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कुंभ में अखाड़े के साधुओं का रहता है विशेष महत्व, पढ़िए पूरा अखाड़ा इतिहास
Last Updated on April 19, 2021 by
कोरोना काल में कुंभ (Kumbh 2021) चल रहा है। कुंभ को लेकर काफी ज्यादा सवाल भी खड़े हो रहे हैं। कोरोना के बढ़ते मामलों को देखते हुए सबसे निरंजनी अखाड़ा ने कुंभ समाप्ति का घोषणा की थी। इसके बाद पीएम नरेंद्र मोदी (PM Narendra Modi) ने भी कोरोना के कारण अपील करते हुए कुंभ को प्रतीकात्मक रखने की अपील की थी। पीएम नरेंद्र मोदी ने खुद स्वामी अवधेशानंद (Swami Avdheshanand) से बात भी की थी। ऐसे में बीते रोज ही सबसे बड़े जूना अखाड़ा (Juna Akhada) ने भी कुंभ विसर्जन का ऐलान किया था। इसलिए इस खबर में आपको अखाड़ों के बारे में विस्तार से जानकारी देते हैं।
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दरअसल कुंभ में आम लोग भी स्नान करने पहुंचते हैं, लेकिन अखाड़ों के साधुओं को ज्यादा महत्व दिया जाता है। शाही स्नान में भी अखाड़ों के साधु ही सबसे पहले गंगा में डुबकी लगाते हैं। इसके बाद ही आम जनता की बारी आती है। इसलिए आपको सबसे पहले अखाड़ों की उत्पत्ति के बारे में जानकारी देते हैं। इस समय देश में 13 अखाड़े हैं। ये अखाड़े उदासीन, शैव और वैष्णव संप्रदाय से जुड़े हुए हैं।
वैसे तो आम भाषा में अखाड़ा उस स्थान को कहते हैं जहां कुश्ती या पहलवानी होती है, लेकिन साधुओं के मामले में इसका मतलब पहलवानी से कम है। दरअसल, साधु जिस मठ या स्थान पर रुकते हैं उसे अखाड़ा कहा जाता है। इन्ही मठों में नागा साधु शारीरिक क्रियाएं करते हैं। इन अखाड़ों में साधु कुश्ती के साथ दंड बैठक तो करते ही हैं बल्कि अश्त्र-शस्त्र का भी अभ्यास करते हैं। कुंभ, सिंहस्थ या अर्धकुंभ (Ardh kumbh) के दौरान साधु इन्हीं क्रियाओं की आजमाइश भी करते हैं।
अखाड़ों में क्या होता है
इससे भी ज्यादा आसान भाषा में समझाएं तो अखाड़े साधुओं (Akhada Sadhu) के लिए एक तरह से बोर्डिंग, लॉजिंग और ट्रेनिंग सेंटर होता हैं। यहां साधु ठहरते हैं। उनके खाना-पीना की व्यवस्था भी यहां होती है। इसके साथ ही संन्यास की अलग-अलग क्रियाओं का प्रशिक्षण भी यहां पर दिया जाता है। अखाड़ों में शिष्य साधु अपने गुरु को भगवान का दर्जा देता हैं। अखाड़े (Akhade) के साधु सदस्य अपने गुरु से प्रशिक्षण लेते हैं। इस प्रशिक्षण के दौरान सांसारिक जीवन नहीं छोड़ना पड़ता है। इसमें ब्रह्मचर्य का पालन होता है और कुछ संन्यासी गुरु (Guru) के दिशा-निर्देश में ताउम्र ब्रह्मचर्य जीवन व्यतीत करते हैं।
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शुरुआत में हुआ करते थे चार अखाड़े
आपको बता दें कि शुरुआत में केवल चार अखाड़े होते थे। ये अखाड़े (Akhade) संप्रदाय के अंतर्गत थे। समय के साथ-साथ ये अखाड़े टूटते गए और फिर छोटे-छोटे अखाड़े बने। ऐसा कहा जाता है कि परस्पर मतभेद और नेतृत्व में कमी के चलते अखाड़े विभक्त हुए। उस दौरान अखाड़े शिष्यों के आधार पर बनने लगे थे। जिस के पास जितने शिष्य वो उसी आधार पर अपना अखाड़ा (Akhada) बना लेता। आज अखाड़ों की संख्या 13 है। 2019 में प्रयागराज कुंभ (Prayagraj Kumbh) में 13 अखाड़ों का जमावड़ा रहा था।
अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद
कुंभ में स्नान को लेकर अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद (Akhil Bharatiya Akhara Parishad) का निर्माण किया गया है। इसमें सभी अखाड़ों से दो-दो प्रतिनिधि शामिल किए गए हैं। जो भी कुंभ मेले आयोजित होते हैं या भविष्य में जो भी कुंभ मेले आयोजित होंगे, उससे जुड़े सभी मामले अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद देखती है। एक ओर रोचक बात यह है कि सात बड़े अखाड़ों का निर्माण आदि शंकराचार्य (Shankaracharya) ने ही किया था। इसमें महानिर्वाणी, निरंजनी, जूना, अटल, अवाहन, अग्नि और आनंद अखाड़ा शामिल हैं।
चार श्रेणियों में बांटे गए हैं अखाड़े
1 पहला संन्यासी अखाड़ा (Sanyasi Akhada) के साधु भगवान शिव को मानते हैं। इस अखाड़े में निरंजनी अखाड़ा और उसका सहयोगी आनंद अखाड़ा, जूना अखाड़ा और उसके सहयोगी अवाहन और अग्नि अखाड़ा, परी अखाड़ा (साध्वियों के लिए) शामिल है। इसे पहली बार 2019 में प्रयागराज कुंभ में शामिल किया गया था। इसके अलावा किन्नर अखाड़ा के सदस्य किन्नर समुदाय के हैं। इसे भी पहली बार प्रयागराज कुंभ (Prayagraj Kumbh) में ही शामिल किया गया था।
2 दूसरा बैरागी अखाड़ा (Bairagi Akhada) है। इस अखाड़े के शिष्य विष्णु भगवान के अनुयायी होते हैं। इसमें महानिर्वाणी अखाड़ा शामिल है। इसे सिर्फ निर्वाणी भी कहते हैं। इसका सहयोगी अटल अखाड़ा है। साथ ही निर्मोही अखाड़ा भी इसमे है। इसे दिगंबर अखाड़ा या खालसा अखाड़ा भी कहा जाता है।
3 तीसरा अखाड़ा है उदासी (Udasi Akhada)। इसके शिष्य सिख धर्म को मानने वाले होते हैं। इसमें निर्मल अखाड़ा शामिल है।
4 चौथा अखाड़ा कल्पवासी है। इसके शिष्य ब्रह्मा को पूजते हैं।