-
Advertisement
#Monsoon Session: पौंग में खेती को लेकर सदन में क्या बोली सरकार-जानिए
Last Updated on September 15, 2020 by Deepak
शिमला। पौंग बांध अभ्यारण्य क्षेत्र में कानूनी तौर पर खेती नहीं की जा सकती है। यह जानकारी वन मंत्री राकेश पठानिया ने विधानसभा के मानसून सत्र (Monsoon Session) के दौरान जवाली के विधायक अर्जुन सिंह के सवाल के जवाब में दी है। विधायक ने पूछा था कि पौंग झील के सीमा बिंदू 1410 के भीतर कानूनी तौर पर खेती की जा सकती है, यदि हां तो इसके क्या मापदंड हैं और यदि ना तो कारण बताएं। उन्होंने जानकारी दी है कि पौंग झील का कुल क्षेत्रफल 207. 59 वर्ग किमी है और अधिसूचित पौंग बांध अभ्यारण्य क्षेत्र का विस्तार समुद्र तल से 1410 फीट से 1450 फीट ऊंचाई तक है। पौंग बांध अभ्यारण्य क्षेत्र में कानूनी तौर पर खेती नहीं की जा सकती है, क्योंकि उच्चतम न्यायालय (Supreme Court) ने 14 फरवरी 2000 के अपने आदेश द्वारा राष्ट्रीय उद्यान एवं अभ्यारण्य क्षेत्रों से मृत, मृतप्राय, रोगी वृक्षों के हटाए जाने पर प्रतिबंध लगाया है तथा राष्ट्री उद्यान एवं अभ्यारण्य क्षेत्रों से घास आदि हटाया जाना भी प्रतिबंधित किया गया है। इस आदेश के अंतर्गत संरक्षित क्षेत्रों के भीतर उच्चतम न्यायालय की पूर्व अनुमति के बिना कोई भी गैर वानिकी गतिविधियों जैसे वृक्षों/बांस का कटान, जैव भार को हटाया जाना व विभिन्न निर्माण कार्यों आदि का किया जाना वर्जित है। इस आदेश बारे उच्चतम न्यायालय द्वारा गठित सीईसी (Central Empowered Committee) ने अपने पत्र 2 जुलाई 2004 द्वारा सभी राज्यों को निर्देश जारी किए हैं।
यह भी पढ़ें: #Himachal_Vidhansabha के पूर्व उपाध्यक्ष राम नाथ नहीं रहे, Chandigarh में ली अंतिम सांस
एमके बालकृष्ण एवं अन्य वनाम केंद्र सरकार व अन्य में उच्चतम न्यायालय ने कई आदेश पारित किए हैं। 3 अप्रैल 2017 को पारित आदेश के अनुसार उच्चतम न्यायालय ने यह कहा है कि यह उचित रहेगा, संबंधित उच्च न्यायालय रामसर स्थलों का तब तक अनुश्रवण करे जब तक इनमें गुणात्मक सुधार नहीं होता है। उक्त के अनुसार याचिका विभिन्न उच्च न्यायालयों को भेजी गई, जिसके अंतर्गत हिमाचल प्रदेश उच्च न्यायालय इस वैटलैंड का नियमित अनुश्रवण करता है। यहां उल्लेखनीय है कि हिमाचल में तीन रामसर वैटलैंड स्थल हैं। पौंग बांध, रेणुका झील व चंद्रताल झील।भारतीय वन्य जीव (संरक्षण) अधिनियम 1972 की धारा 29 के अनुसार मुख्य वन्य जीव संरक्षक की अनुमति के बिना किसी अभ्यारण्य में वन उत्पाद सहित किसी वन्य जीव को नष्ट करने पर प्रतिबंध है। भारतीय वन्य जीव संरक्षण अधिनियम 1972 की धारा 33 के अनुसार मुख्य वन्य जीव संरक्षक ऐसे कदम उठाएगा जो अभ्यारण्य (Sanctuary) में वन्य प्राणियों की सुरक्षा तथा अभ्यारण्य और उसके वन्य प्राणियों का परिरचण सुनिश्चित करेंगे तथा वन्य प्राणियों के हित में ऐसे उपाय कर सकेगा, जिन्हें वे अन्य प्राणियों के आवास के सुधार के लिए आवश्यक समझें।