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यहां आज भी विराजमान हैं भगवान शिव, जानें मंदिर से जुड़ा हर रहस्य
देवों के देव महादेव शिव शंकर का एक नाम पशुपति नाथ (Pashupatinath) भी है। जिसका मतलब है भगवान शिव चारों दिशाओं में विराजमान हैं। इसी नाम पर भगवान शिव का एक मंदिर भी है जो नेपाल में है। इस मंदिर को 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक केदारनाथ धाम का आधा हिस्सा माना जाता है। मान्यता है कि भगवान शिव आज भी यहां विराजमान हैं। चलिए जानते हैं इस मंदिर का इतिहास और क्या है इस मंदिर में ख़ास..
भगवान शिव का पशुपतिनाथ मंदिर नेपाल की राजधानी काठमांडू (Nepal’s capital Kathmandu) से 3 किलोमीटर उत्तर-पश्चिम देवपाटन गांव में बागमती नदी के तट पर स्थित है। ऐसा माना जाता है कि भगवान शिव आज भी यहां बसते हैं। धार्मिक ग्रंथों के अनुसार भगवान श्री पशुपतिनाथ परब्रह्म शिव के अनादि रूप हैं। वह पंच वक्रम् त्रिनेत्रम् नाम से जाने जाते हैं। ॐकार के उत्पत्ति भगवान शिव के दक्षिण मुह से अ कार, पश्चिम मुंह से उ कार, उत्तर मुंह से म कार, पूर्व मुंह से चन्द्रविन्दु और उर्ध्व ईशान मुंह से नाद के रूप में हुई थी।
किसने कराया मंदिर का निर्माण
कहा जाता है कि ईसा पूर्व तीसरी सदी में सोमदेव राजवंश के पशुप्रेक्ष नामक राजा ने पशुपतिनाथ मंदिर को बनवाया था। कहा जाता है इस मंदिर में गैर हिंदू प्रवेश नहीं कर सकते (Non Hindus cannot enter) हैं। लेकिन वह यहां बाहर से दर्शन कर सकते हैं। इस मंदिर के गर्भगृह में पंचमुखी शिवलिंग (Panchmukhi Shivalinga) है। कहते हैं कि ऐसा विग्रह दुनिया में कहीं और नहीं है। हिंदू पुराणों के अनुसार पशुपतिनाथ मंदिर का इतिहास हजारों साल पुराना है।
यहां दर्शन से पशु योनि से मिलती है मुक्ति
मान्यता है कि 84 लाख योनियों में भटकने के बाद मनुष्य जन्म की प्राप्ति होती है। साथ ही व्यक्ति के कर्मों के अनुसार उस पुन: शेष योनियों से गुजरना पड़ता है। जिसमें से एक पशु योनि भी होती है। माना जाता है कि पशु योनि अत्यंत कष्टदायक होती है, इसलिए सभी मनुष्य योनि में जन्म लेने के बाद मोक्ष प्राप्ति के लिए प्रयास करते है। पशुपतिनाथ मंदिर को लेकर यह मान्यता है कि यहां भगवान शिव के इस ज्योतिर्लिंग के दर्शन करने से व्यक्ति को मोक्ष की प्राप्ति होती है।
भगवान शिव से पहले न करें नंदी के दर्शन
लेकिन भक्तों को इस बात का खास ध्यान रखना होता है कि वह भगवान शिव के दर्शन करने से पहले नंदी के दर्शन न करें। क्योंकि ऐसा करने से इंसान को अगले जन्म में पशु योनि में ही जाना पड़ता है।
आर्य घाट का जल
पशुपतिनाथ मंदिर के बाहर आर्य घाट स्थित है पौराणिक काल से ही केवल इसी घाट के जल को मंदिर के भीतर ले जाए जाने का प्रावधान है। मंदिर में आप किसी अन्य स्थान का जल लेकर प्रवेश नहीं कर सकते हैं।
पंचमुखी शिवलिंग का महत्व
मंदिर में स्थापित शिवलिंग के पांचों मुखों के अलग-अलग गुण हैं। जो मुख दक्षिण की और है उसे अघोर मुख कहा जाता है, पश्चिम मुख को सद्योजात, पूर्व और उत्तर की तरफ मुख को तत्पुरुष और अर्धनारीश्वर कहा जाता है। जो मुख ऊपर की ओर है, उसे ईशान मुख कहा जाता है। यह निराकार मुख है। यह भगवान पशुपतिनाथ का श्रेष्ठतम मुख है।
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