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मां दुर्गा को अर्पित किया जाता है सिंदूर, नवरात्र में भेंट करें ये चीजें
Last Updated on September 15, 2022 by sintu kumar
हर साल अश्विन माह के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि से नवरात्र (Navratri) की शुरुआत होती है। नवरात्र के दौरान पूरे 9 दिन तक मां दुर्गा की पूजा अर्चना की जाती है। हमारे देश में हर समुदाय के लोग अलग-अलग तरीके से नवरात्रि मनाते हैं। आज हम आपको बंगाली (Bengali) समुदाय द्वारा निभाई जाने वाले सिंदूर खेला की रस्म के बारे में बताएंगे।
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मान्यता है कि नवरात्र के नौ दिन मां दुर्गा अपने मायके आती हैं। नवरात्र के दौरान देशभर में मां दुर्गा के पंडाल सजाए जाते हैं। नवरात्र के दौरान बंगाली समुदाय के लोग अपने घरों में मां दुर्गा की स्थापना करते हैं। इसके बाद विजय दशमी के दिन ये लोग मां दुर्गा का विसर्जन करते हैं। इसी दिन ये लोग सिंदूर खेला की रस्म भी करते हैं। इस दिन सुहागिन महिलाएं मां दुर्गा को सिंदूर अर्पित करती हैं। दशमी के दिन ये लोग सिंदूर से होली खेलते हैं और मां दुर्गा को विदाई देते हैं।
बता दें कि बंगाल, पश्चिम बंगाल और बांग्लादेश आदि जगहों पर नवरात्रि के दौरान भव्य समारोह आयोजित किए जाते हैं। कहा जाता है कि जब मां दुर्गा अपने मायके से विदा होकर अपने ससुराल जाती हैं, तो उनकी मांग सिंदूर से भरी जाती है।
ये होती हैं सिंदूर खेला रस्म
बंगाली समुदाय में सिंदूर खेला की रस्म दुर्गा विसर्जन के दिन किया जाता है। लोग सिंदूर खेला रस्म के दौरान पान के पत्तों को मां दुर्गा के गालों पर स्पर्श करके मां दुर्गा की मांग भरते हैं और फिर माथे पर सिंदूर लगाते हैं। इसके बाद मां दुर्गा को पान और मिठाई आदि का भोग लगाते हैं। इसके बाद सुहागिनें एक-दूसरे को सिंदूर लगाती हैं और पति की लंबी आयु की कामना करती हैं।
भेंट करते हैं ये चीजें
बता दें कि जिस तरह लोग बेटियों की विदाई करते समय खाने-पीने का सामान और अन्य चीजें भेंट करते हैं ठीक उसी प्रकार बंगाली समुदाय के लोग मां दुर्गा की विदाई करते हैं। मां दुर्गा की विदाई के समय उनके साथ पोटली और श्रृंगार की कई चीजें रखी जाती हैं।
निभाई जाती है सदियों पुरानी प्रथा
कहा जाता है कि ये प्रथा इसलिए निभाई जाती है ताकि देवलोक तक जाने में उन्हें किसी भी तरह की समस्या ना आए। इस प्रथा को देवी बोरन के नाम से जाना जाता है। ये रस्म सदियों से चलती आ रही है। ये रस्म सबसे पहले लगभग 450 साल पहले पश्चिम बंगाल में शुरू हुई थी। उस वक्त महिलाओं ने मां दुर्गा, लक्ष्मी माता, मां सरस्वती, कार्तिकेय और भगवान गणेश का श्रृंगार कर और भोग लगा उनका विसर्जन किया था। इसके बाद महिलाओं ने अपनी और दूसरी महिलाओं की सिंदूर से मांग भरी। इसके बाद से देशभर में ये प्रथा मनाई जाने लगी।