार गुणा बारीक सामग्रियों का इस्तेमाल करके तैयार किया गया है। इस अभूतपूर्व सामग्री को बनाया है आइआइटी मंडी के स्कूल ऑफ बेसिक साइंसेज के सहायक प्रोफेसर डा. अमित जायसवाल और उनके शोध विद्वानों ने। उनकी टीम में प्रवीण कुमार, शौनक रॉय और अंकिता सकरकर शामिल रहे हैं। इन्होंने ऐसे समय में यह शोध किया है जब देश में कोविड-19 महामारी की दूसरी लहर रोकने के लिए ऐसी तकनीकियों का विकास करना अनिवार्य हो गया है।
क्या कहते हैं डा. जायसवाल
डा. जायसवाल का कहना है कि इस फेस मास्क आजकल दैनिक जीवन का अहम हिस्सा बन चुका है और लोग बार-बार नया मास्क खरीदने को मजबूर हैं। रोजाना लाखों-करोड़ों की संख्या में नए मास्क इस्तेमाल हो रहे हैं और उससे कूड़ा अधिक फैलने का अंदेशा बनता जा रहा है। वहीं जो मास्क फैंके जा रहे हैं उससे वायरस के फैलने का भी खतरा है। ऐसे माहौल में एक ऐसे मास्क की जरूरत थी जिसकी कीमत कम हो और वो लंबे समय तक वायरस से सुरक्षा दे सके। इसलिए तकनीक का इस्तेमाल करके इस मास्क का निर्माण किया गया है जो सिर्फ धूप में रखने से ही रियूज के लिए पूरी तरह से सुरक्षित रूप में तैयार हो जाएगा।
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यदि इसे साबुन से 60 बार भी धो देंगे तो भी यह इस्तेमाल के लिए सुरक्षित रहेगा और वायरस की रोकथाम में अपनी भूमिका निभाएगा। इससे सांस लेने में भी कोई कठिनाई नहीं आएगी। शोध के परिणाम हाल ही में अमेरिकन केमिकल सोसाइटी के प्रतिष्ठित जर्नल – एप्लाइड मैटीरियल्स एण्ड इंटरफेसेज़ में प्रकाशित हुए हैं। हमें विश्वास है कि इस इनोवेशन का हमारे समाज पर बहुत अधिक और तत्काल प्रभाव होगा जिसकी वैश्विक कोविड-19 महामारी की वर्तमान स्थिति में सबसे अधिक जरूरत है। प्रस्तावित मटीरियल से बने स्क्रीन/शीट से मेकशिफ्ट आइसोलेशन वार्ड, कंटेनमेंट सेल और क्वारंटीन बनाकर संक्रमितों को अलग से सुरक्षित रखना भी आसान होगा।
कुछ ऐसी तकनीक का किया है इस्तेमाल
डा. जयसवाल और उनकी टीम ने फैब्रिक में मोलिब्डेनम सल्फाइड, एमओएस 2 के नैनोमीटर आकार के शीट शामिल किए जिनके धारदार किनारे और कोने नन्हे चाकू बन कर बैक्टीरिया और वायरल झिल्ली को छेद कर उन्हें मार देते हैं। मोलिब्डेनम सल्फाइड के नैनोशीट्स माइक्रोबियल मेम्ब्रेन को ध्वस्त करने के अतिरिक्त प्रकाश में आने पर संक्रमण से मुक्ति भी देते हैं। मोलिब्डेनम सल्फाइड फोटोथर्मल गुणों का प्रदर्शन करते हैं अर्थात, ये सौर प्रकाश को ग्रहण करते और इसे ताप में बदल देते हैं जो रोगाणुओं को मारता है। सौर विकिरण आरंभ होने के 5 मिनट के अंदर सभी एमओएस 2-मोडिफाइड फैब्रिक 100 प्रतिशत ई. कोलाई और एस. ऑरियस का नाश करते दिखते हैं। हाल में प्रकाशित शोधपत्र में विद्वानों ने लिखा है। इस मास्क को केवल तेज धूप में रख देने से यह साफ और फिर से पहनने योग्य हो सकता है।