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द्रौपदी मुर्मू के समाज में भागकर प्रेम विवाह करने का है रिवाज
आदिवासी समुदाय से संबंध रखने वाली द्रौपदी मुर्मू के रूप में भारत को 15वीं राष्ट्रपति मिल चुकी है। यूं तो भारत में राष्ट्रपतियों की लिस्ट में द्रौपदी मुर्मू (Draupadi Murmu) देश की दूसरी महिला राष्ट्रपति हैं मगर यह इतिहास में पहला अवसर है जब एक आदिवासी समुदाय से संबंध रखने वाली महिला इतने बड़े सर्वोच्च पद पर पहुंची हो। द्रौपदी मुर्मू संथाल आदिवासी समुदाय (Santhal Tribe) से संबंध रखती हैं। वैसे तो हमारे देश में भील और गोंड देश के सबसे बड़े आदिवासी समुदाय हैं। इन दोनों समुदायों के बाद तीसरा सबसे बड़ा आदिवासी समुदाय संथाल है। आइए हम आपको विस्तार से बताते हैं कि संथाल समुदाय (Santhal tribe) क्या है। इनके रीति-रिवाज कैसे हैं। इनकी आर्थिक स्थिति कैसी है। शादी-विवाह की परंपराएं क्या हैं। इस समुदाय में शिक्षा का स्तर क्या है।
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संथाल को संताल भी कहा जाता है: इस समुदाय को संताल के नाम से भी जाना जाता है। इसका अर्थ एक शांत सयंत व्यक्ति। यानी कि संथाल (Santhal) का अर्थ काम होता है और आला का मतलब मैन होता है। यह समुदाय अधिकतर पश्चिम बंगाल, ओडिशा और झारखंड में पाया जाता है। वहीं देश की 15वीं राष्ट्रपति (President) द्रौपदी मुर्मू ओडिशा के मयूरभंज जिले की रहने वाली हैं।
कहां से हुआ समुदाय का उदय: भास्कर डॉटकॉम की रिपोर्ट के अनुसार इस बात का पूरा पता नहीं कि इस समुदाय का आखिर उदय कब हुआ। माना जाता है कि इनका उदय नॉर्थ कंबोडिया के चंपा साम्राज्य से हुआ है। भाषाविद पॉल सिडवेल के अनुसार लगभग 4000 से 3500 वर्ष पहले संथाल समुदाय भारत के ओडिशा तट पर पहुंचे थे। 18वीं शताब्दी के अंत तक इस समुदाय को घुंमतू समूह के रूप में जाना जाता था। बाद में धीरे-धीरे यह समुदाय बिहार, ओडिशा और झारखंड ( Jharkhand) के छोटा नागपुर पठार में बसता चला गया।
संथाली भाषा: संथाल समुदाय के लोग संथाली भाषा का प्रयोग करते हैं। आम-बोलचाल में इसी भाषा के माध्यम से व्यवहार किया जाता है। इस भाषा को संथाल के विद्वान पंडित रघुनाथ मुर्मू ने ओल चिकी नामक लिपि में लिखा है। संथाली के अतिरिक्त बंगाली, उड़िया और हिंदी भाषा का प्रयोग भी किया जाता है। ओल चिकी लिपि में संथाली को संविधान की 8वीं अनुसूची में शामिल किया जा चुका है।
55 प्रतिशत हैं पढ़े-लिखे लोग: संथाल जनजाति का लिटरेसी रेट (literacy rate) भी अन्य समुदायों की अपेक्षा सबसे ज्यादा है। इनका लिटरेसी रेट 55 प्रतिशत है। इसकी वजय यह है कि 1960 के दशक से ही यहां शिक्षा के प्रति समुदाय को जागरूक किया जा रहा है। यही वजह है कि इस समुदाय के 55 प्रतिशत लोग आपको पढ़े-लिखे (Educated) मिलेंगे। आमतौर पर नॉर्थ ईस्ट (North East) के अतिरिक्त अन्य राज्यों में रहने वाले जनजातीय समुदायों की साक्षरता दर कम होती है। यही कारण है कि संथाल समुदाय से संबंध रखने वाले लोग क्रिमी लेयर की सीमा भी उपर उठ चुके हैं।
