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वन, आयुष व कृषि विपणन बोर्ड को जैविक संसाधनों के इस्तेमाल के लिए एनओसी जरूरी
शिमला। प्रदेश हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया कि वन, आयुष और कृषि विपणन बोर्ड को जैविक संसाधनों के इस्तेमाल के लिए जैविक बोर्ड से अनापत्ति प्रमाण पत्र लेना होगा। कोर्ट ने अपने आदेशों में स्पष्ट किया कि आयुर्वेदिक, सिद्धा, युनानी और होम्योपैथी दवाइयों को निर्यात परमिट जारी करने से पहले एनओसी जारी करेगा। हिमाचल प्रदेश वन निगम ने सरकार से गुहार लगाई है कि बिरोजा, तारपीन और कत्था उद्योगों को जैविक विविधता अधिनियम 2002 से बाहर रखा जाए। अदालत ने स्पष्ट किया कि इस बारे में निर्णय लेने से पहले दोनों पक्षों को सुनवाई का मौका देना जरूरी है।
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पिछली सुनवाई के दौरान कोर्ट को बताया गया था कि राज्य सरकार की ओर से संबंधित कंपनियों को जैविक विविधता अधिनियम की धारा 7 के तहत नोटिस जारी किया जा रहा है। जबकि अधिनियम की धारा 23 और 24 के तहत राज्य जैव विविधता बोर्ड से अनुमति लेने का प्रावधान है। यदि कोई कंपनी जैविक संसाधनों को बिना स्वीकृति से इस्तेमाल करती है तो उस स्थिति में अधिनियम की धारा 56 के तहत एक लाख रुपये जुर्माने की सजा का प्रावधान है।
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याचिकाकर्ता ने अदालत को सुझाव दिया था कि राज्य सरकार की ओर से दिए जाने वाले नोटिस में ये सारे आदेश होने चाहिए। संबंधित कंपनियों को आदेश दिए जाए कि प्रदेश के जैविक संसाधनों का इस्तेमाल करने के लिए राज्य जैव विविधता बोर्ड से स्वीकृति ली जाए। अदालत ने सरकार को बाकी सुझावों की अनुपालना करने के आदेश दिए थे।पीपल फॉर रिसपांसिबल गोर्वनैंस ने जैविक विविधता अधिनियम 2002 के कार्यान्वयन के लिए हाईकोर्ट में याचिका दायर की है।