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प्राकृतिक खेती के गुर सीख ऊना के मंजीत ने मजबूत की अपनी आर्थिकी
ऊना। कृषि में बेहतर उत्पादन की चाह ने पिछले कुछ दशकों में किसानों को मंहगे खरपतवारों और कीटनाशकों के अंधाधुंध प्रयोग के लिए बाध्य किया है। लेकिन मंहगे खरपतवारों और कीटनाशकों के बेतहाशा इस्तेमाल से न केवल कृषि लागत ही बढ़ी है; बल्कि इससे पर्यावरण और ज़मीन को भी भारी क्षति पहुंच रही है। इसके अलावा एक बिंदु पर पहुंचने के बाद कृषि उत्पादन भी लगभग स्थिर हो जाता है। इन तमाम समस्याओं से पार पाने के लिए सीएम जय राम ठाकुर सरकार ने हिमाचल प्रदेश में ‘प्राकृतिक खेती खुशहाल किसान योजना’ आरंभ की है। इस योजना को अपनाकर, जहां किसान प्राकृतिक खेती से अपनी आय में आशातीत वृद्धि कर सकते हैं, वहीं भूमि और पर्यावरण पर हो रहे रसायनों के प्रभाव को भी कम कर सकते हैं।
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ऊना जि़ला के बंगाणा उपमंडल के सिंहाणा गांव के प्रगतिशील किसान मंजीत सिंह ने प्राकृतिक खेती तकनीक को अपनाकर एक नई शुरूआत की है। वैसे तो मंजीत वर्ष 2016 से पॉलीहाउस खेती कर रहे हैं, लेकिन साल 2018 में उन्होंने प्राकृतिक खेती की ओर कदम बढ़ाए। कृषि विभाग द्वारा आयोजित किए जाने वाले किसान प्रशिक्षण शिविरों का लाभ लेकर, प्राकृतिक खेती तकनीक के तमाम गुर सीखने के बाद आज वह मास्टर ट्रेनर के रूप में दूसरे किसानों को न केवल यह कला सिखा रहे हैं; बल्कि उन्हें प्राकृतिक खेती के लिए प्रोत्साहित भी कर रहे हैं। मंजीत सिंह का कहना है कि सबसे पहले उन्होंने नौणी में दो दिन का प्रशिक्षण शिविर लगाया तथा उसके बाद पालमपुर कृषि विश्वविद्यालय में छह दिन तक डॉ. सुभाष पालेकर से प्राकृतिक खेती करने के गुर सीखे। उन्होंने अपने पॉलीहाउस में मैंने ब्रॉकली के 2,500 पौधे लगाए हैं, जिनसे अच्छी कमाई हो रही है। उनका अनुभव है कि प्राकृतिक खेती से जहां कीट-पतंगों का प्रभाव कम होता है, वहीं खेतों में जंगली जानवर भी कम घुसते हैं।
मंजीत मानते हैं कि रसायनों के भरोसे लंबे समय तक खेती करना संभव नहीं। इससे मिट्टी तो खराब होती ही है, साथ ही इंसानी सेहत से भी खिलवाड़ होता है। खेती लागत को कम करने के लिए वह वर्षा जल संग्रहण के माध्यम से सिंचाई करते हैं। वह अपने घर की छत से बरसाती पानी को एकत्रित कर, उसे एक टैंक तक पहुंचाते हैं। यह टैंक कुछ ऊंचाई पर बनाया गया है, ताकि गुरुत्वाकर्षण की मदद से पानी पॉलीहाउस तक बिना किसी $खर्च के आसानी से पहुंच जाए।
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प्राकृतिक खेती के लिए क्षमता निर्माण
आत्मा परियोजना के निदेशक डॉ. आरएस कंवर बताते हैं कि ‘प्राकृतिक खेती खुशहाल किसान’ योजना के तहत प्रदेश सरकार क्षमता निर्माण पर ध्यान केन्द्रित कर रही है। जहाँ प्राकृतिक खेती को अपनाने के लिए किसानों को ट्रेनिंग प्रदान की जाती है, वहीं सरकार आर्थिक मदद भी देती है। कम से कम छह माह की अवधि से प्राकृतिक खेती कर रहे किसान को देसी गाय की खरीद पर 50 प्रतिशत या अधिकतम 25 हजार रुपए की मदद दी जाती है। इसके अतिरिक्त प्लास्टिक के तीन ड्रम खरीदने पर 75 प्रतिशत सब्सिडी या अधिकतम 750 रुपए प्रति ड्रम की आर्थिक सहायता, गौशाला में लाइनिंग के लिए 80 प्रतिशत या 8 हजार रुपए तक का अनुदान एवं संसाधन भंडार बनाने के लिए 10 हजार रुपए की आर्थिक सहायता दी जाती है। कृषि मंत्री वीरेंद्र कंवर बताते हैं कि प्रदेश सरकार ने प्राकृतिक खेती के लिए हर किसान तक पहुंचने का लक्ष्य रखा है, ताकि हिमाचल को प्राकृतिक खेती करने वाले राज्य के रूप में स्थापित किया जा सके। राज्य में 30 नवंबर, 2020 तक 2957 पंचायतों के कुल 95,051 किसानों को प्राकृतिक खेती के लिए प्रशिक्षित किया जा चुका था, जिसमें से अब 90,349 किसान 5,095 हैक्टेयर भूमि पर प्राकृतिक खेती कर रहे हैं। राज्य में प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देने के लिए वर्ष 2018-19 में 25 करोड़ रूपये बजट का प्रावधान किया गया था।
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