संथाल समुदाय के रीति-रिवाज भी अनोखे हैं। यहां अपने संस्कारों और संस्कृति का निर्वहन बाखूबी तरीके से किया जाता है। शादी करने की अपनी परंपराएं (customes) हैं जो हैसियत, पंसद, माता-पिता की सहमति के लिए अलग-अलग नामों से निभाई जाती हैं। आइए आज आपको संथाल समुदाय की विवाह परंपराओं की विस्तार से जानकारी देते हैं:
– अपाडगीर बापला या अंगीर बापला: यह प्रथा एक किस्म की प्रेम विवाह (Love marriage) की प्रथा है। इस प्रथा के तहत शादी पश्चात अनजान जगह पर रहा जाता है। जैसे ही बच्चे का जन्म होता है तो इस शादी को मान्यता भी मिल जाती है।
– टुमकी दिपिल बापला: इस प्रकार के विवाह पर अधिक खर्च नहीं किया जाता है। यानी कि कम पैसों से ही शादी निपटाई जाती है। इसमें बारात के लिए भोज नहीं परोसा जाता है। गरीब तबके के संथाल इस प्रकार से ही शादियां करते हैं।
– सदाय या रावर बापला: इस प्रकार की शादियां वर और वधू पक्ष के अभिभावकों की सहमति से होती हैं। इसमें प्रेम विवाह नहीं होता है। माता-पिता जहां तय करेंगे वहीं शादी की जाती है।
– निरबोलोक बापला: यदि शादी से लड़के या लड़की में संबंध बनते हैं और बाद में लड़का शादी करने के लिए इनकार कर देता है तो इस प्रथा के अनुसार लड़की जबरन लड़के के घर आकर रहने लगती है।
– ओर-आदेर बापला: इस प्रथा के अनुसार अगर शादी से पहले ही लड़के और लड़की में संबंध बन जाता है तो ऐसी दशा में लड़का जबरदस्ती लड़की को अपने घर लाकर उसके साथ विवाह रचाता है।
– इतुत बापला: इस प्रथा के अनुसार अगर लड़के को कोई लड़की पसंद हो तो वह जबरन लड़की की मांग में सिंदूर भर देता है।
– घरदी जावाय बापला: यदि लड़की भाई अभी नाबालिग है तो ऐसी दशा में लड़के को पांच साल घर जमाई बनकर रहना पड़ता है।
-हीराम चेतान बापला: इस प्रथा के अनुसार यदि पहली पत्नी (Wife) से संतान ना हो तो पति दूसरा विवाह भी कर सकता है।
– जावाय किरिंज बापला: इस प्रथा के अनुसार गर्भवती महिला से शादी करने की परंपरा है। इस प्रथा के अनुसार पुरुष को उस महिला के बच्चे को पिता का नाम देने के लिए खरीदा जाता है।
– गोलायटी बापला: इसमें लड़का व लड़की आपस में भाई-बहन होते हैं। यानी कि दो बहनों और दो भाइयों की शादी की प्रथा।
– घर जवाय बापला: यह विवाह ऐसी स्थिति में होता है जब लड़की का कोई भाई और ना ही कोई गोतिया होता है तो ऐसी स्थिति में लड़की अपने रिश्तेदारों संग बारात लेकर दूल्हे के घर शादी करने के लिए जाती है। ऐसी स्थिति में लड़के को घर जमाई बनकर रहना पड़ता है।
– सहाय बापला: इस प्रकार की शादी में सिंदूर की जगह तेल का प्रयोग किया जाता है। संथाल विद्रोह के पूर्व इस प्रकार का विवाह देखने को मिलता था।
महिला या पुरुष जब चाहें दे सकते हैं तलाक: संथाल समुदाय में तलाक देने पर कोई बंधिश नहीं है। अर्थात पति या पत्नी जब मर्जी तलाक का निर्णय ले सकते हैं। जब पत्नी पति का कहना न माने या फिर वह डायन साबित हो जाए तो उस दशा में पति पत्नी को तलाक दे सकता है। इसी तरह से यदि पति अपनी पत्नी की देखभाल नहीं करता है या फिर पत्नी की अन्य पुरुष से शादी करने इच्छा हो तो ऐसी दशा में वह तलाक दे सकती है। साथ में यह प्रथा भी प्रचलित है कि ऐसी दशा में पत्नी जिस पुरुष से दोबारा शादी रचाती है तो ऐसी दशा में पहले उसे पति को हर्जाना देना पड़ता है। ंवहीं संथाल समाज में बहुएं घूंघट भी नहीं निकालती हैं।
