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Himachal: यहां श्राद्धों में भी बजती हैं शहनाइयां, बिना पंडित-सात फेरों के होती हैं शादियां; जानें क्या है परंपरा
मंडी। हिमाचल प्रदेश देवताओं की भूमि है। यहां बहुत सारी ऐसी परंपराए हैं जो अपने आप में अनूठी हैं। यहां बहुत सारे काम देव आज्ञा से संपन्न होते हैं। माना जाता है कि श्राद्धों (Sraddha) में कोई भी शुभ कार्य नहीं होते, लेकिन हिमाचल (Himachal) के मंडी और कुल्लू जिला में देव आज्ञा से श्राद्धों में भी शादियां (Wedding) होती हैं। बकायदा बैंड बाजों के साथ बारात निकलती है और शादी होती है। ऐसी ही एक शादी कुछ दिन पहले 4 सितंबर को मंडी जिला के चौहण गांव में हुई है। इस विवाह की खास बात यह है कि इसमें ना पंडित मंत्र बोलता है, ना ही सात फेरे लिए जाते हैं। जिला के इस क्षेत्र में एक अनुठी परंपरा है। यहां मेलों में लड़का और लड़की एक दूसरे को पसंद करते हैं। इसके बाद लड़का-लड़की को अपने घर लेकर आ जाता है। पहले मेलों से भागने की परंपरा होती थी, उस समय लड़का-लड़की को भगा कर ले जाता था और वह शादी कर लेते थे। लेकिन अब बदलते दौर में लड़का-लड़की को अपने घर लेकर आता है। उसके बाद लड़के के परिजन लड़की को उसके घर छोड़ने जाते हैं, जिसके बाद देव आज्ञा से लड़के और लड़की की शादी करवा दी जाती है। स्थानीय देवता का गूर (पुजारी) शादी की तारीख तय करते हैं। इसमें किसी तरह का अशुभ नहीं देखा जाता। यह शादियां श्राद्धों में भी होती हैं और देवता के सामने संपन्न होती हैं। इन शादियों के समय में देवता दो दिन तक लड़के के घर में विराजमान रहते हैं।
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जिला मंडी (Mandi) के चौहण घाटी में भी ऐसी ही शादी चार सितंबर को हुई, जिसमें चौहण निवासी सुनील कुमार और सुषमा देवी इसी परंपरा से विवाह बंधन में बंधे। यह आयोजन कोविड-19 के नियमों के अनुसार पूरा किया गया। दंपती सुनील व सुषमा ने बताया कि देव आज्ञा के अनुसार उन्होंने परंपरा का निर्वहन किया और अब वह खुश हैं। वहीं, लड़के और लड़की के माता-पिता के अनुसार उन्होंने बच्चों का विवाह परंपरा के अनुसार किया है। बच्चों की खुशी के साथ देवता की आज्ञा सर्वोपरि है। इसलिए वह श्राद्ध को बाधा नहीं मानते। हालांकि इस शादी में पंडित को नहीं बुलाया गया। ऐसी मान्यता है कि इस तरह की शादी अगर श्राद्ध में आयोजित होती है तो शादी में भगवान गणेश की पूजा नहीं की जाती इसलिए ऐसी शादी में पंडित को भी नहीं बुलाया जाता। मंडी के साहत्ियकार धर्मपाल ने बताया कि लड़की को भगाकर शादी करने की परंपरा आदि काल से है। लाहुल (Lahaul) से यह परंपरा कुल्लू और सराज घाटी में आई है। इसमें श्राद्ध का समय भी बाधा नहीं बनता। देव आज्ञा को ही सर्वोपरि माना जाता है और शादियां करवाई जाती हैं।
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