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इनकी मेहनत को लोग कहते थे पागलपन, जानिए अनीता के संघर्ष की कहानी
बिहार के नालंदा जिले से बड़े-बड़े महापुरुषों का नाम जुड़ा है। इस जिले की एक महिला का नाम भी बहुत ज्यादा चर्चा में है। इस महिला का नाम है अनीता देवी। अनिता देवी (Anita Devi) ने अपनी कर्मठता और आत्मविश्वास की अनूठी मिसाल पेश की है। उन्होंने अपने काम के बदौलत अपनी, अपने परिवार और क्षेत्र की हजारों औरतों की जिंदगी बदल दी है।
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अनिता देवी बिहार के नालंदा जिले के चंडीपुर प्रखंड स्थित अनंतपुर गांव की रहने वाली है। अनीता देवी आज मशरूम उत्पादन के क्षेत्र में एक बड़ा नाम बन चुकी हैं। इसके अलावा अब अनीता देवी मछली पालन, मधुमक्खी पालन, मुर्गी पालन और पारंपरिक खेती का काम भी कर रही हैं। आइए जानते हैं अनीता देवी के संघर्ष की कहानी।
बच्चों को दिलवाना चाहती थी उच्च शिक्षा
बताया जाता है कि साल 2010 में पढ़ी-लिखी अनीता के सामने बच्चों को पालने और अच्छी शिक्षा देने का सवाल खड़ा हो गया। अनीता के पति संजय कुमार को उच्च शिक्षा हासिल करने के बाद भी शहर में नौकरी नहीं मिली तो हताश होकर वे गांव लौट आए और घरवालों के साथ खेती करने लगे। अनिता के घर में उस वक्त सात लोग थे, जिनमें उनके माता-पिता, तीन बच्चे, पति और वे स्वयं शामिल थी। अनीता के ससुराल के लोग खेती करते थे, लेकिन उसमें आमदनी कम थी। जिस कारण अनिता के लिए सिर्फ 3 एकड़ की खेती से घर चलाना और बच्चों की पढ़ाई का खर्च उठाना संभव नहीं था।
ऐसे आया बदलाव
अनिता देवी गृह विज्ञान में स्नातक थीं। उन्होंने खुद के लिए कुछ नया करने की ठान ली और उन्हीं दिनों उनके जिले के एक कृषि विज्ञान केंद्र पर एक कृषि मेला लगा। अनिता उस मेले में अपने पति के साथ गई और उन्होंने वहां कृषि वैज्ञानिकों से मशरूम की खेती के विषय में सुना। अनीता को मशरूम की खेती फायदे का सौदा लगी। जिसके बाद अनिता वैज्ञानिकों से इस पर काफी देर तक सवाल जवाब करती रहीं। वहीं, घर लौटते-लौटते अनीता ने ठान लिया कि वे मशरूम उगाने का काम करेंगी।
पति ने दिया साथ
अनीता मशरूम उत्पादन के विषय में ज्यादा से ज्यादा जानकारी इकट्ठा करने लगीं। इस काम में पति संजय ने भी उनका हौसला बढ़ाया। जिसके चलते मशरूम उत्पादन की ट्रेनिंग लेने वे उत्तराखंड स्थित पंतनगर कृषि विश्वविद्यालय गईं और वहां उन्होंने मशरूम उत्पादन से संबंधित हर तकनीक समझी। इस के बाद उन्होंने समस्तीपुर में डॉ. राजेंद्र प्रसाद कृषि यूनिवर्सिटी से भी मशरूम के बारे में ट्रेनिंग ली।
ऐसे शुरू हुआ सफर
ट्रेनिंग लेने के बाद अनीता ने सबसे पहले छोटे पैमाने पर आयस्टर मशरूम और उस के बाद बटन मशरूम का उत्पादन शुरू किया। इसके लिए अनीता को ज्यादा लागत नहीं लगानी पड़ी क्योंकि उनके खेतों से निकलने वाले कचरे से ही मशरूम पैदा हो रही थी।
होने लगी आमदानी
वहीं, अनीता के पति संजय मशरूम की पैकिंग कर बाजार में बेचने का काम करने लगे, जिससे हर दिन उनको कुछ अतिरिक्त आमदनी हो जाती थी।
साथ में जोड़ी कुछ महिलाएं
अनीता ने धीरे-धीरे अधिक क्षेत्र में उत्पादन शुरू किया, जिससे ज्यादा मात्रा में मशरूम पैदा होने लगी। इसी दौरान अनीता ने अपने साथ गांव की कुछ और महिलाओं को भी जोड़ लिया।
लोगों को किया जागरूक
अनीता बताती हैं कि शुरू में वे अपने पति के साथ सभी किसान मेला, बिहार दिवस, जिलों के स्थापना दिवस, यूनिवर्सिटी में होने वाले प्रोग्रामों आदि में हिस्सा लेने जाती थी और वहां वे मशरूम से बने व्यंजनों का स्वाद लोगों को चखाती थी और मशरूम के प्रति उन्हें जागरूक करती थी। उन्होंने बताया कि लोगों को मशरूम का स्वाद बहुत अच्छा लगता था और वे मशरूम को नॉन वेज समझ कर खाते थे।
ऐसे शुरू किया बिजनेस
अनिता बताती हैं कि धीरे-धीरे लोग उनका उत्पाद खरीदने लगे और मंडी में भी इसकी बिक्री अच्छी होने लगी। जिसके बाद उन्होंने बहुत से होटलों से संपर्क किया, जहां उनका माल जाने लगा। अनिता बताती हैं कि इसके बाद इनका छोटा सा धंधा बड़ा आकार लेने लगा। उन्होंने बताया कि अब उनके पति रोजाना मंडी में बड़ी मात्रा में मशरूम पहुंचाने का काम करने लगे हैं।
बनाई मशरूम उत्पादन की कंपनी
अनिता बताती हैं कि जब आसपास के गांव से महिलाएं और पुरुष अनीता के काम को देखने और उस से जुड़ने के लिए आने लगे तो उन्होंने पति की मदद से मशरूम उत्पादन की माधोपुर फार्मर्स प्रोड्यूसर कंपनी लिमिटेड नाम की कंपनी बना ली।
रोजगार भी मुनाफा भी
जानकारी के अनुसार, आज इस कंपनी में पांच हजार महिलाएं कार्यरत हैं। 12 साल के कठिन परिश्रम के बाद अब अनीता रोजाना 300 किलोग्राम मशरूम का उत्पादन कर रही हैं। अब अनिता को उनकी इस कंपनी से 15 से 20 लाख रुपए साल की आमदनी होने लगी है।
पागल कहते थे लोग
अनीता बताती हैं कि जिस समय उन्होंने मशरूम उगाने का काम शुरू किया था, तो उस समय गांव के लोग उन्हें पागल कहते थे, लेकिन आज वही लोग उनके अनुयायी बन गए हैं।
सुधर गए परिवार के हालात
आज इस बिजनेस से उनके परिवार की हालत सुधर गई है। उनके बच्चे उच्च शिक्षा हासिल कर रहे हैं। उनकी बेटी ने पटना यूनिवर्सिटी से एम.कॉम किया है। उनका एक बेटा परास्नातक कर रहा है और छोटा बेटा बिहार एग्रीकल्चरल यूनिवर्सिटी में स्नातक की पढ़ाई कर रहा है। अनीता बताती हैं कि उनकी ईमानदारी, कर्मठता और कठोर श्रम की बदौलत लोग उन्हें जानते हैं।