पति के लिए कुछ अनूठे नियम: वहीं इस समाज में पति के लिए कुछ अनोखे नियम भी निर्धारित किए गए हैं। इनका पालन करना अति आवश्यक होता है। यदि पत्नी गर्भवती हो तो ऐसी दशा में पति ना तो किसी जानवर को मार सकता है और ना ही किसी के अंतिम संस्कार में जा सकता है। वहीं संथाल लोग अपने नृत्य के लिए भी जाने जाते हैं। यह नृत्य कार्यक्रमों और समारोहों में किया जाता है। इसके अतिरिक्त संथाल समुदाय के लोग सारंगी, कामक, ढोलक और बांसुरी आदि बजाते हैं।
करम होता है प्रमुंख त्यौहार, मांगी जाती हैं मनोकामनाएं: संथाल समुदाय के लोग त्यौहार भी मनाते हैं। इस त्यौहार का नाम करम होता है और यह त्यौहार आस्था से जुड़ा हुआ होता है। इस त्यौहार पर संथाली लोग पैसे बढ़ाने और शत्रु मुक्ति की कामना करते हैं। वहीं इस त्यौहार पर शुद्धिकरण के बाद घर पौधा लगाने की परंपरा भी निभाई जाती है। यह त्यौहार सिंतबर से अक्तूबर महीने में मनाया जाता है।
संथाली प्रकृति के उपासक होते हैं। हालांकि इनका सामाजिक उत्थान हो चुका है मगर ये लोग अपने संस्कारों और संस्कृति की मूल जड़ से अभी जुड़े हुए हैं। इन्हें गांवों में जहेर यानी कि पावन उपवन में पूजा करते प्रायः देखा जा सकता है। इनका पारंपरिक परिधान पुरुषों के लिए धोती और गमछा और महिलाओं के लिए एक शॉर्ट चेक साड़ी होती है जो आमतौर पर हरे या नीले रंग की होती है। वहीं महिलाओं में टैटू बनवाने की प्रथा भी है।
घरों को कहा जाता है ओलाह:संथालों के घरों को ओलाह कहा जाता है। घरों की बाहरी दीवार तीन रंगों का इस्तेमाल विशेष पैटर्न बनाने के लिए किया जाता है। इस पैटर्न के अनुसार निचले हिस्से को काली मिट्टी, बीच के हिस्से को सफेद मिट्टी और उपर वाले हिस्से को लाल रंग से रंगा जाता है।
गंगा नहीं दामोदर नदी में विसर्जित की जाती हैं अस्थियां: जैसे कि किसी व्यक्ति की मौत हो जाए तो उसकी अस्थियां गंगा में प्रवाहित की जाती हैं। मगर संथान जनसमुदाय में किसी की मौत हो जाए तो उसकी अस्थियां संस्कारों और संस्कृति के रिवाजों के अनुरूप दामोदर नदी में प्रवाहित की जाती हैं।
अंग्रेजों के खिलाफ किया था जंग का ऐलान: भारत में अंग्रेजों के खिलाफ प्रथम स्वतंत्रता संग्राम की चिंगारी सन 1857 में फूटी थी। मगर इससे पहले ही संथाल जनजाति के लोगों ने सन 1855 में अंग्रेजों खिलाफ विद्रोह छेड़ दिया था। संथाली लोग इसे हूल कहते हैं मगर संथाली भाषा में हूल का अर्थ विद्रोह ही होता है। बताया जाता है कि 30 जून 1855 को सिद्धू और कान्हू की अगुवाई में साहिबगंज जिले के भगनाडीह गांव से ही इस विद्रोह की शुरूआत हुई थी। इस विद्रोह के दौरान लगभग 400 गांवों के पचास हजार से अधिक लोगों ने भोलनाडीह गांव में जाकर युद्ध की घोषणा कर दी थी। सिद्धू-कान्हू के नेतृत्व में संथालों ने मालगुजारी ना देने के साथ ही अंग्रेजो हमारी माटी छोड़ो नारे को बुलंद किया था। इससे डरे हुए अंग्रेजों ने विद्रोहियों को रोकना आरंभ कर दिया मगर संथालों ने इसका डटकर सामना किया। अंग्रेजों ने अपनी क्रूरता की सारी सीमाएं लांघ दीं। सिद्धू और कान्हू को पकड़कर 26 जुलाई 1855 को एक पेड़ से लटकार उन्हें फांसी दे दी। इन शहीदों के नाम पर हर साल 30 जून को हूल क्रांति दिवस मनाया जाता है। इस क्रांति में लगभग 20,000 लोगों ने शहादत दी थी।