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राज्यसभा और लोकसभा के कार्पेट के रंग लाल और हरा क्यों होता है, जानते हैं ?
नई दिल्ली। देश के संसद में दो सदन हैं। लोकसभा और राज्यसभा। दोनों सदनों में कई अंतर हैं। लोकसभा में प्रतिनिधि का चुनाव जनता करती है। मगर राज्यसभा में प्रतिनिधि का चुनाव राज्यों के विधानमंडल के प्रतिनिधि करते हैं। इस अंतर के साथ ही एक छोटा सा अंतर सदन के भीतर भी होता है। क्या आपने कभी गौर से संसद के दोनों सदनों में बिछे कालीन को गौर से देखा है। दोनों सदनों के कालीन में रंग का अंतर होता है। लोकसभा का कालीन हरे रंग का होता है, जबकि राज्यसभा का कालीन लाल रंग का होता है। अलग-अलग रंग वाली कालीन के पीछे की वजह बड़ी है।लोकसभा में हरे रंग की कार्पेट बिछाई गई है। क्योंकि लोकसभा पहुंचने वाले जनप्रतिनिधि का चुनाव जनता करती है। ये जनप्रतिनिधि जमीनी तौर पर जनता से जुड़े होते हैं। घास और कृषि के रंग को इसके प्रतीक के तौर पर माना जाता है। इसलिए यहां हरी कार्पेट बिछी होती है।
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वहीं, राज्यसभा जिसे संसद का उच्च सदन भी कहते हैं। यहां लाल रंग की कार्पेट बिछी हुई नजर आती है। यह रंग राजसी गौरव और स्वाधीनता संग्राम में शहीदों के बलिदान का प्रतीक माना जाता है। इसलिए राज्यसभा के लिए कार्पेट का रंग लाल चुना गया। यहां राज्यों के जनप्रतिनिधियों के आंकड़ों के हिसाब से प्रतिनिधि पहुंचते हैं।खास बात है कि जब दोनों सदनों का संयुक्त सत्र बुलाया जाता है तो राज्यसभा और लोकसभा दोनों सदनों के सदस्य संसद के सेंट्रल हॉल में इकट्ठा होते हैं और यहां दोनों सदनों के सांसद बैठते हैं।
गौरतलब है कि संसद को गोलाकार संरचना के रूप में बनाया गया है। इसका निर्माण ब्रिटिश आर्किटेक्ट एडविन लुटियंस ने किया था।संसद भवन का निर्माण 12 जनवरी, 1921 को शुरू हुआ था। इसे पूरा होने में करीब 6 साल का समय लगा। कहा जाता है कि संसद भवन की डिजाइन मध्यप्रदेश के प्राचीन चौसठ योगिनी मंदिर से प्रेरित है। इसे तैयार करने में 83 लाख रुपये की लागत आई थी। संसद भवन में बनी लाइब्रेरी को देश की सबसे बड़ी लाइब्रेरी में से एक माना जाता है।