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किसानों ने बुलाया आज भारत बंद, देश भर में दिख रहा बंद का मिलाजुला असर
नई दिल्ली। केंद्र सरकार द्वारा लागू तीन कृषि कानूनों के खिलाफ किसान 10 महीने से आंदोलन कर रहे हैं। अपने आंदोलन को और मजबूत करने के लिए किसानों ने आज भारत बंद का आह्वान किया है। देश के कई राज्यों में भारत बंद का असर दिखने लगा है। वहीं, हिमाचल में भी बंद का मिला जुला असर दिख रहा है। संयुक्त किसान मंच हिमाचल ने भी राज्य में भारत बंद का आह्वान किया है। बता दें कि 17 सितंबर 2020 को संसद में खेती से जुड़े तीनों कानून पास हो गए थे। ये वही कानून हैं, जिनके विरोध में पिछले साल नवंबर से शुरू हुआ किसानों का आंदोलन अब तक जारी है।
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क्या हैं तीन कानून, किसानों की क्या है आपत्ति
पहला, कृषि उत्पादन व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सुविधा) विधेयक 2020 इसके मुताबिक किसान मनचाही जगह पर अपनी फसल बेच सकते हैं। बिना किसी रुकावट दूसरे राज्यों में फसल बेच और खरीद सकते हैं। इसका मतलब एपीएमसी (एग्रीकल्चर मार्केटिंग प्रोड्यूस मार्केटिंग कमेटी -Agriculture Marketing Produce Committee) के दायरे से बाहर भी फसलों की खरीद-बिक्री की जा सकती है। साथ ही फसल की बिक्री पर कोई टैक्स नहीं लगेगा। ऑनलाइन बिक्री की भी अनुमति होगी। इससे किसानों को अच्छे दाम मिलेंगे। इस मामलों पर किसानों की आपत्ति है कि इच्छा के अनुरूप उत्पाद को बेचने के लिए आजाद नहीं हैं। भंडारण की व्यवस्था नहीं है, इसलिए वे कीमत अच्छी होने का इंतजार नहीं कर सकते। खरीद में देरी पर न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) से काफी कम कीमत पर फसलों को बेचने के लिए मजबूर हो जाते हैं। कमीशन एजेंट किसानों को खेती व निजी जरूरतों के लिए रुपये उधार देते हैं। औसतन हर एजेंट के साथ 50-100 किसान जुड़े होते हैं। अक्सर एजेंट बहुत कम कीमत पर फसल खरीदकर उसका भंडारण कर लेते हैं और अगले सीजन में उसकी एमएसपी पर बिक्री करते हैं।
दूसरा, मूल्य आश्वासन व कृषि सेवा कानून 2020 देशभर में कॉन्ट्रेक्ट फार्मिंग को लेकर व्यवस्था बनाने का प्रस्ताव है। फसर खराब होने पर उसके नुकसान की भरपाई किसानों को नहीं बल्कि एग्रीमेंट करने वाले पक्ष या कंपनियों को करनी होगी। किसान कंपनियों को अपनी कीमत पर फसल बेचेंगे। इससे किसानों की आय बढ़ेगी और बिचौलिया राज ख्त्म होगा। इस पर किसानों ने एतराज जताया है कि फसल की कीमत तय करने व विवाद की स्थिति का बड़ी कंपनियां लाभ उठाने का प्रयास करेंगी। बड़ी कंपनियां छोटे किसानों के साथ समझौता नहीं करेंगी। ऐसा एक नजारा हम इस बार के सेब खरीद में देख चुके हैं। किस प्रकार एक कंपनी द्वारा किसानों को सेब को कम कीमतों पर बेचने को मजबूर कर दिया गया।
तीसरा, आवश्यक वस्तु (संशोधन) कानून-2020 आवश्यक वस्तु अधिनियम को 1955 में बनाया गया था। अब खाद्य तेल, तिलहन, दाल, प्याज और आलू जैसे कृषि उत्पादों पर से स्टॉक लिमिट हटा दी गई है। बहुत जरूरी होने पर ही स्टॉक लिमिट लगाई जाएगी। ऐसी स्थितियों में राष्ट्रीय आपदा, सूखा जैसी अपरिहार्य स्थितियां शामिल हैं। प्रोसेसर या वैल्यू चेन पार्टिसिपेंट्स के लिए कोई स्टॉक लिमिट लागू नहीं होगी। उत्पादन, स्टोरेज और डिस्ट्रीब्यूशन पर सरकारी नियंत्रण खत्म होगा। इस पर किसानों का कहना है कि असामान्य स्थितियों के लिए कीमतें इतनी अधिक होंगी कि उत्पादों को हासिल करना आम आदमी के बस के बाहर चला जाएगा। आवश्यक खाद्य वस्तुओं के भंडारण की छूट से कॉरपोरेट फसलों की कीमत को कम कर सकते हैं। मौजूदा अनुबंध कृषि का स्वरूप अलिखित है। फिलहाल निर्यात होने लायक आलू, गन्ना, कपास, चाय, कॉफी व फूलों के उत्पादन के लिए ही अनुबंध किया जाता है।
10 महीने 11 बार वार्ता
किसान आंदोलन को पूरे 10 महीने होने के दौरान 11 बार सरकार से वार्ता हो चुकी है, लेकिन अब तक की सभी वार्ताएं विफल रही हैं। राकेश टिकैत हर बार यही कहते आए हैं कि वह बात करने को तैयार हैं, लेकिन सरकार बिना शर्तों के बात करे। मगर सरकार की तरफ से हर बार यही जवाब आया है कि कृषि कानून की वापसी की शर्त पर किसान बात ना करें। सरकार की तरफ से हर बार संशोधन की बात कही गई है। ऐसे में सवाल यही है कि 10 महीने का यह आंदोलन हो चुका है. समाधान कब निकलेगा। बता दें कि किसानों द्वारा भारत बंद की शुरुआत सुबह 6 बजे से होगी जो शाम 4 बजे तक चलेगा।
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